Categories
धर्म-अध्यात्म

सत्यार्थ प्रकाश में महर्षि दयानंद के द्वारा आत्मा, परमात्मा और प्रकृति का विषय

ईश्वर जीव और प्रकृति तीनों अनादि हैं। तीनों की सत्ता प्रथक प्रथक है। जीव से ईश्वर ,ईश्वर से जीव और इन दोनों से प्रकृति भिन्न स्वरूप हैं। ईश्वर और जीव दोनों चेतनता तथा पालन आदि गुणों में समान हैं। ईश्वर जीव और प्रकृति इन तीनों के गुण, कर्म व स्वभाव भी अनादि हैं। ईश्वर जीव […]

Categories
आज का चिंतन धर्म-अध्यात्म

महर्षि दयानंद कृत सत्यार्थ प्रकाश और पंचकोश की अवधारणा

सत्यार्थ प्रकाश के नवम समुल्लास में महर्षि दयानंद ने लिखा है कि सत पुरुषों के संग से विवेक अर्थात सत्य सत्य धर्म- अधर्म कर्तव्य -अकर्तव्य का निश्चय अवश्य करें,पृथक पृथक जानें । जीव पंचकोश का विवेचन करें। पृथम कोष जो पृथ्वी से लेकर अस्थिपर्यंत का समुदाय पृथ्वीमय है उसको अन्नमय कोष कहते हैं ।”प्राण” अर्थात […]

Categories
धर्म-अध्यात्म

वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून और महात्मा दयानन्द वानप्रस्थ”

ओ३म् -मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। वैदिक साधन आश्रम की स्थापना सन् 1949 में हुई थी। इसके संस्थापक बावा गुरुमुख सिंह जी और उनके श्रद्धास्पद आर्यसंन्यासी महात्मा आनन्द स्वामी थे। आश्रम में सभी प्रकार व श्रेणियों के साधक-साधिकायें आते रहे हैं। आश्रम में वर्ष में दो बार ग्रीष्मोत्सव एवं शरदुत्सव आयोजित किये जाते हैं। हम वर्ष […]

Categories
धर्म-अध्यात्म

भटकने से बचा सकते हैं आपको ये धार्मिक शब्द

आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने आर्योद्देश्यरत्नमाला नामक एक छोटी सी पुस्तक लिखी है। इस लघु ग्रंथ में महत्वपूर्ण व्यावहारिक शब्दों (आर्यों के मंतव्यों) की परिभाषाएं प्रस्तुत की गई है जो वेदादि शास्त्रों पर आधारित हैं। इसमें 100 मंतव्यों (नियमों) का संग्रह है अर्थात सौ नियमों रूपी रत्नों की माला गूंथी गई […]

Categories
धर्म-अध्यात्म

जीव और ब्रह्म एक(आत्मा सो परमात्मा) कहावत का विश्लेषण*:

मान्यताएं; इस विषय में दो परस्पर विरोधी मान्यताएं है । 1.ईश्वर और जीव एक ही है ,ये कहना है शंकराचार्य जी का 2.जीव और ब्रह्म एक ही नहीं है अपितु दोनों अलग-अलग पदार्थ हैं जिनके गुण कर्म स्वभाव भिन्न-भिन्न हैं | विश्लेष्ण: पहली मान्यता ठीक ही नहीं ,पूरी तरह से अस्वीकार्य है| क्योंकि जीव कभी […]

Categories
धर्म-अध्यात्म

क्या ईश्वर जीव के भविष्य में करने वाले कर्मों को जानता है?

#डॉविवेकआर्य धार्मिक जगत में एक प्रश्न सदा से उठता रहता है कि क्या ईश्वर जीव के भविष्य में करने वाले कर्मों को जानता है? यह प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण है क्यूंकि प्राय: लोग ईश्वर को त्रिकालदर्शी बताते है। स्वामी दयानन्द इस विषय पर सत्यार्थ प्रकाश के सप्तम समुल्लास में इस प्रकार से विवेचना करते हैं। “(प्रश्न) […]

Categories
धर्म-अध्यात्म

क्या अग्निहोत्री यज्ञ (हवन) किसी विशेष अवसर पर या कार्य के लिए ही करना चाहिए*

पिछले दिनों एक संस्थान के वैदिक विद्वान सदस्य ने संस्था के अधिकारियों से आग्रह किया कि वे पुर्णिमा को उस संस्था में यज्ञ का प्रावधान करें और संस्था में यज्ञ करने की अनुमति दें। उन्हें इस अनुमति के लिए बड़ा संघर्ष करना पड़ा और अंत में दिवंगत आत्माओं के नाम पर यज्ञ हुआ। अब एक […]

Categories
धर्म-अध्यात्म

अंधविश्वास : इतनें लोग मन्दिरों में जाते हैं, क्या वे सभी अंधविश्वासी अंधश्रद्धालु है?

निर्मुलन : मंन्दिरों में जाने वाले सभी अंधविश्वासी या अंधश्रद्धालु नहीं होते । ये सब दर्शनीय स्थान है जहाँ सभी प्रकार के लोग जाते हैं । ईश्वर में आस्था रखने वाले लोग मंन्दिर जायें या नहीं जायें – इससे ईश्वर को कोई फर्क नहीं पड़ता ।जो लोग ईश्वर में विश्वास करते हैं तथा श्रद्धा रखते […]

Categories
धर्म-अध्यात्म

महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा शुद्धि का पुन: वर्णन

एक हिन्दू (आर्य) धर्म की रक्षा के लिए शुद्धिस्वामी दयानन्द सरस्वती की सर्वथा नवीन, मौलिक और क्रान्तिकारी देन थी। इसके प्रादुर्भाव का इतिहास अतीव रोचक है और इस बात को स्पष्ट करता है कि स्वामी जी अपने समय की परिस्थितियों को देखते हुए किस प्रकार मौलिक चिन्तन करते थे और तत्कालीन सामाजिक समस्याओं के समाधान […]

Categories
धर्म-अध्यात्म

आध्यात्मिक राष्ट्रीयता के जनक हैं महर्षि अरविन्द घोष

शिवकुमार शर्मा महर्षि अरविंद घोष एक महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने के साथ-साथ योगी, दार्शनिक, कवि और प्रकांड विद्वान भी थे। उनके क्रांतिकारी विचार और भाषणों में ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों की कड़ीआलोचना शामिल रहती थी और समाचार पत्र “वंदे मातरम” तो अंग्रेजी शासन के विरुद्ध आग उगलता था। अलीपुर बम कांड में गिरफ्तार […]

Exit mobile version