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बिखरे मोती

ज्ञान-दीप ज्योंहि बुझै, होता महाविनाश

बिखरे मोती-भाग 178 यह लक्षण न तो कर्मयोगी में आया है और न ज्ञान योगी में आया है। यह लक्षण भगवान कृष्ण ने केवल भक्त का बताया है, क्योंकि भक्त में आरंभ में ही मित्रता और करूणा होती है। भक्त की दृष्टि में समस्त प्राणी परमात्मा का अंश हैं, इसलिए वह सोचता है कौन वैर […]

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बिखरे मोती

रिश्ते खून के नहीं, इनकी जड़ जज्बात

बिखरे मोती-भाग 177 रिश्ते खून से नही अपितु भावनाओं से जुड़े होते हैं :-   रिश्ते खून के नहीं, इनकी जड़ जज्बात। घायल हो जज्बात जब, लगै हृदय को आघात ।। 1104 ।।   व्याख्या :- कैसी विडंबना है कि यह संसार रिश्तों की प्रगाढ़ता का मापदण्ड रक्त संबंध को मानता है? ऐसे लोगों की […]

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बिखरे मोती

जाति नहीं गुणवान का सर्वदा हो सम्मान

बिखरे मोती-भाग 176 गतांक से आगे…. अहंता भगवान में लग जाने पर चित्त स्वत: स्वाभाविक भगवान में लग जाता है-जैसे शिष्य बन जाने पर ‘मैं गुरू का हूं।’ इस प्रकार अहंता गुरू में लग जाने पर गुरू की यादें सर्वदा चित्त में बनी रहती हैं। वैसे देखा जाए तो गुरू के साथ शिष्य स्वयं संबंध […]

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मत रम मन संसार में, सपनेवत् संसार

बिखरे मोती-भाग 175 गतांक से आगे…. सहज नहीं कूटस्थ व्रत, दुर्लभ पूरा होय। शक्ति शान्ति सुकून तो, फिर पीछे-पीछे होय ।। 1101 ।। व्याख्या :- भगवान कृष्ण ने गीता के छठे अध्याय के आठवें श्लोक में इसकी व्याख्या करते हुए कहा है-‘कूटवत तिष्ठतीति कूटस्थ:‘ अर्थात जो कूट (अहरन) की तरह स्थित रहता है, उसको कूटस्थ […]

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बिखरे मोती

यथा शक्ति संचित करो, जीवन में सत्कर्म

बिखरे मोती भाग-80  मृत पुरुष परलोक में, केवल जाए न आप। उसके संग लिपटे चलें, किए पुण्य और पाप ॥845॥ मृत पुरुष अर्थात- मृतक की जीवात्मा परलोक में केवल अकेली नहीं जाती है, अपितु उसने अपने जीवन में कितने पाप और पुण्य किए इसका लेखा-जोखा भी उसके साथ जाता है। इसलिए हे मनुष्य! जितना हो […]

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बिखरे मोती भाग-79

अहंकार को जीत ले, करना तू प्रणिपात बेशक तन से अपंग हो, पर मन से हो बलवान। ऐसे नर आगे बढ़ें, सब देखकै हों हैरान ॥837॥ भाव यह है कि मनुष्य बेशक तन से विकलांग हो किन्तु मन से विकलांग न हो, उनके मन में कुछ कर गुजरने का एक जुनून हो तो सफलता एक […]

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बिखरे मोती-भाग 44

कंगन शोभा न हाथ की, हाथ की शोभा दान व्यक्ति को जब ज्ञान, भक्ति और प्रेम की समन्वित पराकाष्ठा प्राप्त होती है तो देवत्व का जागरण होता है, जिससे भगवत्ता प्राप्त होती है। तब यह सात्विक तेज दिव्य आत्माओं के मुखमण्डल पर आभामण्डल (ORA) बनके छा जाता है। इसे ही सौम्यता कहते हैम, दिव्यता कहते […]

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बिखरे मोती

आत्मा के तीन बंधन:भय, भ्रम और भोग

बिखरे मोती-भाग 111 बंधन जग में तीन हैं, भय भ्रम और हैं भोग। इनसे मुक्ति तब मिलै, जब हरि से हो योग ।। 969।। व्याख्या:- इस परिवर्तनशील संसार में जीवात्मा तीन बंधनों भय, भ्रम और भोग में आबद्घ है। जीवात्मा के चारों तरफ ऐसी मोटी पर्तें हैं जो फौलाद से भी कई गुणा अधिक कठोर […]

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बिखरे मोती

ज्ञानी के क्षण बोलते, शास्त्र-ज्ञान और मोद

बिखरे मोती-भाग 110 यदि मैं मेरे को जानता, तो भक्ति में हो लीन। उर में ऐसी तड़प हो, जैसे जल बिन मीन ।। 966।। व्याख्या :- जो लोग ‘मैं’ आत्मा ‘मेरे’ परमात्मा को जानना चाहते हैं, उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि शरीर के प्रपंच के पीछे जीवात्मा ही सार वस्तु है, संसार के प्रपंच […]

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बिखरे मोती

मृत्यु के भारी भंवर, कोई न बचने पाय

बिखरे मोती-भाग 108 काल के प्रवाह में, हर कोई बहता जाए। मृत्यु के भारी भंवर, कोई न बचने पाय ।। 960।। व्याख्या :- जिस प्रकार सरिता का जल समुद्र की तरफ प्रवाहित रहता है, ठीक इसी प्रकार इस समष्टि में जड़-चेतन सभी मृत्यु की तरफ बहते जा रहे हैं। इस संदर्भ में श्वेताश्वतर उपनिषद का […]

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