बिखरे मोती भाग-70गतांक से आगे….रोगी को कड़वी दवा,लगता बुरन परहेज।विपदा कुण्ठित मति करै,और घट जावै तेज ।। 766 ।। कुण्ठित मति-बुद्घि का भ्रष्ट होना, आया है संसार में,कर पुण्यों का योग।कर्माशय से ही मिलें,आयु योनि भोग ।। 767 ।। कर्माशय-प्रारब्ध पूर्णायु बल सुख मिलै,सेहत की सौगात।परिमित भोजन जो करे,लाख टके की बात ।। 768 ।। […]
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बिखरे मोती भाग-68 गतांक से आगे….क्रोध और संताप का,पड़े सेहत पर प्रभाव।इन दोनों का शमन कर,अक्षुण्ण रहेगा चाव ।। 755।। संताप-तनावशमन-शांत करना, पीना, निगलना ‘अक्षुण्ण रहेगा चाव’ से अभिप्राय-जीवन जीने का उत्साह बना रहेगा। क्रूर के आश्रित लक्ष्मी,करती कुल का नाश।सत्पुरूष की लक्ष्मी,करै पीढ़ी का विकास ।। 756।। श्रद्घाहीन को सीख दे,और सबल से राखै […]
सच्चे मित्र की पहचान
बिखरे मोती भाग-67 गतांक से आगे….भय शंका से रहित हो,पिता तुल्य विश्वास।ये लक्षण जिसमें मिले,मित्र समझना खास ।। 750 ।। भाव यह है कि मित्र वह नही है, जिससे तुम्हें डर लगता हो अथवा जिस पर तुम्हें संदेह रहता हो अपितु सच्चा मित्र तो वह है जिससे तुम्हें शक्ति मिलती है जिसका आचरण संदेह से […]
जब भी बोलें सोच समझकर बोलें
बिखरे मोती भाग-66 गतांक से आगे…. परमात्मा ऐसे सत्पुरूषों के भण्डारी की स्वयं रक्षा करते हैं। इसीलिए वेद कहता है- ‘‘शतहस्त समाहर: सहस्रहस्तं सं किर:’’ अथर्ववेद 3/24/5 श्रद्घा देयम् अश्रद्घया देयम् , मिया देयम् , हिृया देयम् संविदा देयम् (तैत्तिरीय उपनिषद) अर्थात श्रद्घा से दे, अश्रद्घा से दे, भय से दे, लज्जा से दे, वचन […]
बिखरे मोती भाग-65
ब्रह्मभाव को प्राप्त हो, जो रहता द्वन्द्वातीतगतांक से आगे….यदि इस सीढ़ी पर संभलकर चला जाए अर्थात इसका परिष्कार कर लिया जाए तो हमारी वृत्तियां तथा बुद्घि स्वत: ही शुद्घ हो जाएंगी। जिसके फलस्वरूप हमारी गति हो सकती है अर्थात हम मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए मन का निर्मल होना परमआवश्यक है। जो साधक […]
बिखरे मोती भाग-64
धर्मानुरागी को चाहिए, तज दे वचन कठोरगतांक से आगे….शठ-धूर्त, दुष्टनिष्ठुर-कठोर हृदय वाला, दया रहित दन्द शूक-मर्म स्थान पर चोट करने वाला। स्वार्थ जिद अहंकार से,टूटते हैं परिवार।क्षमा समन्वय प्रेम से,खुशहाल रहें परिवार ।। 729 ।। पुण्य प्रार्थना रोज कर,इनको कल पै न छोड़।डाली पै लटका आम तू,कब ले माली तोड़ ।। 730 ।। असूया कभी […]
बिखरे मोती भाग-63
राही तू आनंद लोक का, जहां पुण्य से मिलै प्रवेशगतांक से आगे….सुहृद पिछनै विपत में,भय के समय में वीर।सत्पुरूष पिछनै शील से,धन-संकट में धीर ।। 720 ।। अर्थात विपत्ति के आने पर व्यक्ति मित्र है अथवा शत्रु, इसकी पहचान होती है। भय के उत्पन्न होने पर व्यक्ति कायर है, अथवा वीर इस बात का पता […]
बिखरे मोती भाग-62
अनीति नीति सी लगै, जब होता निकट विनाशगतांक से आगे….वाणी का संयम कठिन,परिमित ही तू बोल।वाणी तप के कारनै,बढ़ै मनुज का मोल ।। 708 ।। अच्छी वाणी मनुज का,करती विविध कल्याण।वाणी गर होवै बुरी,तो ले लेती है प्राण ।। 709 ।। कुल्हाड़े से काटन वृक्ष तो,पुन: हरा हो जाए।बुरे वचन के घाव तै,हृदय उभर नही […]
बिखरे मोती भाग-61
सारा खेल बिगाड़ दे, एक अहंकार की चूकगतांक से आगे….दुष्टों का सहयोग ले,उपकृत हो यदि संत।श्रेय को लेवें दुष्टजन,कड़वा होवै अंत ।। 695 ।। भाव यह है कि सत्पुरूषों को चाहिए कि जहां तक हो सके किसी सत्कार्य में दुष्टों का सहयोग नही लेना चाहिए। अन्यथा दुष्टजन सत्कार्य का श्रेय स्वयं लेकर संतों को उपेक्षित […]
बिखरे मोती भाग-60
धर्म से अर्जित धन टिकै, चहुं दिशि यश फेेलायगतांक से आगे….कार्य में परिणत नही,तो रखो गुप्त विचार।दृढ़ संकल्प के सामने,अनुकूल होय संसार ।। 679।। मन उत्तम स्थिर मति,करै ना निज को माफ।सूरज की तरह चमकता,जिसका दामन साफ ।। 680।। करै दूसरों का मान जो,और राखै शुद्घ विचार।निज समूह में श्रेष्ठ हो,जैसे मणि हो चमकदार ।। […]