रैन काट पक्षी उड़े, सूना रह जाए नीडभिखारी शत्रु लोभी का,मूरख का गुणगान।चोरों का शत्रु चंद्रमा,कुल्टा का पति जान ।। 508।। बुद्घिहीन को ज्ञान दे,वृथा ज्ञान को खोय।बांस बसे चंदन निकट,खुशबू न वैसी होय।। 509।। बुद्घिहीन को व्यर्थ है,चारों वेदों का सार।जैसे अंधे को आइना,लगता है बेकार ।। 510।। गुदा न कभी मुख हो सके,चाहे […]
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बिखरे मोती-भाग 35
मूरख अदना आदमी, दबे पै ही रस देयश्लाघा हो विद्वान की,आदर करते धनवान।सभा बीच वागीश की,विरल होय पहचान ।। 496।। मुक्ति की इच्छा यदि,त्याग दे सारे ऐब।निर्मल रख इस चित्त को,मतकर कभी फरेब ।। 497।। मीत के राज प्रकट करै,वह नीचों का नीच।दम घुटकै मर जाएगा,सांप ज्यों बांबी बीच ।। 498।। सोना बिन सुगंध के,गन्ना […]
बिखरे मोती-भाग 3४
धर्म व्यर्थ है दया बिन, यही शास्त्र का सारजिस प्रकार कुत्ता अपनों को अर्थात कुत्ते को देखकर द्वेष करता है, गुर्राता है, गैरों को देखकर दुम हिलाता है। ठीक इसी प्रकार की प्रवृत्ति दुष्ट की होती है। इस प्रकार के व्यक्ति ईश भजन से दूर किंतु मादक पदार्थों के नशे में चूर रहते हैं, और […]
बिखरे मोती-भाग 33
सेना राजा की शक्ति है, ब्राह्मण वेद-विचारबाल वृद्घ गुरू कन्या को,नही लगाओ पैर।कुपित होय परमात्मा,मांगे मिलै न खैर।। 480।। दूसरों को खुश देखकै,सज्जन मोद मनाय।देख दूसरों को दुखी,दुर्जन खुश हो जाय ।। 481।। समय परिस्थिति देखकै,शत्रु से कर व्यवहार।कभी विनय कभी वीरता,वक्त का कर इंतजार ।। 482।। स्त्रियों का बल रूप है,यौवन मधुर व्यवहार।सेना राजा […]
बिखरे मोती-भाग 31
ईश भजन से भय मिटै, विनम्रता से अहंकार कसौटी कनक को परख दे,कितना कनक में दोष।आचरण से मनुष्य के,परखे जायें गुण-दोष ।। 454।। एक ही मां की कोख है,किंतु भिन्न स्वभाव।जैसे बेर के वृक्ष पर,फल में हो अलगाव ।। 455।। जिसका हृदय साफ हो,होता न धोखेबाज।मूरख मृदुभाषी नही,जग का अटल रिवाज ।। 456।। दरिद्र द्वेष […]
बिखरे मोती-भाग 30
एक पुण्य चलेगा साथ में, सब होवेगा शून्यप्रेमहीन बन्धु जहां,और कुल्टा हो नार।दयाहीन जो धर्म हो,मत करना स्वीकार ।। 444 ।। आयु, मृत्यु, कर्म, धन,और पांचवां ज्ञान।गर्भ में ही सारे मिलें,ऐसा विधि-विधान ।। 445 ।। ेकर्म से अभिप्राय व्यवसाय से है। सत्पुरूषों से ले प्रेरणा,करें शिष्टï व्यवहार।ऐसे कुल संसार में,पाते हैं ख्याति अपार ।। 446 […]
बिखरे मोती-भाग 29
एक सुपुत्र के तेज तै, कुल की ख्याति होयपत्नी का हो बिछुड़ना,बन्धु से अपमान।बिना आग जलता रहे,पल-पल हो परेशान ।। 433।। नदी किनारे का वृक्ष हो,पर घर नारी-वास।शीघ्र नष्टï हो जाएंगे,मत करना विश्वास । 434।। कोयला का सौंदर्य स्वर,तपस्वी का क्षमाशील।विद्वत्ता है कुरूप का,नारी का लज्जाशील । 435।। पुरूषार्थ बचावे दरिद्रता,प्रभु-नाम बचावे पाप।मौन बचावे क्लेश […]
बिखरे मोती-भाग 28
कदम कदम पर भीड़ है,पर सत्पुरूष कोई कहायकरै बड़ाई सामने, पीछे बिगाड़े काम।मित्र नही छिपा शत्रु,दूर से करो सलाम ।। 424।। मित्र को भी भूलकर,कभी मत बतलावै राज।सारे भेद प्रकट करै,जन हो जाए नाराज ।। 425।। मनन किये को गुप्त रख,मत करना इजहार।मखौल उड़ावें लोग सब,गर हो न सके साकार।। 426।। धरती पर वन बहुत […]
बिखरे मोती-भाग 26
सत्पुरूषों का संग भी, कोई पुण्य का है प्रभात ज्यों-ज्यों हम बूढ़े हुए, तृष्णा हुई जवान। भोग लिया हमें भोग ने, ये देख हुए हैरान।। 401।। आंखों से दिखता नहीं, शिथिल हुए सब अंग। मृत्यु से डरता फिरै, कितना होवै तंग ।। 402।। जैसे जल-कण कमल पर, तैसेई तन में प्राण। मृत्यु का […]
बिखरे मोती-भाग 25
शील स्वभाव हो मनुष्य का, तो जेवर का क्या कामअति गुणी गुणगान के,लक्ष्मी करे न निवास।उन्मत गौ की भांति ये,कहीं कहीं करें प्रवास ।। 387।। नारी की गति तीन हैं,कन्या मां और सास।धन की गति भी तीन हैं,दान भोग और नाश ।। 388।। लज्जा, भय, शंका उठे,मन में पश्चाताप।ये लक्षण नही धर्म के,किया है कोई […]