ब्रह्मभाव को प्राप्त हो, जो रहता द्वन्द्वातीतगतांक से आगे….यदि इस सीढ़ी पर संभलकर चला जाए अर्थात इसका परिष्कार कर लिया जाए तो हमारी वृत्तियां तथा बुद्घि स्वत: ही शुद्घ हो जाएंगी। जिसके फलस्वरूप हमारी गति हो सकती है अर्थात हम मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए मन का निर्मल होना परमआवश्यक है। जो साधक […]
श्रेणी: बिखरे मोती
धर्मानुरागी को चाहिए, तज दे वचन कठोरगतांक से आगे….शठ-धूर्त, दुष्टनिष्ठुर-कठोर हृदय वाला, दया रहित दन्द शूक-मर्म स्थान पर चोट करने वाला। स्वार्थ जिद अहंकार से,टूटते हैं परिवार।क्षमा समन्वय प्रेम से,खुशहाल रहें परिवार ।। 729 ।। पुण्य प्रार्थना रोज कर,इनको कल पै न छोड़।डाली पै लटका आम तू,कब ले माली तोड़ ।। 730 ।। असूया कभी […]
राही तू आनंद लोक का, जहां पुण्य से मिलै प्रवेशगतांक से आगे….सुहृद पिछनै विपत में,भय के समय में वीर।सत्पुरूष पिछनै शील से,धन-संकट में धीर ।। 720 ।। अर्थात विपत्ति के आने पर व्यक्ति मित्र है अथवा शत्रु, इसकी पहचान होती है। भय के उत्पन्न होने पर व्यक्ति कायर है, अथवा वीर इस बात का पता […]
अनीति नीति सी लगै, जब होता निकट विनाशगतांक से आगे….वाणी का संयम कठिन,परिमित ही तू बोल।वाणी तप के कारनै,बढ़ै मनुज का मोल ।। 708 ।। अच्छी वाणी मनुज का,करती विविध कल्याण।वाणी गर होवै बुरी,तो ले लेती है प्राण ।। 709 ।। कुल्हाड़े से काटन वृक्ष तो,पुन: हरा हो जाए।बुरे वचन के घाव तै,हृदय उभर नही […]
सारा खेल बिगाड़ दे, एक अहंकार की चूकगतांक से आगे….दुष्टों का सहयोग ले,उपकृत हो यदि संत।श्रेय को लेवें दुष्टजन,कड़वा होवै अंत ।। 695 ।। भाव यह है कि सत्पुरूषों को चाहिए कि जहां तक हो सके किसी सत्कार्य में दुष्टों का सहयोग नही लेना चाहिए। अन्यथा दुष्टजन सत्कार्य का श्रेय स्वयं लेकर संतों को उपेक्षित […]
धर्म से अर्जित धन टिकै, चहुं दिशि यश फेेलायगतांक से आगे….कार्य में परिणत नही,तो रखो गुप्त विचार।दृढ़ संकल्प के सामने,अनुकूल होय संसार ।। 679।। मन उत्तम स्थिर मति,करै ना निज को माफ।सूरज की तरह चमकता,जिसका दामन साफ ।। 680।। करै दूसरों का मान जो,और राखै शुद्घ विचार।निज समूह में श्रेष्ठ हो,जैसे मणि हो चमकदार ।। […]
जीवन में कभी भूल कै, मत करना अभिमानगतांक से आगे….निश्चय बुद्घिमान का,और देवों का संकल्प।विद्वानों की नम्रता,इनका नही विकल्प ।। 667।। धृति क्षमा सत दान को,भूलकै भी मत त्याग।पुरूषार्थ को मिलै सफलता,जाग सके तो जाग ।। 668।। आज्ञाकारी पुत्र हो,प्रियवादिनी नार।सेहत विद्या लक्ष्मी,से प्रिय लगै संसार ।। 669।। अर्थात वश में रहने वाला पुत्र हो, […]
क्षमावान का भी कोई, बैरी पनप न पाय गतांक से आगे….जो राजा डरपोक हो,और संन्यासी बनै कांप।इनको भूमि निगलती,ज्यों चूहे को निगलै सांप।। 653 ।। ‘संन्यासी बनै कांप’ से अभिप्राय है-जो ज्ञानवान संत हैं, किंतु नदी के रेत की तरह एक ही स्थान पर पड़े हैं। दुष्टों की पूजा नही,बोलै न वचन कठोर।।संतों का आदर […]
अध्यात्मवाद की वैदिक पद्घति : संध्योपासन-भाग दो गतांक से आगे……आचार्य भद्रसेनमहाराज कृष्ण गीता में कहा है-इंद्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मन:।हे अर्जुन! इंद्रियां बड़ी बलवान हैं। ये जबरदस्ती मन को अपनी ओर खींच लेती हैं। अत: इंद्रियों के बलवान होने के साथ साथ उनका सन्मार्गगामी होना भी परमआवश्यक है। यह तभी होगा, जब उनके अंदर से […]
आदर मिले न खैरात में, चाहता हर इंसानगतांक से आगे….आदर मिले न खैरात में,चाहता हर इंसान।गुणों के बदले में मिले,बनना पड़ै महान ।। 636 ।। अर्थात इस संसार में सम्मान हर व्यक्ति चाहता है किंतु यह उपहार में नही मिलता है। इसे तो आप अपने विलक्षण गुणों के द्वारा अर्जित करते हैं। इस संदर्भ में […]