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बिखरे मोती

बिखरे मोती-भाग 13

सत्संगति पारस-मणि, सभी गुणों की खान आत्मज्ञानी पुरूषार्थी,हों नही भाग्य अधीन।साहस अध्यवसाय से,खोजें मार्ग नवीन ।। 223।। ऐश्वर्य को प्राप्त हो,जो पुरूषार्थी होय।याचक बन जीवन जिए,भाग्य भरोसे जो सोय ।। 224।। अपनी कमी को ढूंढ़कर,जो जन करै निदान।चरण चूमती सफलता,वो नर बनै महान।। 225।। वन में रण में भंवर में,विपदा में फंस जाए।ढाल बनै रक्षा […]

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बिखरे मोती-भाग 12

विपदा में वफादार हो, कभी न छोडै़ हाथ राजा की निंदा करै,अनृत करै व्यवहार।बड़ों से बोलै झूठ जो,पतन के हैं आसार ।। 204।। अपनी करै बड़ाई जो,और असूया दोष।दम्भ बढ़ावै धन घटै,और जगावै रोष।। 205।। असूया-दूसरों के गुणों में भी दोष देखना जड़ता और प्रमाद हो,मन हो चलायमान।लालची और वाचाल हो,विद्या से वंचित जान ।। […]

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बिखरे मोती-भाग 11

जिस रसना पै हरि बसै, मत बो उस पर शूल माया से तदाकार हो,बढ़ता गया अहंकार।तदाकार हो ज्योति सेमिलै मुक्ति का द्वार ।। 186।। जिस रसना पै हरि बसै,मत बो उस पर शूल।रसना को कर काबू में,बरसते रहें नित फूल।। 187।। यातरा है अनंत की,बहुत ही ऊंचा ध्येय।सफर सुहाना तब बनै,बांध पीठ पाथेय ।। 188।। […]

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बिखरे मोती-भाग 10

भक्ति की पहचान है, जब गिर जाए गुरूर सेवा सिमरन ज्ञान में,जो रहते हैं लीन।कोमल चित्त के भक्त में,लक्षण मिलें ये तीन।। 165 ।। शांति और पवित्रता,मन में हो आनंद।ऐसे भक्त को ही मिलें,पूरण परमानंद ।। 166 ।। ओज प्रसाद और माधुर्य,वाणी के गुण तीन।शोभा बढ़ै समारोह की,सबका दिल ले छीन ।। 167।। बल साहस […]

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बिखरे मोती-भाग 9

हिंसा बल है दुष्ट का, गुणवानों का खेद दर्शन हों सत्पुरूष के,शास्त्र सुनै चित लाय।उद्योग, सरलता, सौम्यता,हितकारी कहलाय।। 147।। रोगी, ऋणी और आलसी,और हो संयमहीन।लक्ष्मी वहां टिकती नही,जो उत्साह से हीन।। 148।। शक्तिहीन को चाहिए,क्षमा-भाव अपनाए।सामर्थ्यवान को चाहिए,धर्मवान बन जाए।। 149।। सरलता के व्यवहार को,कमजोरी मानै यातुधान।लज्जाशील मनुष्य का,इसलिए करै अपमान।। 150।। अतिदानी, अतिश्रेष्ठ हो,अति […]

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बिखरे मोती-भाग 8

कभी भूलकै मत करो, स्वजन का अपमान महादोषों से युक्त हो,दिल में राखै बैर।बेशक वह कुबेर हो,त्यागने में ही खैर।। 127।। ऐश्वर्य से युक्त को,लेकिन हो गुणहीन।सजन सनेही मत बना,लेवै मान को छीन।। 128।। जीत होवै धर्म की,पाप की होवै हार।आत्मचिंतन कर जरा,अपने कर्म निहार।। 129।। गुणों की जिसमें खान हो,विनय होय श्रंगार।भूसुर आया स्वर्ग […]

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बिखरे मोती-भाग 7

द्वेष करै साधु नही, ज्ञानी नही कहायबुद्घि में जो कुशाग्र हो,नीति में गंभीर।मनोभाव प्रकटै नही,राज्य के रक्षक धीर।। 106।। दण्ड-क्षमा का भान हो,कोष का होवै ज्ञान।प्रजा को समझै पुत्रवत,राजा वही महान।। 107।। भृत्यों के जो संग मेंकरै ऐश्वर्य उपभोग।ऐसे राजा के राज में,खुशहाली के योग।। 108।। राजा का भेदी मंत्री,पति की भेदी नार।भ्राता पुत्र के […]

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बिखरे मोती-भाग 6

सत्पुरूषों के कारनै, कुल उत्तम कहलायसर्प सिंह और अग्नि का,जो करता तिरस्कार।छेड़कै इन्हें छोड़ो नहीतत्क्षण देना मार।। 89।। लता सहारा ढूंढती,वृक्ष बढै़ खुद आप।जिनका अपना वजूद हो,दूर रहै संताप ।। 90।। सत्य प्रेम करूणा यहां,जिनके हों आधार।धन यश में वृद्घि करें,रक्षा करे करतार।। 91।। अग्नि व्यापक काष्ठ में,जब तक नही जलाय।वायु के संसर्ग से,वन में […]

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बिखरे मोती-भाग 5

घर में खुशहाली रहे श्री न करै पयान आलस रहित सेवक मिलै,सदा रहै अनुरक्त।नियरे ताको राखिए,दुर्लभ स्वामी भक्त ।। 75।। जिसमें मद हो बुद्घि का,और होवै वाचाल।‘विजय’ ऐसे भृत्य को,देना तुरत निकाल ।। 76।। वाचाल अर्थात – अधिक बोलने वाला, उल्टा जवाब देने वाला। मूरख क्रूर कंजूस बैरी,इनसे जो हाथ फैलाए।मान घटावै आपुनो,जीवन भर पछताए […]

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बिखरे मोती-भाग 4

कान सुनें महिमा तेरी, जिह्वा से हो जाप माता-पिता जहां देवें दुआ,अतिथि का सम्मान।महिला बाल जहां खुश रहें,वो कुल होय महान ।। 57।। जिसके कोप से भय लगे,शक्ति हो व्यवहार।खरगोश की खाल में भेड़िया,जाने कब कर दे प्रहार।। 58।। वयोवृद्घ और ज्ञानवृद्घ का,जो करता नही संग।चंचल चित्त जाको रहे,वो करै रंग में भंग ।। 59।। […]

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