गायत्री मंत्र की बहुत मान्यता है, उसे सावित्री मंत्र भी कहते हैं, गुरूमंत्र तथा महामंत्र भी कहते हैं, वास्तव में गायत्री यह छंद है, जिसमें 24 अक्षर रहते हैं। इस गायत्री मंत्र में तत्सवितु:… प्रचोदयात पर्यंत 23 अक्षर ही है, अत: इसे निचृद गायत्री कहते हैं। अस्तु। इस गायत्री मंत्र को पढ़ने से पूर्व उसमें […]
श्रेणी: बिखरे मोती
एक आख्यायिका है कि किसी शहर में लुहार और सुनार की दुकानें पास पास थीं। सुनार सोने के तार को लकड़ी की हथौड़ी से पीटता था किंतु आवाज बहुत कम होती थी। इधर लुहार जब लोहे को लोहे की हथौड़ी से पीटता था तो आवाज बहुत दूर दूर तक जाती थी।सहसा, सोने ने लोहे से […]
भगवान कृष्ण जब शांति दूत बनकर हस्तिनापुर आए और उन्होंने दुर्योधन से पांडवों का राज्य लौटाने को कहा, यहां तक कि पांडवों को पांच गांव देने तक का भी प्रस्ताव रखा तो दुर्योधन ने पांच गांव तक भी देने से मना कर दिया। इस पर भगवान कृष्ण मुस्कुराये और चल दिये। इस घटना से आशंकित […]
अब अध्याय अर्थात पिण्ड (Microscopic Point of view) की दृष्टि से सुनो। पिण्ड अर्थात शरीर की दृष्टि से प्राण ही संवर्ग है, सब इंद्रियों को अपने अंदर समा लेने वाला है। जब मनुष्य सोता है तो वाणी प्राण को लौट जाती है, प्राण को ही चक्षु प्राण को ही स्रोत, प्राण को ही मन लौट […]
1.सुमन : जैसे सूर्य की किरणें मुरझाए कमल को नयी ऊर्जा देकर खिला देती हैं। ठीक इसी प्रकार जब मनुष्य का मन भगवान से जुड़ता है तो ईश्वर के दिव्य गुणों की तरंगें मनुष्य के मुरझाए मन को नयी ऊर्जा देकर उत्साह से भर देती है, जैसे चुंबक लोहे को अपनी तरंगों से अपने गुण […]
गतांक से आगे…कितनी महान है मेरे मालिक की आगोश?भूमिका-चित्त का चैन प्रभु के चरणों में है, न कि सांसारिक वस्तुओं के संग्रह में।बात सरलता से समझ में आए इसलिए एक दृष्टांत को उद्घृत करना चाहता हूं। किसी शहर में दो व्यक्ति रहते थे। एक शायर था, एक संपन्न था। शहर बहुत सुंदर था। शहर के […]
गतांक से आगे…हे भारती! तू उन ऋषियों की संतान है जिन्होंने मानव मात्र के लिए आदर्श उपस्थित किये थे। इसलिए तेरा जीवन आज भी आदर्शों से ओतप्रोत होना चाहिए-चौबीस घंटे जी इस राग में।समर्पण, अभिप्सा और त्याग में।।अपना, वेदों का ये विधानरे मत भटकै प्राणी……..19साधक को चौबीस घंटे किन भावों के साथ जीना चाहिए।1. अभिप्सा […]
गतांक से आगे…उदाहरण के लिए श्रद्घा और प्रेम को ले लीजिए। हृदय के अंदर चित्त में अवस्थित ये दो मोती ऐसे हैं जो सारे संसार के संबंधों को आवेष्ठित किये हुए हैं। माता-पिता अपनी संपत्ति धन दौलत के भंडार को प्यार और श्रद्घा के वशीभूत हो अपनी संतान को खुशी खुशी दे देते हैं, चाहे […]
हजारों सालों से चली आ रही अपनी परम्परा के गौरवशाली इतिहास के अनुरूप एकबार फिर महाकुंभ का आरम्भ हो चुका है । वार्षिक कुम्भ का आयोजन तो प्रतिवर्ष किया जाता है, पर प्रत्येक बारह वर्ष में, एक विशेष ग्रह स्थिति आने पर, आयोजित होने वाले इस महाकुंभ का विशेष महत्व है । वहाँ उपस्थित प्रशासन […]
गतांक से आगे… जयो अस्मि-विजय प्रत्येक प्राणी को प्रिय लगती है। विजय की यह विशेषता भगवान की है। इसलिए विजय को भगवान ने अपनी विभूति बताया है। अत: अपने मन के अनुसार अपनी विजय होने से जो सुख होता है, उसका उपयोग न करके उसमें भगवदबुद्घि करनी चाहिए कि विजय रूप में भगवान आए हैं। […]