बिखरे मोती-भाग 90 कर्म बदल सत्कर्म में, जीवन के दिन चार। पुण्य मुद्रा स्वर्ग की, भर इसके भण्डार ।। 898 ।। व्याख्या : हे मनुष्य! यह जीवन क्षणभंगुर है। जितना हो सके कर्मों को पुण्य में परिवर्तित कर क्योंकि स्वर्ग की मुद्रा पुण्य है। इसी के आधार पर तुझे स्वर्ग में प्रवेश मिलेगा। इसलिए समय […]
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वह परमात्मा अज्ञान से अत्यंत परे है
बिखरे मोती-भाग 89 जितना समीप परमात्मा, इतना कोई नाहिं। कारण बनकै रम रहा, हर कारज के माहिं ।। 893 ।। व्याख्या : प्रकृति से अधिक समीप स्थूल शरीर है, स्थूल शरीर से अधिक समीप सूक्ष्म शरीर है, सूक्ष्म शरीर से अधिक समीप कारण शरीर है, कारण शरीर से अधिक समीप अहम है और अहम से […]
देह, आत्मा, जगत की, कभी एकता न होय
बिखरे मोती-भाग 88 कृपा जीवन बदल देती है, रंक को राजा बना देती है। दिखने में कृपा मामूली लगती है किंतु गुणकारी और प्रभावशाली इतनी होती है कि जिंदगी का कायाकल्प कर देती है। देखने में तो लाइटर की चिंगारी भी बड़ी सूक्ष्म होती है, किंतु जब वह चूल्हे की अग्नि बनकर जलती है तो […]
बिखरे मोती-भाग 87 कर्म करो ऐसे सदा, मीठी याद बन जाय। तू पंछी उस देश का, जाने कब उड़ जाये ।। 885 ।। व्याख्या : हे मनुष्य! यह जीवन क्षणभंगुर है। इसका कोई भरोसा नही है। तू पृथ्वी पर कर्म-क्रीड़ा करने के लिए आनंद लोक से आया है। इसलिए यहां पर ऐसे कर्म कर ताकि […]
कड़ुवा और क्रोध में, मत बोलो कभी बोल
बिखरे मोती-भाग 86 मांगे से तीनों घटें, प्यार पुरस्कार सत्कार। सहज भाव से होत है, सदा तीनों का विस्तार ।। 873 ।। बिन मांगे मत सीख दे, बिन श्रद्घा के दान। वाणी पर संयम रखें, वे नर चतुर सुजान ।। 874 ।। सीख अर्थात उपदेश, सलाह मन को चिंता में नही, चिंतन में जो लगाय। […]
आत्मबोध से मिटत है,जग में सभी अभाव
बिखरे मोती-भाग 83 जग में दुर्लभ ही मिलें, उर में साधुभाव। यही तो दैवी संपदा, पार लगावै नाव ।। 860 ।। साधुभाव-अंत:करण के श्रेष्ठ भावों को साधुवाद कहते हैं। श्रेष्ठभाव अर्थात सद्गुण-सदाचार दैवी संपत्ति है। व्याख्या : इस संसार में जमीन जायदाद और धन वैभव के स्वामी तो बहुत मिलते हैं किंतु दैवी संपत्ति का […]
बिखरे मोती-भाग 174 गतांक से आगे…. जो आशा को ‘ब्रह्म’ मानकर उसकी उपासना करता है, उसके सब आशीर्वाद अमोघ होते हैं, फलते हैं, किंतु आशा की गति की भी एक सीमा है। नारद ने पूछा, तो क्या भगवन! आशा से बढक़र भी कुछ है? हां है। नारद ने कहा, तो भगवन! आप मुझे उसका ही […]
बिखरे मोती भाग-52
चित चिंतन और चरित्र को, राखो सदा पुनीत भाव यह है कि प्रेम के बिना संसार के सारे रिश्ते ऐसे लगते हैं जैसे सूखा गन्ना। सूखा गन्ना शक्ल सूरत से तो बेशक गन्ना दिखाई देता है किंतु रस न होने के कारण वह अनुपयोगी हो जाता है। ठीक इसी प्रकार यदि सांसारिक रिश्तों में प्रेम […]
बिखरे मोती भाग- भाग-75
युवा जीयें भविष्य में, ऐसा विधि-विधान जो जन आसक्ति रहित, अपनी सिद्धि में लीन। भूसुर ज्ञानी तपस्वी, मिलें दुर्लभ ऐसे कुलीन ॥813॥ स्वयं को करता माफ तू, गैरों से प्रतिशोध। ये तो आत्मप्रवंचना, कब जागेगा बोध ॥814॥ आत्मप्रवंचना- अपने आपको धोखा देना। कब जागेगा बोध से अभिप्राय है- अपनी गलती को मानने का विवेक कब […]
बिखरे मोती भाग- 72
सोये शेर के मुखन में, हिरण कभी नहीं आय प्रेम का शाश्वत नियम है- “प्रेम यदि हृदय में हो तो नेत्र में उतरता है, नेत्र से फिर वह सामने वाले के हृदय में उतरता है।” यश धन अदने को मिलै, तो अपनों से कट जाए। ज्यों गुब्बारे में हवा, अधिक आय फट जाए ॥786॥ ‘अपनों […]