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बिखरे मोती

बिखरे मोती-भाग 44

कंगन शोभा न हाथ की, हाथ की शोभा दान व्यक्ति को जब ज्ञान, भक्ति और प्रेम की समन्वित पराकाष्ठा प्राप्त होती है तो देवत्व का जागरण होता है, जिससे भगवत्ता प्राप्त होती है। तब यह सात्विक तेज दिव्य आत्माओं के मुखमण्डल पर आभामण्डल (ORA) बनके छा जाता है। इसे ही सौम्यता कहते हैम, दिव्यता कहते […]

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आत्मा के तीन बंधन:भय, भ्रम और भोग

बिखरे मोती-भाग 111 बंधन जग में तीन हैं, भय भ्रम और हैं भोग। इनसे मुक्ति तब मिलै, जब हरि से हो योग ।। 969।। व्याख्या:- इस परिवर्तनशील संसार में जीवात्मा तीन बंधनों भय, भ्रम और भोग में आबद्घ है। जीवात्मा के चारों तरफ ऐसी मोटी पर्तें हैं जो फौलाद से भी कई गुणा अधिक कठोर […]

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ज्ञानी के क्षण बोलते, शास्त्र-ज्ञान और मोद

बिखरे मोती-भाग 110 यदि मैं मेरे को जानता, तो भक्ति में हो लीन। उर में ऐसी तड़प हो, जैसे जल बिन मीन ।। 966।। व्याख्या :- जो लोग ‘मैं’ आत्मा ‘मेरे’ परमात्मा को जानना चाहते हैं, उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि शरीर के प्रपंच के पीछे जीवात्मा ही सार वस्तु है, संसार के प्रपंच […]

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मृत्यु के भारी भंवर, कोई न बचने पाय

बिखरे मोती-भाग 108 काल के प्रवाह में, हर कोई बहता जाए। मृत्यु के भारी भंवर, कोई न बचने पाय ।। 960।। व्याख्या :- जिस प्रकार सरिता का जल समुद्र की तरफ प्रवाहित रहता है, ठीक इसी प्रकार इस समष्टि में जड़-चेतन सभी मृत्यु की तरफ बहते जा रहे हैं। इस संदर्भ में श्वेताश्वतर उपनिषद का […]

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मन पर पावै जो विजय, वह वीरों का भी वीर

बिखरे मोती-भाग 103 मद में हो मगरूर नर, करता है अन्याय। अहंकार आंसू बनै, जब हो प्रभु का न्याय ।। 946।। व्याख्या :- इस संसार में धन, यौवन अथवा पद के कारण अहंकार में चूर होकर जब व्यक्ति किसी को अपमानित करता है, अन्याय करता है अथवा उसकी अंतरात्मा को सताता है तो आक्रोष्टा के […]

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सत्गुरू मिलै भक्ति जगै, जग में दुर्लभ होय

बिखरे मोती-भाग 102 जितने भी संयोग हैं, उतने ही हैं वियोग। अटल सत्य संसार का, मत लगा चिंता रोग ।। 943।। व्याख्या :- हमारे वेदों ने हमें जाग्रत पुरूष की तरह जिंदगी जीने के लिए प्रेरित किया है, किंतु इस संसार में अधिकांशत: मनुष्य आधी अधूरी जिंदगी जीते हैं। बेशक ऐसे व्यक्ति यज्ञ, सत्संग अथवा […]

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पुण्यात्मा का मन सदा, हरि में रूचि दिखाय

बिखरे मोती-भाग 101 धन के संग में धर्म भी, ज्यों-ज्यों बढ़ता जाए। मन हटै संसार से, प्रभु चरणों में लगाय ।। 938 ।। व्याख्या :- इस नश्वर संसार में मनुष्य की धन दौलत जैसे-जैसे बढ़ती जाती है, यदि उसी अनुपात में दान पुण्य अथवा भक्ति और धर्म के कार्यों में रूचि बढ़ती है, तो मन […]

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कोयला हीरा एक है, किंतु भिन्न है मोल

बिखरे मोती-भाग 100 भौतिकता में मन फंसा, क्या जाने मैं कौन? नशा विकारों का चढ़ा, चेतन कर दिया मौन ।। 934 ।। व्याख्या :- इस संसार में ऐसे भी लोग हैं जो तन से तो मनुष्य हैं किंतु मन में पाशविकता इतनी भरी पड़ी है कि वे राक्षस और पिशाच की श्रेणी में आते हैं। […]

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तनु-भाव में जो रम गया, उसे मिलै हरि का देश

बिखरे मोती-भाग 99 ऋजुता का जीना सदा, राखै हरि समीप। एक कुटिलता के कारनै, बुझै ज्ञान का दीप ।।931।।  व्याख्या :- ऋजुता से अभिप्राय है कि सरलता अर्थात हृदय का कुटिलता रहित होना। जिनका हृदय ऋजुता से ओत-प्रोत होता है उन्हें प्रभु का सानिध्य प्राप्त होता है। वे प्रभु-कृपा  के पात्र होते हैं, किंतु हृदय […]

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प्रेरणा ले आगे बढ़ै, करे जीवन का कल्याण

बिखरे मोती-भाग 106 चल मनुवा उस देश को, जहां मिलै आनंद। प्रकृति से है परे, वह प्यारा परमानंद ।। 955 ।। व्याख्या :- महर्षि पतंजलि ने कहा था कि संसार के सारे क्लेश तन, मन और बुद्घि में है। मन का स्वभाव है-माया (प्रकृति) में रमण करना, और बुद्घि को भी माया में ही लगाये […]

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