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बिखरे मोती

ध्यान लगा हरि ओ३म् मे, हो करके योगस्थ।

बिखरे मोती जिसे वेद ने ‘रसौ वै स : ‘ कहा, वह कैसे मिले :- ध्यान लगा हरि ओ३म् मे, हो करके योगस्थ। रसों का रस मिल जायेगा, जब होगा आत्मस्थ ॥2502॥ योगस्थ अर्थात् योग में स्थित योगयुक्त | आत्मस्थ अर्थात अपनी आत्मा में रमन करना, आत्मा में स्थित होना, आत्मा का अपने स्वभाव लौटना […]

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बिखरे मोती

बिखरे मोती ,: आत्मवान से आप्तकाम कोई बिरला ही होता है –

आत्मवान से आप्तकाम, विरला हो कोई शूर। परमधाम की प्राप्ति, नहीं है उससे दूर॥2495॥ आत्मवान अर्थात् अपनी आत्मा का स्वामी यानि की आत्मानुकुल आचरण करने वाला। आप्तकाम अर्थात जिसकी सभी इच्छाएँ अथवा कामनाएं पूर्ण हो गई हो, कोई कामना शेष न हो ऐसे साधक को आप्तकाम कहते हैं। विशेष ‘.शेर’ बुढ़ापे के संदर्भ में:- कौन […]

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जब तक मन में कामना, लेगा जनम अनन्त

आवागमन का अन्त कैसे हो :- जब तक मन में कामना, लेगा जनम अनन्त। मन हो जाय अकाम तो, हो जन्म मरण का अन्त॥2491॥ “शेर” बोलो तो कुछ ऐसा बोलो – कौवे की तरह, कांव-कांव करने से, क्या फायदा? बोलो तो कुछ ऐसा बोलो, ताकि सनद रहे॥2492॥ सनद रहे अर्थात् वह प्रमाण रहे विशेष ‘शेर’ […]

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बिखरे मोती

जैसा मन में विचार हो, वैसा वो वाणी – व्यवहार।

व्यवहार का आधार आपकी वाणी है – जैसा मन में विचार हो, वैसा वो वाणी – व्यवहार। जैसा लोक व्यवहार हो, वैसा हो संसार॥2481॥ सांसारिक सम्बन्धों का आधार समवेदनाएँ हैं- समवेदना संसार में, रिश्तो का आधार । करुणा प्रेम की ज्योति से, दूर करें अन्धकार॥2482॥ 2) संवेदनाएँ अमूर्त है किन्तु उनका प्रभाव मूर्त है :- […]

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संसार में जीना है तो अनासक्त भाव से जीओ

संसार में जीना है तो अनासक्त भाव से जीओ :- अनासक्त होकर जीओ, मत मोह – माया पाल। हंस उड़ेगा एक दिन, सूना होगा ताल ॥2472॥ आनंद का स्रोत कौन है – आकर्षण संसार में, किन्तु नही आनंद। आनन्द का स्रोत तो, केवल सच्चिदानन्द॥2471॥ आत्मा कब धन्य होती है – अन्तर्दृष्टि से निरख, निजमनु आकाहाल। […]

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आत्म संतोष कैसे मिले

बिखरे मोती आत्म संतोष कैसे मिले :- ब्रह्मनिष्ठ होकर मिले, आत्मा को संतोष । सिन्धु समाया बिन्धु में, सुख शान्ति का कोय॥2464॥ अहंकारी को स्वर्ग सम्भव नहीं :- सम्भव है सुई नोक से, निकले ॐ की डार । स्वर्ग द्वार पहुँचे नहीं, जिसको हो अहंकार॥2465॥ कस्तूरी की सुगन्ध ज्यों, स्वतः ही प्रकट होय । त्यों […]

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फल पड़े खुशबू उठै, खग आकै मंडरायं।

बिखरे मोती गुणवान व्यक्ति के गुणो की जब खुशबू फैलती है,तो गुण- ग्राहक स्वयं उसे ढूंढ लेते हैं फल पड़े खुशबू उठै, खग आकै मंडरायं। माली सींचे सौ घड़ा, स्वाद विहम ले जाय॥2452॥ खग,विहग अर्थात पक्षी कुल की मर्यादा की रक्षा सर्वदा प्राणपण से करो इज्जत एक बार जाए तो, लौटकै फिर ना आय। खानदान […]

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इंद्रियों की शक्तियों का स्रोत क्या है! और कौन इन शक्तियों को पिण्ड में समेट लेता है?

” दोहा” तत्वार्थ- हमारे धर्म – शास्त्रों में ऋषियों ने बताया है कि ब्रहमाण्ड़ में जो देवता : सूर्य, चन्द्र, जल, अग्नि माने गए है इनका संमवर्ग वायु है अर्थात् वायु इनकी शक्ति को समेट भी लेता है और इनका रक्षण भी करता है। जैसे – वायु के प्रकोप से तेज अंदड़ अथवा बादल छाने […]

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बिखरे मोती

जो ब्रह्म में रमण करते हैं,उनके संदर्भ में –

‘शेर’ उन आंखों की अजीब गहराई में , समन्दर डूब जाना चाहता है। जो रूहानी रहा में, तेरा ही रूप होना चाहता है॥2418॥ ‘ सत्यप्रकाश कानपुर’ शान्ति के संदर्भ में:- शान्ति सुख की नींव है, मत खोवे नादान। बिना नीव कैसे बने, आलीशान मकान॥2019॥ षट सम्पत्ति के संदर्भ में – शान्ति से ही विकास है, […]

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बिखरे मोती

मनुष्य की कृति ही उसकी स्मृति बनती है:-

मिट्टी सबको खा गई, रावण बचे ना राम। पीछे दो ही रह गये, अच्छे बुरे दो काम॥2407॥ ब्रह्म की उपस्थिति के संदर्भ में ” शेर ” तेरी खुशबू से तेरे होने का, अहसास होता है। जैसे पौ फटने पर, सूर्य का आभास होता है॥2408॥ परमपिता परमात्मा के स्वरूप के संदर्भ में- शरणागति होकर मिले, जीव […]

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