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बिखरे मोती

एक से कैसे हो गया, वो शिव तत्व अनेक

बिखरे मोती-भाग 85 गतांक से आगे….होनी हो अनहोनी जब,सो जाता है विवेक।ऐसे समय में जागता,कोई बिरला एक ।। 869।। व्याख्या :-कैसी विडंबना है मानवीय जीवन में जब कोई दुखद घटना होती है, तो उससे पूर्व मनुष्य की बुद्घि भ्रष्ट होती है। इसीलिए कहा गया है ‘विनाशकाले विपरीत बुद्घि’ विपत्ति के समय ऐसे व्यक्ति बहुत कम […]

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बिखरे मोती

जैसी जिसकी वृत्तियां, वैसे ही मिलते मीत

बिखरे मोती-भाग 84 गतांक से आगे….रजत रेखा बर्दाश्त है,सुख दुख के दरम्यान।मनरंजन भंजन बनै,अज्ञानता से नादान ।। 865 ।। इस संसार का यह शाश्वत नियम है कि कोई भी वस्तु अथवा विचार तभी तक अच्छा लगता है जब तक अपनी सीमा का उल्लंघन नही करता है। यह एक रजत रेखा (स्द्बद्य1द्गह्म् रुद्बठ्ठद्ग) है इसे लांघते […]

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बिखरे मोती

ज्ञान बिना मुक्ति नही, और ज्ञान सा नही पुनीत

बिखरे मोती-भाग 82 गतांक से आगे….राग रहित को होत है,ब्रह्मवित का अहसास।जैसे मिटते ही तिमिर के,प्रकट होय प्रकाश ।। 856 ।। ब्रह्मवित-ब्रह्म को जानने वाला उसमें अभिन्न भाव से स्थित होने वाला किंतु इस अवस्था को प्राप्त होकर भी अभिमान न करने वाला, सदा सौम्य बना रहने वाला।व्याख्या : संसार से राग मिटते ही ब्रह्म […]

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प्रमुख समाचार/संपादकीय बिखरे मोती

आसक्ति यदि ईश में,तो कहलावै योग

बिखरे मोती-भाग 81 पदार्थ मिले हैं कर्म से,मिलते नही भगवान।अहंभाव उर से मिटैतो प्रकटें भगवान ।। 850।।व्याख्या : जैसे सांसारिक पदार्थ कर्मों से मिलते हैं, ऐसे परमात्मा की प्राप्ति कर्मों से नही होती, क्योंकि परमात्म -प्राप्ति कर्म का फल नही है। याद रखो, प्रत्येक कर्म की उत्पत्ति अहंभाव से होती है,जबकि परमात्म प्राप्ति अहंभाव के […]

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बिखरे मोती

प्रभु पालक है सृष्टि का, पर देता नही जताव

बिखरे मोती भाग-78 गतांक से आगे….जिस प्रकार अग्नि ईंधन से तृप्त नही होती, जिना ईंधन डालते जाओगे उतनी ही बढ़ती जाती है। ठीक इसी प्रकार स्त्रियों की तृष्णा मांग, कामनाएं पुरूष जितनी पूरी करता जाता है, उतनी ही वे बढ़ती जाती हैं।सागर में नदियां पड़ैं,फिर भी बाढ़ न आय।मृत्यु तृप्त होती नही,सबै मारकै खाय ।। […]

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बिखरे मोती

स्वयं का कर उद्घार तू, त्याग सभी अवसाद

बिखरे मोती-77 गतांक से आगे….स्वयं का कर उद्घार तू,त्याग सभी अवसाद।मत कोसै नित स्वयं को,गीता को रख याद ।। 828।। भगवान कृष्ण गीता में अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं-हे पार्थ! जो स्वयं (आत्मा) की शक्ति को पहचान जाते हैं वे स्वयं का उद्घार स्वयं करते हैं। उन्हें किसी भी प्रकार का अवसाद अथवा आत्महीनता […]

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बिखरे मोती

रिश्ते सम्भाल कै राखिये, मत रखना दुर्भाव

बिखरे मोती भाग-76 गतांक से आगे……व्याख्या :-जो विद्यार्थी आलसी है अर्थात-आज का काम कल पर टालता है, मादक पदार्थों (नशीले पदार्थों का सेवन करता है तथा अश्लील बातों में रूचि रखता है, लालची है तथा जो कभी एकाग्रचित नही होता है, मूर्खता की बातों में रत रहता है यानि मूर्ख है। इसके अतिरिक्त अप्रसांगिक बातें […]

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बिखरे मोती

बुरा कहै संसार ये, जिसको हो अभिमान

बिखरे मोती-74 गतांक से आगे….दक्ष कृतज्ञ मतिमान हो,ऋजुता से भरपूर।भृत्य-मित्र को प्राप्त हो,बेशक धन से दूर ।। 806 ।। अर्थात जो व्यक्ति चतुर है, उपकार को मानने वाला है, बुद्घिमान है और उसका कुटिलता रहित उत्तम स्वभाव है। ऐसा व्यक्ति धन रहित होने पर भी भृत्यों (सेवकों) और मित्रों के समूह को प्राप्त होता है।बुरा […]

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बिखरे मोती

धृति विवेक के कारनै, सज्जन कीर्ति पाय

बिखरे मोती भाग-73गतांक से आगे….वध के योग्य शत्रु को,अगर न मारा जाए।बदला लेवै एक दिन,फिर पीछे पछताय ।। 796 ।। बच्चे बूढ़े श्रेष्ठजन,इन पर क्रोध को रोक।दखल जरूरी हो अगर,तो बड़े प्यार से टोक।। 797।।मूरख से उलझै नही,सत्पुरूष वक्त टलाय।धृति विवेक के कारनै,सज्जन कीर्ति पाय ।। 798।। सुख समृद्घि दरिद्रता,यह कर्मों का खेल।कहीं मूरख भी […]

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बिखरे मोती

हृदय में यदि प्रेम हो, तो नेत्र प्रकट कर देय

बिखरे मोती भाग-71गतांक से आगे….संसार में हमारे मनीषियों ने बलों को निम्न पांच श्रेणियों में रखा है:-1. कुल-बल अर्थात पिता, पितामह संबंधी स्वाभाविक बल2. अमात्य-बल अर्थात हितकारी मंत्री अथवा मित्र का होना।3. धन बल अर्थात धन दौलत की प्रचुरता4. शारीरिक बल अर्थात बाहुबल5. बुद्घि बल अर्थात प्रज्ञाबलउपरोक्त पांचों प्रकार के बलों में सर्वश्रेष्ठ बल-बुद्घि का […]

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