प्रभु-प्रदत्त विभूति अर्थात् विलक्षणता के संदर्भ में:- “शेर” तौफीक है ख़ुदा की, ये मुनव्वर जो तेरा। नादानगी से कहता, ये मुनव्वर है मेरा॥ है जुगनू जैसा डेरा , तू सिर झुका कर कह दे, जो भी दिया है तेरा॥ भाव यह है किं प्रभु-प्रदत्त विभूतियाँ अर्थात- विलक्षणताएँ परम-पिता परमात्मा की दिव्य दौलत हैं। भगवान कृष्ण […]
Category: बिखरे मोती
रसना रूपी कमान से, चले शब्द के तीर। कोई हियो घायल करे, कोई बंधावे धीर॥2271॥ जब प्रभु-कृपा बरसती है- शमा रोशन हौ गई, रहमत बरसी आज। तू और मैं का भेद ना, मनुआ करता नाज़॥2272॥ पीड़ा भरी पुकार प्रभु अवश्य सुनते है- तुझे पुकारू सुन मेरी, दर्द भरी आवाज। रक्षक मेरा है तू ही, प्रभु […]
कभी लावा भू-गर्भ में, कभी शिखर बन जाय। बर्फ की चादर मिल गई, हरियाली छुट जाय॥2264॥ प्रभु से जब भी मांगो तो इन तीनो को मांगो दिव्य गुणो से चित मेरा, होय सदा भरपूर। सरस्वती हो वाक में, आत्मा में हरि – नूर॥2265॥ लालच बुरी बलाय है लालच में मत पाप कर, भोगेगा तू आप। […]
पंचभूत से जग रचा, रचनाकार महान। स्थूल समाया सूक्ष्म में, मन होता हैरान॥2257॥ वेद ने विधाता को हिरण्यगर्भः क्यों कहा:- क्षितिज से उस पार क्या, क्या उनका आधार। सृष्टि तेरे गर्भ में, पालक सर्वाधार॥2258॥ विशेष : देवताओ को भूख क्यो नही लगती- देवत्त्व को जो प्राप्त हो हो, उड़ै पार्थिव भूख। तन्मात्राओं से तृप्त हो, […]
बिखरे मोती : प्रभु-मिलन की चाह है तो….
अब सफ़र ज्यादा नही, आ लिया वक्त अकीर। ब्रहम ऋता बुद्धि बने, तो जग जाय जमीर॥2243॥ भगवद्-भाव में रहना है तो निन्दा- चुगली छोड़ के, ले रसना हरि नाम। नेकी कर संसार में, जो चाहे हरि-धाम॥2244॥ जब स्वतः ही आनन्द की प्राप्ति होती है:- सत् चर्चा सत् कर्म कर, जिस क्षण मन लग जाय। सत् […]
संतो को संसार में, भेजता है करतार। जाओ सृष्टि संवार दो, करना तुम उपकार॥2225॥ सन्त तो झरने जान ज्ञान के, जहाँ प्रक्तै सुख दे। अज्ञान अभाव अन्याय को, देखत ही हर लें॥2226॥ संसार में कैसे रहो :- हृदय में सद्भाव रख, अपना हो संसार। दुर्गणों को त्याग दे, निज प्रतिबिम्ध बिहार॥2227॥ आनन्द की प्राप्ति कैसे […]
बिखरे मोती: आनन्द की खोज में…
आनन्द की खोज में… महलों में आनन्द नहीं, मिलता किसी कुटीर। आनन्द की खोज में, गौतम हुए फकीर ।।2202॥ आनन्द कहाँ मिलता है:- जग सुविधा ही दे सके, नहीं देता. आनन्दा। बैठ प्रभु की गोद में, मिले अतुलित आनन्द।।2203॥ यदि आनन्द की अभिच्षा है तो :- खो-जा हरि के नाम में, पा अतुलित आनन्द। मत […]
बिखरे मोती : यदि भगवद् धाम की चाह है –
बिखरे मोती यदि भगवद् धाम की चाह है – भक्ति का पाथेय ले, चल मंजिल बड़ी दूर। यही सफर में काम दे, मत चाटे जग धूर॥2193॥ प्रभु कृपा का पात्र बनना है तो- पल पल तेरा कीमती, वृथा मति गवाय। भक्ति भलाई में लगा, दाता खुश हो जाय॥ 2194॥ श्रेय मार्ग ही प्रभु – मिलन […]
बिखरे मोती: जो प्रभु के समीप रहते हैं-
ईश समर्पित हो रहे, हृदय में सद्भाव। प्रेम – भाव आदर बड़े, मीठा सरल स्वभाव॥2186॥ मन की शक्ति के संदर्भ में- रुचि क्षमता को जानके, मन को लक्ष्य पै डाट। मनोरथ करता पूर्ण है, शक्ति- स्रोत विराट॥2187॥ प्रभु कृपा के संदर्भ मे- हरि – कृपा बिन ना मिले, यश-धन और सम्मान। अर्जुन जीता युद्ध को, […]
मिथ्याचार से सदाचार ही श्रेयस्कर है- मिथ्याचार को छोड़ कै, धारण कर सदाचार। सम्यक संयम विवेक से, करना सद्व्यवहार॥2165॥ संसार में परमपिता परमात्मा सबसे बड़ा सहारा है – आश्रय ले हरि ओ३म का, सबसे बड़ा सहाय। सीधा जा बैकुंठ को, ज्यो उसका हो जाय॥2166॥ भक्ति – मार्ग अति कठिन है इसलिए सदैव सतर्क रहिए- भक्ति […]