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बिखरे मोती

प्रभु पालक है सृष्टि का, पर देता नही जताव

बिखरे मोती भाग-78 गतांक से आगे….जिस प्रकार अग्नि ईंधन से तृप्त नही होती, जिना ईंधन डालते जाओगे उतनी ही बढ़ती जाती है। ठीक इसी प्रकार स्त्रियों की तृष्णा मांग, कामनाएं पुरूष जितनी पूरी करता जाता है, उतनी ही वे बढ़ती जाती हैं।सागर में नदियां पड़ैं,फिर भी बाढ़ न आय।मृत्यु तृप्त होती नही,सबै मारकै खाय ।। […]

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बिखरे मोती

स्वयं का कर उद्घार तू, त्याग सभी अवसाद

बिखरे मोती-77 गतांक से आगे….स्वयं का कर उद्घार तू,त्याग सभी अवसाद।मत कोसै नित स्वयं को,गीता को रख याद ।। 828।। भगवान कृष्ण गीता में अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं-हे पार्थ! जो स्वयं (आत्मा) की शक्ति को पहचान जाते हैं वे स्वयं का उद्घार स्वयं करते हैं। उन्हें किसी भी प्रकार का अवसाद अथवा आत्महीनता […]

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बिखरे मोती

रिश्ते सम्भाल कै राखिये, मत रखना दुर्भाव

बिखरे मोती भाग-76 गतांक से आगे……व्याख्या :-जो विद्यार्थी आलसी है अर्थात-आज का काम कल पर टालता है, मादक पदार्थों (नशीले पदार्थों का सेवन करता है तथा अश्लील बातों में रूचि रखता है, लालची है तथा जो कभी एकाग्रचित नही होता है, मूर्खता की बातों में रत रहता है यानि मूर्ख है। इसके अतिरिक्त अप्रसांगिक बातें […]

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बिखरे मोती

बुरा कहै संसार ये, जिसको हो अभिमान

बिखरे मोती-74 गतांक से आगे….दक्ष कृतज्ञ मतिमान हो,ऋजुता से भरपूर।भृत्य-मित्र को प्राप्त हो,बेशक धन से दूर ।। 806 ।। अर्थात जो व्यक्ति चतुर है, उपकार को मानने वाला है, बुद्घिमान है और उसका कुटिलता रहित उत्तम स्वभाव है। ऐसा व्यक्ति धन रहित होने पर भी भृत्यों (सेवकों) और मित्रों के समूह को प्राप्त होता है।बुरा […]

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बिखरे मोती

धृति विवेक के कारनै, सज्जन कीर्ति पाय

बिखरे मोती भाग-73गतांक से आगे….वध के योग्य शत्रु को,अगर न मारा जाए।बदला लेवै एक दिन,फिर पीछे पछताय ।। 796 ।। बच्चे बूढ़े श्रेष्ठजन,इन पर क्रोध को रोक।दखल जरूरी हो अगर,तो बड़े प्यार से टोक।। 797।।मूरख से उलझै नही,सत्पुरूष वक्त टलाय।धृति विवेक के कारनै,सज्जन कीर्ति पाय ।। 798।। सुख समृद्घि दरिद्रता,यह कर्मों का खेल।कहीं मूरख भी […]

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बिखरे मोती

हृदय में यदि प्रेम हो, तो नेत्र प्रकट कर देय

बिखरे मोती भाग-71गतांक से आगे….संसार में हमारे मनीषियों ने बलों को निम्न पांच श्रेणियों में रखा है:-1. कुल-बल अर्थात पिता, पितामह संबंधी स्वाभाविक बल2. अमात्य-बल अर्थात हितकारी मंत्री अथवा मित्र का होना।3. धन बल अर्थात धन दौलत की प्रचुरता4. शारीरिक बल अर्थात बाहुबल5. बुद्घि बल अर्थात प्रज्ञाबलउपरोक्त पांचों प्रकार के बलों में सर्वश्रेष्ठ बल-बुद्घि का […]

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बिखरे मोती

गैरों के दुर्गुण जानकर, दुर्जन खुशी मनाय

बिखरे मोती भाग-70गतांक से आगे….रोगी को कड़वी दवा,लगता बुरन परहेज।विपदा कुण्ठित मति करै,और घट जावै तेज ।। 766 ।। कुण्ठित मति-बुद्घि का भ्रष्ट होना, आया है संसार में,कर पुण्यों का योग।कर्माशय से ही मिलें,आयु योनि भोग ।। 767 ।। कर्माशय-प्रारब्ध पूर्णायु बल सुख मिलै,सेहत की सौगात।परिमित भोजन जो करे,लाख टके की बात ।। 768 ।। […]

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बिखरे मोती

क्रोध नष्ट करे संपदा, अभिमान गुणों को खाय

बिखरे मोती भाग-68 गतांक से आगे….क्रोध और संताप का,पड़े सेहत पर प्रभाव।इन दोनों का शमन कर,अक्षुण्ण रहेगा चाव ।। 755।। संताप-तनावशमन-शांत करना, पीना, निगलना ‘अक्षुण्ण रहेगा चाव’ से अभिप्राय-जीवन जीने का उत्साह बना रहेगा। क्रूर के आश्रित लक्ष्मी,करती कुल का नाश।सत्पुरूष की लक्ष्मी,करै पीढ़ी का विकास ।। 756।। श्रद्घाहीन को सीख दे,और सबल से राखै […]

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बिखरे मोती

सच्चे मित्र की पहचान

बिखरे मोती भाग-67 गतांक से आगे….भय शंका से रहित हो,पिता तुल्य विश्वास।ये लक्षण जिसमें मिले,मित्र समझना खास ।। 750 ।। भाव यह है कि मित्र वह नही है, जिससे तुम्हें डर लगता हो अथवा जिस पर तुम्हें संदेह रहता हो अपितु सच्चा मित्र तो वह है जिससे तुम्हें शक्ति मिलती है जिसका आचरण संदेह से […]

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बिखरे मोती

जब भी बोलें सोच समझकर बोलें

बिखरे मोती भाग-66 गतांक से आगे…. परमात्मा ऐसे सत्पुरूषों के भण्डारी की स्वयं रक्षा करते हैं। इसीलिए वेद कहता है- ‘‘शतहस्त समाहर: सहस्रहस्तं सं किर:’’ अथर्ववेद 3/24/5 श्रद्घा देयम् अश्रद्घया देयम् , मिया देयम् , हिृया देयम् संविदा देयम् (तैत्तिरीय उपनिषद) अर्थात श्रद्घा से दे, अश्रद्घा से दे, भय से दे, लज्जा से दे, वचन […]

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