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बिखरे मोती

बंदगी से खुदा नही मिलता : राही तू आनंद लोक का

गतांक से आगे…हे भारती! तू उन ऋषियों की संतान है जिन्होंने मानव मात्र के लिए आदर्श उपस्थित किये थे। इसलिए तेरा जीवन आज भी आदर्शों से ओतप्रोत होना चाहिए-चौबीस घंटे जी इस राग में।समर्पण, अभिप्सा और त्याग में।।अपना, वेदों का ये विधानरे मत भटकै प्राणी……..19साधक को चौबीस घंटे किन भावों के साथ जीना चाहिए।1. अभिप्सा […]

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‘विभूति शब्द की व्याख्या’ : राही तू आनंद लोक का

गतांक से आगे…उदाहरण के लिए श्रद्घा और प्रेम को ले लीजिए। हृदय के अंदर चित्त में अवस्थित ये दो मोती ऐसे हैं जो सारे संसार के संबंधों को आवेष्ठित किये हुए हैं। माता-पिता अपनी संपत्ति धन दौलत के भंडार को प्यार और श्रद्घा के वशीभूत हो अपनी संतान को खुशी खुशी दे देते हैं, चाहे […]

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नदी संरक्षण से जुड़ा महाकुंभ

हजारों सालों से चली आ रही अपनी परम्परा के गौरवशाली इतिहास के अनुरूप एकबार फिर महाकुंभ का आरम्भ हो चुका है । वार्षिक कुम्भ का आयोजन तो प्रतिवर्ष किया जाता है, पर प्रत्येक बारह वर्ष में, एक विशेष ग्रह स्थिति आने पर, आयोजित होने वाले इस महाकुंभ का विशेष महत्व है । वहाँ उपस्थित प्रशासन […]

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‘विभूति शब्द की व्याख्या’ : राही तू आनंद लोक का

गतांक से आगे… जयो अस्मि-विजय प्रत्येक प्राणी को प्रिय लगती है। विजय की यह विशेषता भगवान की है। इसलिए विजय को भगवान ने अपनी विभूति बताया है। अत: अपने मन के अनुसार अपनी विजय होने से जो सुख होता है, उसका उपयोग न करके उसमें भगवदबुद्घि करनी चाहिए कि विजय रूप में भगवान आए हैं। […]

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‘विभूति शब्द की व्याख्या’ : राही तू आनंद लोक का

गतांक से आगे…स्वर और व्यंजन दोनों में अकार मुख्य है। अकार के बिना व्यंजनों का उच्चारण नही होता। इसलिए भगवान ने अकार को अपनी विभूति बताया है।अहमेवाक्षय: काल-जिस काल का कभी क्षय नही होता अर्थात जो कालातीत है और अनादि अनंतरूप है। वह काल भगवान ही है। ध्यान रहे सर्ग और प्रलय की गणना तो […]

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‘विभूति शब्द की व्याख्या’ : राही तू आनंद लोक का

गतांक से आगे…आठवां श्लोक, पृष्ठ 4887. ‘पुण्यो गन्ध पृथिव्याम’- से तात्पर्य है पृथ्वी गंध तन्मात्रा से उत्पन्न होती है। भगवान कहते हैं-हे अर्जुन! पृथ्वी में, वह पवित्र गंध मैं ही हूं। यहां गंध के साथ पुण्य का विशेषण देने का तात्पर्य है-पवित्र गंध तो पृथ्वी में स्वाभाविक रूप से रहती है, पर दुर्गंध किसी विकृति […]

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‘विभूति शब्द की व्याख्या’ : राही तू आनंद लोक का

गीता के दसवें अध्याय का 16वां श्लोक-पृष्ठ 692 दिव्या आत्मविभूतय:, अर्थात भगवान कृष्ण यहां अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं, हे पार्थ! विभूतियों को दिव्या कहने का तात्पर्य है कि संसार में जो कुछ विशेषता दिखायी देती है, वह मूल में दिव्य परमात्मा की ही है, संसार की नही। अत: संसार की विशेषता देखना भोग […]

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‘यमस्य लोका दध्या बभूविथ’ : राही तू आनंद लोक का

गतांक से आगे….आहुतियां कौन सी हैं? वे हैं-उज्जवन्ति प्रदीप्त हो उठने वाली, अतिनेदन्ते-चट चटाने वाली, अधिशेरते-हवन कुण्ड की तलहटी में जा सोने वाली। घी अग्नि में पड़ते ही उसे प्रदीप्त कर देता है, सामग्री समिधाओं पर पड़ी चट चटाती है। कुछ आहुति कुण्ड के तले में जाकर आराम से पड़ी रहती है। ठीक इसी प्रकार […]

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‘यमस्य लोका दध्या बभूविथ’ : राही तू आनंद लोक का

गतांक से आगे….नाम अनंत है-तरह तरह के नाम मनुष्य अपने पीछे छोड़ सकता है, दिव्य गुण भी अनंत हैं, इन दिव्य गुणों के कारण मनुष्य जैसा चाहे वैसा ही नाम पीछे छोड़ सकता है। जो इस रहस्य को जान जाता है वह मृत्यु को जीत लेता है।(2.) आर्तभाग ने फिर अगला प्रश्न किया-हे मुनिश्रेष्ठ! अच्छा […]

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‘यमस्य लोका दध्या बभूविथ’ : राही तू आनंद लोक का

गतांक से आगे…..तुझसा, प्राणी नही धनवान,रे मत भटकै प्राणी……..(16)पिंजरा मिल्यो है नौ द्वार को।सुन पंछी की पुकार को।।इसकी मूक तडफ़ पहचान,रे मत भटकै प्राणी……..(17)देखता रहा है, तन के रूप को।जानाा कभी ना, निज के स्वरूप को।। तू है, दिव्य गुणों की खानरे मत भटकै प्राणी……..(18)चौबीसों घंटे जी इस राग में।समर्पण, अभिप्सा और त्याग में।।अपना, वेदों […]

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