अपने सगे संबंधी से, कर अच्छा व्यवहारझूठे पै न यकीन कर,सच्चे पै अति विश्वास।इतना डर नही शत्रु से,जितना डरावै खास।। 374।। आयु धन यश ज्ञान में,जो जन श्रेष्ठ कहाय।मूरख अपमानित करे,मन ही मन हर्षाय ।। 375।। काम, क्रोध के वेग को,रोकना नही आसान।जो नर इनसे विरत हो,समझो बुद्घिमान ।। 376।। अत्याचारी मूर्ख हो,वाणी दुष्टï उवाच।दारूण […]
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बिखरे मोती-भाग 23
स्व-पर-हित का आचरण, इस सृष्टि का मूल ‘निशिदिन पीवै भंग’ से अभिप्राय, सभी प्रकार के मादक पदार्थों का सेवन करने से है।पाखण्डी से अभिप्राय, दिखावटी भक्ति करने वाले से है। गुरू बालक विद्वान हो,बन जावै खूंखार।इनका वध करना भला,मत नही करो विचार ।। 364।। खूंखार से अभिप्राय, आततायी से है।अर्थ बांधता मित्र को,अर्थ को बांधे […]
बिखरे मोती-भाग 22
किंतु साधु के संग में, कर देवों सा व्यवहार मन्यु पीने से अभिप्राय है-क्रोध को पीना, क्रोध का शमन करना, शांति और क्षमा भाव को प्राप्त होना। यदि कोई व्यक्ति क्रोध के वशीभूत रहता है तो उसका शरीर मानसिक और शारीरिक रोगों का घर बन जाता है। धनिक होय रोगी रहै,वो नर मरे समान।धन से […]
बिखरे मोती-भाग 21
मन्यु पीवें सत्पुरूष, मूरख करै इजहारदैवी वीणा देय है,ध्वनित होय यश बोल।सत्कर्मों के साज से,और बने अनमोल ।। 342।।यशबोल-अर्थात कीर्ति की स्वर लहरियांमाया मान और क्रोध से,आत्मा होय कशाय।अनासक्त के भाव से,जीव मुक्त हो जाए ।। 343।।भाव यह है कि आत्मा का बंधन अर्थात आवागमन के चक्र में पड़े, रहने का मूल कारण कशाय (आसक्ति […]
बिखरे मोती-भाग 20
धर्मानुरागी को चाहिए, संयम न खो देयवाणी जो चुभै तीर सी,हृदय को जला देय।धर्मानुरागी को चाहिए,संयम न खो देय ।। 329।। वाणी से पहचान हो,अधम है अथवा महान।योग्यता की परख हो,परख्यो जा खानदान ।। 330।। वाणी में कांटे रमे,बंधयो अधरों पै काल।लक्षण सारे अनिष्टï के,ज्यों मकड़ी का जाल ।। 331।। ईश्वर की जो विभूतियां,करते रहो […]
बिखरे मोती-भाग 18
सद्गुण और सुख को हरै, जब आवै अभिमाननोट : संसार में विद्या, यश, बल, त्याग ऊंचा कुल, धन, रूप तो क्षणिक हैं। जैसे केंसर की गांठें होती हैं, ठीक इसी प्रकार ये हमारे मानस में सात प्रकार के अहंकार की गांठें हैं। इनका चित्त में निर्माण मत होने दो, क्योंकि इनसे निकलना कोई खाला जी […]
बिखरे मोती-भाग 1७
मधुर लोक व्यवहार को, लोग करें हैं याद स्वजन संग प्रवास हो,सत्पुरूषों का साथ।स्वाश्रित हो जीविका,नित सुख की बरसात ।। 302।। मद्यपान स्त्रैणता,भाषण देय कठोर।राजा को शोभै नही,अपयश पावै घोर।। 303।। धन छीने विद्वान का,हीनता के हों खयाल।पर निंदा में खुश रहे,निकट विनाश को काल ।। 304।। इच्छित वस्तु की प्राप्ति,प्रिय से बात-चीत।स्वसमुदाय में उन्नति,हर्ष […]
बिखरे मोती-भाग 16
क्षमा को दोष न मानिए, क्षमा परम बल होयज्ञानी गुणी के बीच में,श्रेष्ठ है कितना कौन?मूर्खता को ढांप ले,कुछ पल रहकर मौन ।। 286।। शहद की बूंदों से नहीं,सागर मीठा होय।मूर्ख तजै नही मूर्खता,चाहे अमृत वर्षा होय ।। 287।। संभव है मृग-मरीचिका,में मिल जावै नीर।मूर्खजन को सुधारना,बड़ी ही टेढ़ी खीर ।। 288।। समझाना है अबोध […]
बिखरे मोती-भाग 15
तेजस्वी के तेज में, आयु न आड़ै आय दुर्जन हो दरबार में,सुंदर वदन कुबोल।सज्जन होय दरिद्र तो,लोग उड़ावें मखोल ।। 265 ।। लालच पाप का मूल है,भक्ति का है धर्म।विद्या मूल है ज्ञान की,स्वर्ग का है सत्कर्म ।। 266।। तीरथ करे तो संग रख,मन में निर्मल भाव।यूं ही अकारथ जाएगा,जब तक दुष्ट स्वभाव।। 267 ।। […]
बिखरे मोती-भाग 14
दान करे और चुप रहे, पुण्य को नही जतायमृत्यु के भय से कभी,लक्ष्य न छोड़ै धीर।सतत रहे गतिशील वो,ज्यों चट्टान में नीर ।। 244।। सोने के पर्वत खड़े,जिन पर भूखे गांव।इससे तो चंदन भला,हरले नीम स्वभाव ।। 245।। मन में हो प्रसन्नता,वाणी में होय मिठास।सहयोगी पुण्यात्मा,सबका करें विकास ।। 246।। सच बोलै लोभी नहीं,आए का […]