शोकों से तरणा तुझे, प्रभु -मिलन की चाह । माया के फंसा भवॅर में, भूला अपनी रहा॥1899॥ शेर ख़ुदा जब किसी को बढ़ाना चाहता है , तो उसकी शख्सियत में नायब हुनर देता है । अपने तो क्या गैर भी तारीफ करते है, ज़माना नाज़ करता है॥1900॥ पद की शोभा शख्सियत, हाथ की शोभा दान […]
श्रेणी: बिखरे मोती
पक्षी बैठे वृक्ष पर, एक देखे एक खाय । जैसा जिसका कर्म है, वैसे ही फल पायं ॥1888 ॥ फूलों में है सुगन्ध तू , तारों में प्रकाश । हृदय में धड़कन तूही, प्रमाणित करता सांस॥1889॥ लालच जड़ है पाप की , क्रोध है वन की आग । काम खाय सौन्दर्य को , अहंकार है […]
मैं हँसु मैया हँसे, मैं रोऊँ माँ रोय। ज़रा कराहुँ दर्द में, रात-रात ना सोय॥1837॥ मैया जीवित है यदि, बूढ़ा भी बच्चा होय। माँ की ताड़ना प्यार है, बेशक गुस्सा होय॥1838॥ माँ के आशीर्वाद से, पूरे हों सब काज। बाल शिवा से बन गए, छत्रपति महाराज॥1839॥ माँ के आंचल में छिपी, षट – सम्पत्ति की […]
माँ की महिमा :- माँ के चरणों में झुके, जितना नर का माथ। उतना ही ऊँचा उठे, ईश्वर पकड़े हाथ॥1821॥ जन्नत माँ की गोद है, जीते जी मिल जाय। माँ का नहीं मुकाबला, सब बौने पड़ जाएं॥1822॥ माँ का दिल ममता भरा, वात्सल्य का कोष। कोमल है नवनीत सा, स्वर्ग सी है आगोश॥1823॥ माँ होती […]
बिखरे मोती तुच्छ जन संसार में, करें तुच्छता की बात:- तुच्छ जन संसार में, करे तुच्छता की बात। सत्पुरुष सहते रहें, भिन्न – भिन्न आघात॥1802॥ नीच- किच से बच रहो, करो नहीं तकरार। न जाने किस वक्त ये, इज्जत देंय उतार॥1803॥ महिमा मण्डित गुण करे, हीरा सा अनमोल। वाणी से मत पाप कर, तोल -तोलकर […]
बिखरे मोती मंगल – सूत्र का महत्व:- मांगालिक मर्यादा का, द्योतक मंगल – सूत्र। सुहाग और सौभाग्य को, करता परम पवित्र॥1783॥ मानव होता मौन है, जब अनुभव पक जाय। आधे – अधूरे ज्ञान से, अधिक बोलता जाय॥1784॥ बेशक गहरी रात हो, अन्त में हो प्रभात। हिम्मत से तू काम ले, बनेगी बिगड़ी बात॥1785॥ एक सहारा […]
जब व्यक्ति का उत्थान-पतन सन्निकट होता है, तो वाणी का प्रभाव तदनुसार घटता-बढ़ता रहता है:- वाणी कभी औषध बने, कभी करे है घाव। घटता-बढ़ता चाँद सा, वाणी का प्रभाव॥1760॥ वाणी ऐसी बोलिये, जो दिल में देय उतार। ऐसी कभी न बोलिये, जो दिल में दे उतार॥1761॥ वाणी में शुद्धि नहीं, बिगड़ जाय व्यवहार। आकर्षण रहता […]
व्यक्ति का चिन्तन उसे, देता है व्यक्तित्व । चिन्तन आला दर्जे का, ऊँचा रखे अस्तित्व॥1721॥ चिन्तन जैसा होत है, वैसा हो व्यक्तित्व। सुई संग धागा चले, वृत्ति संग के कृतित्त्व ॥1723॥ चिन्तन मति बिगारिये, चिन्तन है बुनियाद्। ऊँचे चिन्तन से उठै, नीचे से बर्बाद॥1723॥ चिन्तन निर्मल राखिए, प्रभु की पहली पसन्द। निर्मल चिन्तन से मिले, […]
भक्ति चढ़ै परवान तो , वाणी हो खामोश । आँखियों से आंसू बह, मनुआ हो निर्दोष ॥1705 ॥ रसों का रस वह ईश है, भज उसको दिन – रात । एक दिन ऐसे जायेगा, ज्यों तारा प्रभात् ॥ 1706॥ नाम जन्म स्थान को, जाने प्राणाधार । संसृति से मुक्ति का , बिरला करे विचार॥1707॥ जीवन […]
भूल जा कड़वे अतीत को, मत कर उसको याद। सोच समय सम्पत्ति को, कर देगा बर्बाद॥1687व भक्ति के संदर्भ में:- एक जाप एक ध्यान हो, मत भटकै चहुँ ओर। हिये में आनन्द स्रोत है, सुन अनहद का शोर॥1688॥ भगवद – भाव में जी सदा, जो चाहै कल्याण। यही कमाई संग चले, जब निकलेंगे प्राण॥1689॥ दुनिया […]