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बिखरे मोती

सतसंकलपों के कारनै, झुकता है संसार

बिखरे मोती भाग – 57 दया की करे अपेक्षा, खुद है दयविहीन। आड़े वक्त में तड़फता, जैसे जल बिन मीन ॥646॥ प्राय देखा गया है कि लोग स्वयं पर संकट आने पर परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करते हैं- हे प्रभु! दया करना, जबकि दूसरे पर संकट आने पर मुंह फेर लेते हैं अथवा उपहास करते […]

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बिखरे मोती – भाग 32

बुद्धिमान को चाहिए, छिपावै कुल का दोष जैसा लेकर भाग्य नर, आता इस संसार। सगे सहायक वैसे मिलें, जीविका कारोबार ॥467॥ कालचक्र तब भी चले, जब सोता इंसान। समा गए सब गर्भ में, काल बड़ा बलवान ॥468॥ जन्मांध और कामान्ध को, कुछ न दिखाई देय। भला बुरा दिखता नहीं, स्वार्थी को दीखै ध्येय ॥469।। कर्मों […]

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ओउम नाम की नाव से, तरे अनेकों संत

आधी बीती नींद में, कुछ रोग भोग में जाए। पुण्य किया नहीं हरी भजा, सारी बीती जाए ॥415॥ धर्म कर्म का उपार्जन, खोले सुखों के द्वार। इनमें मत प्रमाद कर, कल खड़यो है त्यार ॥416॥ रसों में रस है ब्रह्मा रस, रोज सवायो होय। जितना हो रसपान कर, सारे दुखड़ा खोय ॥417॥ पग-पग पर यहाँ […]

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आशा से ही मनुष्य कर्म करता है

बिखरे मोती-भाग 173 गतांक से आगे…. महर्षि सनत्कुमार ने कहा-ध्यान से बड़ा विज्ञान है। विज्ञान द्वारा ही ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद आदि, द्यु, पृथ्वी, आकाश, वायु, जल, अग्नि तथा धर्म-अधर्म सत्य-असत्य इत्यादि का ज्ञान होता है। इसलिए हे नारद! तू विज्ञान की उपासना कर। नारद ने फिर पूछा, विज्ञान से बढक़र क्या है? भगवन। महर्षि […]

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विषय की चेतना की अनुभूति ‘चित्त’ में होती है

बिखरे मोती-भाग 172 गतांक से आगे…. यह सुनकर सनत्कुमार ने देवर्षि नारद से पूछा-जो कुछ तुम जानते हो, पहले वह बताओ? नारद ने कहा, मैंने चारों वेद, उपवेद, इतिहास, पुराण, गणित, नीति शास्त्र, तर्कशास्त्र अथवा कानून , देवविद्या (निरूक्त) भौतिक रसायन व प्राणीशास्त्र नक्षत्र विद्या (ज्योतिष) निधि शास्त्र (अर्थशास्त्र) ब्रह्मविद्या इत्यादि को पढ़ा है। यह […]

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मन के संग जब तन जुड़ै, तब होवै तल्लीन

बिखरे मोती-भाग 171 गतांक से आगे…. सूर्य तो निरंतर दीप्तिमान है। पृथ्वी की दैनिक गति के कारण जो भूभाग सूर्य के सामने होता है वहां दिन होता है और जिस भूभाग पर सूर्य की किरणें नहीं पहुंच पाती हैं वहां रात होती है। ठीक इसी प्रकार जीव (मैं अर्थात आत्मा) ब्रह्म, प्रकृति अनादि हैं। इनकी […]

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चंद लम्हों की जिंदगी, बन जाए उसहार

बिखरे मोती-भाग 170 गतांक से आगे…. यह जीभ की  लड़ाई घनिष्ठतम रक्तसंबंधों को भी छिन्न-भिन्न कर देती है। जैसा कि रामायण में मंथरा ने चुगली करके केकैयी को भडक़ाया था, जिसका दुष्परिणाम आज सबके सामने है। इसके अतिरिक्त महाभारत के तीन पात्र शकुनि, दुर्योधन तथा द्रोपदी ऐसे हैं, जिनकी वाणी ने विनाश कराया था। जीभ […]

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ज्ञान प्रेम संसार में, प्रभु की अनुपम देन

गतांक से आगे….आत्मा को परमात्मा,करे सदा आगाह।ज्ञानी आग्रह ना करै,सिर्फ बतावै राह।। 977।। व्याख्या :-मनुष्य जब भी कोई कुकर्म करता है तो तत्क्षण अंदर से आत्मा उसे रोकती है किंतु मनुष्य अज्ञान और अहंकार के कारण आत्मा की इस मूक आवाज को अनसुनी कर देता है। वास्तव में यह आवाज परमात्मा की प्रेरणा होती है, […]

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ब्रह्म तो मायाधीश है, जीव है मायाधीन

गतांक से आगे…. ब्रह्म तो मायाधीश है, जीव है मायाधीन। माया बंध को तोडक़र, बिरला हो स्वाधीन ।। 970।।   व्याख्या :-इस संसार में जीव, ब्रह्म, प्रकृति अनादि हैं। तीनों की अपने-अपने क्षेत्र में सत्ता है किंतु सर्वोच्च सत्ता ब्रह्म की है। जीव और प्रकृति का अधिष्ठाता ब्रह्म है। जीवों के आवागमन के क्रम का […]

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प्रभु चरणों में चित लगै, वो क्षण है अनमोल

गतांक से आगे….मत जी खाने के लिए,जीने के लिए खाय।मन को रखना मोद में,रोग निकट नही आय ।। 963।। व्याख्या : महर्षि पतंजलि ने कहा था-हित भुक, मितभुक, ऋतभुक अर्थात भोजन ऐसा करो जो तुम्हारे शरीर की प्रकृति और ऋतु के अनुकूल हो किंतु भूख से थोड़ा खाओ। अत: मनुष्य को खाने के लिए नही […]

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