ईश भजन से भय मिटै, विनम्रता से अहंकार कसौटी कनक को परख दे,कितना कनक में दोष।आचरण से मनुष्य के,परखे जायें गुण-दोष ।। 454।। एक ही मां की कोख है,किंतु भिन्न स्वभाव।जैसे बेर के वृक्ष पर,फल में हो अलगाव ।। 455।। जिसका हृदय साफ हो,होता न धोखेबाज।मूरख मृदुभाषी नही,जग का अटल रिवाज ।। 456।। दरिद्र द्वेष […]
श्रेणी: बिखरे मोती
एक पुण्य चलेगा साथ में, सब होवेगा शून्यप्रेमहीन बन्धु जहां,और कुल्टा हो नार।दयाहीन जो धर्म हो,मत करना स्वीकार ।। 444 ।। आयु, मृत्यु, कर्म, धन,और पांचवां ज्ञान।गर्भ में ही सारे मिलें,ऐसा विधि-विधान ।। 445 ।। ेकर्म से अभिप्राय व्यवसाय से है। सत्पुरूषों से ले प्रेरणा,करें शिष्टï व्यवहार।ऐसे कुल संसार में,पाते हैं ख्याति अपार ।। 446 […]
एक सुपुत्र के तेज तै, कुल की ख्याति होयपत्नी का हो बिछुड़ना,बन्धु से अपमान।बिना आग जलता रहे,पल-पल हो परेशान ।। 433।। नदी किनारे का वृक्ष हो,पर घर नारी-वास।शीघ्र नष्टï हो जाएंगे,मत करना विश्वास । 434।। कोयला का सौंदर्य स्वर,तपस्वी का क्षमाशील।विद्वत्ता है कुरूप का,नारी का लज्जाशील । 435।। पुरूषार्थ बचावे दरिद्रता,प्रभु-नाम बचावे पाप।मौन बचावे क्लेश […]
कदम कदम पर भीड़ है,पर सत्पुरूष कोई कहायकरै बड़ाई सामने, पीछे बिगाड़े काम।मित्र नही छिपा शत्रु,दूर से करो सलाम ।। 424।। मित्र को भी भूलकर,कभी मत बतलावै राज।सारे भेद प्रकट करै,जन हो जाए नाराज ।। 425।। मनन किये को गुप्त रख,मत करना इजहार।मखौल उड़ावें लोग सब,गर हो न सके साकार।। 426।। धरती पर वन बहुत […]
सत्पुरूषों का संग भी, कोई पुण्य का है प्रभात ज्यों-ज्यों हम बूढ़े हुए, तृष्णा हुई जवान। भोग लिया हमें भोग ने, ये देख हुए हैरान।। 401।। आंखों से दिखता नहीं, शिथिल हुए सब अंग। मृत्यु से डरता फिरै, कितना होवै तंग ।। 402।। जैसे जल-कण कमल पर, तैसेई तन में प्राण। मृत्यु का […]
शील स्वभाव हो मनुष्य का, तो जेवर का क्या कामअति गुणी गुणगान के,लक्ष्मी करे न निवास।उन्मत गौ की भांति ये,कहीं कहीं करें प्रवास ।। 387।। नारी की गति तीन हैं,कन्या मां और सास।धन की गति भी तीन हैं,दान भोग और नाश ।। 388।। लज्जा, भय, शंका उठे,मन में पश्चाताप।ये लक्षण नही धर्म के,किया है कोई […]
अपने सगे संबंधी से, कर अच्छा व्यवहारझूठे पै न यकीन कर,सच्चे पै अति विश्वास।इतना डर नही शत्रु से,जितना डरावै खास।। 374।। आयु धन यश ज्ञान में,जो जन श्रेष्ठ कहाय।मूरख अपमानित करे,मन ही मन हर्षाय ।। 375।। काम, क्रोध के वेग को,रोकना नही आसान।जो नर इनसे विरत हो,समझो बुद्घिमान ।। 376।। अत्याचारी मूर्ख हो,वाणी दुष्टï उवाच।दारूण […]
स्व-पर-हित का आचरण, इस सृष्टि का मूल ‘निशिदिन पीवै भंग’ से अभिप्राय, सभी प्रकार के मादक पदार्थों का सेवन करने से है।पाखण्डी से अभिप्राय, दिखावटी भक्ति करने वाले से है। गुरू बालक विद्वान हो,बन जावै खूंखार।इनका वध करना भला,मत नही करो विचार ।। 364।। खूंखार से अभिप्राय, आततायी से है।अर्थ बांधता मित्र को,अर्थ को बांधे […]
किंतु साधु के संग में, कर देवों सा व्यवहार मन्यु पीने से अभिप्राय है-क्रोध को पीना, क्रोध का शमन करना, शांति और क्षमा भाव को प्राप्त होना। यदि कोई व्यक्ति क्रोध के वशीभूत रहता है तो उसका शरीर मानसिक और शारीरिक रोगों का घर बन जाता है। धनिक होय रोगी रहै,वो नर मरे समान।धन से […]
मन्यु पीवें सत्पुरूष, मूरख करै इजहारदैवी वीणा देय है,ध्वनित होय यश बोल।सत्कर्मों के साज से,और बने अनमोल ।। 342।।यशबोल-अर्थात कीर्ति की स्वर लहरियांमाया मान और क्रोध से,आत्मा होय कशाय।अनासक्त के भाव से,जीव मुक्त हो जाए ।। 343।।भाव यह है कि आत्मा का बंधन अर्थात आवागमन के चक्र में पड़े, रहने का मूल कारण कशाय (आसक्ति […]