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बिखरे मोती

बिखरे मोती-भाग 3

देखे नही पर दोष को… तीर, कांच तन में घुसें,तो देवें तुरत निकाल।बुरा बोल घट में चुभै,दरद करै विकराल ।। 38।। जाको दुख दें देवगण,बुद्घि को हर लेत।वाणी का संयम घटै,कष्टï मीत को देत।। 39।। अर्थ, काम में धर्म का,गर होवै समावेश।धाम मिलै फिर मोक्ष का,और कहलावै दरवेश ।। 40।। मृत्यु खाती प्राण को,रूप बुढ़ापा […]

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बिखरे मोती-भाग 2

राजा रक्षक राज का,पशु का रक्षक मेघ।पत्नी का रक्षक हो पति,ब्राह्मण रक्षक वेद ।। 19।। रूप की रक्षा मसाज से,सत्य से रक्षित धर्म।विद्या रक्षित धर्म।विद्या रक्षित अभ्यास से,कुल रक्षित सत्कर्म ।। 20।। देख पराए सुख को,जलता जो इंसान।सूखा जैसा रोग है,मिलता नही निदान ।। 21।। धन विद्या और मित्रजन,सबको दे भगवान।सत्पुरूषों की शक्ति ये,दुष्ट करे […]

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बिखरे मोती-भाग 1

ऐसे जनों की नाव की, हरि बनै पतवार (प्रस्तुत काव्यमाला साहित्य जगत के स्वनामधन्य हस्ताक्षर प्रो. विजेन्द्र सिंह आर्य के स्वरचित दोहों के रूप में है, जिन्हें हम यहां सुबुद्घ पाठकों की सेवा में सादर प्रस्तुत कर रहे हैं।श्री आर्य जी की काव्य रूप में इससे पूर्व ‘मेरे हृदय के उदगार’ नामक पुस्तक प्रकाशित हो […]

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दु:खों की अत्यंत निवृत्ति का अर्थ प्रकृति बंधन से छूटना है

मोक्ष का सच्चा स्वरूप दो प्रकार का है, पहला स्वरूप है, दुखों से छूट जाना और दूसरा स्वरूप है आनंद प्राप्त करना। दुखों की अत्यंत निवृत्ति का अर्थ प्रकृति बंधन अर्थात मायावेष्टïन से छूट जाना है। स्थूल और सूक्ष्म शरीर से जब छुटकारा मिल जाता है तब दुखों का अत्यंत अभाव हो जाता है। न्याय […]

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आओ समझें: गायत्री संध्या- का वास्तविक रहस्य

गायत्री मंत्र की बहुत मान्यता है, उसे सावित्री मंत्र भी कहते हैं, गुरूमंत्र तथा महामंत्र भी कहते हैं, वास्तव में गायत्री यह छंद है, जिसमें 24 अक्षर रहते हैं। इस गायत्री मंत्र में तत्सवितु:… प्रचोदयात पर्यंत 23 अक्षर ही है, अत: इसे निचृद गायत्री कहते हैं। अस्तु। इस गायत्री मंत्र को पढ़ने से पूर्व उसमें […]

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अपनों के द्वारा किया गया अपमान सहा नही जाता

एक आख्यायिका है कि किसी शहर में लुहार और सुनार की दुकानें पास पास थीं। सुनार सोने के तार को लकड़ी की हथौड़ी से पीटता था किंतु आवाज बहुत कम होती थी। इधर लुहार जब लोहे को लोहे की हथौड़ी से पीटता था तो आवाज बहुत दूर दूर तक जाती थी।सहसा, सोने ने लोहे से […]

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दुर्योधन! कृष्ण की तीन बातों को कभी सहजता से मत लेना

भगवान कृष्ण जब शांति दूत बनकर हस्तिनापुर आए और उन्होंने दुर्योधन से पांडवों का राज्य लौटाने को कहा, यहां तक कि पांडवों को पांच गांव देने तक का भी प्रस्ताव रखा तो दुर्योधन ने पांच गांव तक भी देने से मना कर दिया। इस पर भगवान कृष्ण मुस्कुराये और चल दिये। इस घटना से आशंकित […]

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हे दयानिधे तेरा धाम मेरा आकर्षण है

अब अध्याय अर्थात पिण्ड (Microscopic Point of view) की दृष्टि से सुनो। पिण्ड अर्थात शरीर की दृष्टि से प्राण ही संवर्ग है, सब इंद्रियों को अपने अंदर समा लेने वाला है। जब मनुष्य सोता है तो वाणी प्राण को लौट जाती है, प्राण को ही चक्षु प्राण को ही स्रोत, प्राण को ही मन लौट […]

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सुमन, दुर्मन, अमन – मन की तीन अवस्थाएं

1.सुमन : जैसे सूर्य की किरणें मुरझाए कमल को नयी ऊर्जा देकर खिला देती हैं। ठीक इसी प्रकार जब मनुष्य का मन भगवान से जुड़ता है तो ईश्वर के दिव्य गुणों की तरंगें मनुष्य के मुरझाए मन को नयी ऊर्जा देकर उत्साह से भर देती है, जैसे चुंबक लोहे को अपनी तरंगों से अपने गुण […]

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मेरे मालिक की महान आगोश: राही तू आनंद लोक का

गतांक से आगे…कितनी महान है मेरे मालिक की आगोश?भूमिका-चित्त का चैन प्रभु के चरणों में है, न कि सांसारिक वस्तुओं के संग्रह में।बात सरलता से समझ में आए इसलिए एक दृष्टांत को उद्घृत करना चाहता हूं। किसी शहर में दो व्यक्ति रहते थे। एक शायर था, एक संपन्न था। शहर बहुत सुंदर था। शहर के […]

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