मंजिल पर पहुंचे वही, जिनके चित में चावगतांक से आगे….सन्तमत और लोकमत,कभी न होवें एक।अवसर खोकै समझते,बात कहै था नेक।। 632 ।। कैसी विडम्बना है? वर्तमान जब अतीत बन जाता है तो व्यक्ति की तब समझ में आता है कि मैं तत्क्षण कितना सही अथवा कितना गलत था? ठीक इसी प्रकार यह संसार सत्पुरूषों की […]
श्रेणी: बिखरे मोती
ऐसे जीओ हर घड़ी, जैसे जीवै संतगतांक से आगे…. ऐसे जीओ हर घड़ी,जैसे जीवै संत।याद आवेगा तब वही,जब आवेगा अंत ।। 630 ।। प्रसंगवश कहना चाहता हूं कि ‘गीता’ के आठवें अध्याय के पांचवें श्लोक में भगवान कृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं, हे पार्थ!
दिव्यता से सौम्यता मिलै, ये साथ चले श्रंगारगतांक से आगे….सजा सके तो मन सजा,तन का क्या श्रंगार।दिव्यता से सौम्यता मिलै,ये साथ चले श्रंगार ।। 628 ।। भावार्थ यह है कि अधिकांशत: लोग इस नश्वर शरीर को ही सजाने में लगे रहते हैं जबकि उनका मन छह विकारों काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और ईष्र्या तथा […]
चित चिंतन और चरित्र को, राखो सदा पुनीत गतांक से आगे….यदि गंभीरता से चिंतन किया जाए तो आप पाएंगे कि परमात्मा ने मनुष्य को ज्ञान और प्रेम से अलंकृत कर इस सृष्टि में अपने प्रतिनिधि के रूप में भेजा है। ज्ञान यदि इस समष्टि का मस्तिष्क है तो प्रेम इसका हृदय है। इन दोनों के […]
कितने असली नकली हो, जानै जाननहार गतांक से आगे…. पश्चिम दिशा में अस्तांचल में अवसान के समय भी अपने यश की अरूणाई को, तेजस्विता को एक पल के लिए भी छोड़ता नही है। भाव यह है कि सूर्य अपने यश और तेज के साथ उत्पन्न होता है और यश और तेज के साथ ही शाम […]
महापुरूष संसार में, परमपिता के फूलगतांक से आगे….आप प्रसन्न हैं तो संसार का धन वैभव ऐश्वर्य तो स्वत: ही मेरे पीछे पीछे दौड़ा आएगा और यदि आप किसी बात पर नाराज हो गये तो सब कुछ मिल हुआ भी छिन जाएगा। जैसे कोई पिता अपने पुत्र के आचरण से प्रसन्न होता है तो वह सहज […]
प्रेम के कारण हरि सुनै,भक्तों की अरदासप्रेम ही श्रद्घा प्रेम समर्पण,पे्रम बसै विश्वास।प्रेम के कारण हरि सुनै,भक्तों की अरदास ।। 603।। रिश्ते प्रेम से ठहरते,बिना प्रेम कुम्हलाय।प्रेम नीर की बूंद तै,पुनि-पुनि ये मुस्काय ।। 604।। प्रेम जीवन का प्राण है,प्रेम में है आनंद।प्रेम तत्व से ही मिलै,पूरण परमानंद ।। 605।। प्रेम तत्व के सूत्र में,बंधा […]
त्याग से जागै प्रेम रस, प्रेम से जागै त्यागजीवन के दो चरण हैं,एक धर्म एक ज्ञान।जो इनका पालन करे,एक दिन बने महान।। 597 ।। जग में धन तो तीन हैं,ज्ञान, समृद्घि, भाव।जो इनसे भरपूर है,उनका पड़े प्रभाव ।। 598 ।। नोट: शरीर को साधनों की समृद्घि चाहिए, जबकि आत्मा को ज्ञान और भावों की समृद्घि […]
साहसी पुरूष ही जगत में, करते ऊंचे काजगतांक से आगे….पति की सेवा में निहित,स्त्री का कल्याण।कटु भाषण करती नही,आये का राखे मान।। 590।। सृष्टि का कारण वही,वही है आदि अंत।पालक, रक्षक, रचयिता,सबसे बड़ा महन्त ।। 591।। अत्याचारी हो पति,शोकातुर रहै नार।सुख समृद्घि का नाश हो,उजड़ जाए संसार ।। 592।। मन, ज्ञान और इंद्रियां,प्रभु की अदभुत […]
कुलीन शील नही छोड़ता, अगणित हों चाहे द्वंद्व गतांक से आगे….सज्जनो की कर संगति,दुष्टों का कर त्याग।पुण्य कमा हरि नाम ले,जाग सके तो जाग ।। 570।। औरों का दुख देखकै,पिघलै ज्यों नवनीत।उसके हृदय हरि बसें,करते उसे पुनीत ।। 571।। पग-पग पर कांटे बड़े,कैसे निकला जाए?या तो उनको त्याग दे,या मुंह कुचला जाए ।। 572।। कांटे […]