धर्मानुरागी को चाहिए, संयम न खो देयवाणी जो चुभै तीर सी,हृदय को जला देय।धर्मानुरागी को चाहिए,संयम न खो देय ।। 329।। वाणी से पहचान हो,अधम है अथवा महान।योग्यता की परख हो,परख्यो जा खानदान ।। 330।। वाणी में कांटे रमे,बंधयो अधरों पै काल।लक्षण सारे अनिष्टï के,ज्यों मकड़ी का जाल ।। 331।। ईश्वर की जो विभूतियां,करते रहो […]
श्रेणी: बिखरे मोती
सद्गुण और सुख को हरै, जब आवै अभिमाननोट : संसार में विद्या, यश, बल, त्याग ऊंचा कुल, धन, रूप तो क्षणिक हैं। जैसे केंसर की गांठें होती हैं, ठीक इसी प्रकार ये हमारे मानस में सात प्रकार के अहंकार की गांठें हैं। इनका चित्त में निर्माण मत होने दो, क्योंकि इनसे निकलना कोई खाला जी […]
मधुर लोक व्यवहार को, लोग करें हैं याद स्वजन संग प्रवास हो,सत्पुरूषों का साथ।स्वाश्रित हो जीविका,नित सुख की बरसात ।। 302।। मद्यपान स्त्रैणता,भाषण देय कठोर।राजा को शोभै नही,अपयश पावै घोर।। 303।। धन छीने विद्वान का,हीनता के हों खयाल।पर निंदा में खुश रहे,निकट विनाश को काल ।। 304।। इच्छित वस्तु की प्राप्ति,प्रिय से बात-चीत।स्वसमुदाय में उन्नति,हर्ष […]
क्षमा को दोष न मानिए, क्षमा परम बल होयज्ञानी गुणी के बीच में,श्रेष्ठ है कितना कौन?मूर्खता को ढांप ले,कुछ पल रहकर मौन ।। 286।। शहद की बूंदों से नहीं,सागर मीठा होय।मूर्ख तजै नही मूर्खता,चाहे अमृत वर्षा होय ।। 287।। संभव है मृग-मरीचिका,में मिल जावै नीर।मूर्खजन को सुधारना,बड़ी ही टेढ़ी खीर ।। 288।। समझाना है अबोध […]
तेजस्वी के तेज में, आयु न आड़ै आय दुर्जन हो दरबार में,सुंदर वदन कुबोल।सज्जन होय दरिद्र तो,लोग उड़ावें मखोल ।। 265 ।। लालच पाप का मूल है,भक्ति का है धर्म।विद्या मूल है ज्ञान की,स्वर्ग का है सत्कर्म ।। 266।। तीरथ करे तो संग रख,मन में निर्मल भाव।यूं ही अकारथ जाएगा,जब तक दुष्ट स्वभाव।। 267 ।। […]
दान करे और चुप रहे, पुण्य को नही जतायमृत्यु के भय से कभी,लक्ष्य न छोड़ै धीर।सतत रहे गतिशील वो,ज्यों चट्टान में नीर ।। 244।। सोने के पर्वत खड़े,जिन पर भूखे गांव।इससे तो चंदन भला,हरले नीम स्वभाव ।। 245।। मन में हो प्रसन्नता,वाणी में होय मिठास।सहयोगी पुण्यात्मा,सबका करें विकास ।। 246।। सच बोलै लोभी नहीं,आए का […]
सत्संगति पारस-मणि, सभी गुणों की खान आत्मज्ञानी पुरूषार्थी,हों नही भाग्य अधीन।साहस अध्यवसाय से,खोजें मार्ग नवीन ।। 223।। ऐश्वर्य को प्राप्त हो,जो पुरूषार्थी होय।याचक बन जीवन जिए,भाग्य भरोसे जो सोय ।। 224।। अपनी कमी को ढूंढ़कर,जो जन करै निदान।चरण चूमती सफलता,वो नर बनै महान।। 225।। वन में रण में भंवर में,विपदा में फंस जाए।ढाल बनै रक्षा […]
विपदा में वफादार हो, कभी न छोडै़ हाथ राजा की निंदा करै,अनृत करै व्यवहार।बड़ों से बोलै झूठ जो,पतन के हैं आसार ।। 204।। अपनी करै बड़ाई जो,और असूया दोष।दम्भ बढ़ावै धन घटै,और जगावै रोष।। 205।। असूया-दूसरों के गुणों में भी दोष देखना जड़ता और प्रमाद हो,मन हो चलायमान।लालची और वाचाल हो,विद्या से वंचित जान ।। […]
जिस रसना पै हरि बसै, मत बो उस पर शूल माया से तदाकार हो,बढ़ता गया अहंकार।तदाकार हो ज्योति सेमिलै मुक्ति का द्वार ।। 186।। जिस रसना पै हरि बसै,मत बो उस पर शूल।रसना को कर काबू में,बरसते रहें नित फूल।। 187।। यातरा है अनंत की,बहुत ही ऊंचा ध्येय।सफर सुहाना तब बनै,बांध पीठ पाथेय ।। 188।। […]
भक्ति की पहचान है, जब गिर जाए गुरूर सेवा सिमरन ज्ञान में,जो रहते हैं लीन।कोमल चित्त के भक्त में,लक्षण मिलें ये तीन।। 165 ।। शांति और पवित्रता,मन में हो आनंद।ऐसे भक्त को ही मिलें,पूरण परमानंद ।। 166 ।। ओज प्रसाद और माधुर्य,वाणी के गुण तीन।शोभा बढ़ै समारोह की,सबका दिल ले छीन ।। 167।। बल साहस […]