बिखरे मोती-भाग 189 गतांक से आगे…. ”जीना है तो दिव्यता में जीओ।” ”आत्मा की आवाज सुनो और आगे बढ़ो।” आत्मा की आवाज परमात्मा की आवाज होती है। आत्मा की बात को मानना भगवान की बात को मानना है। इस संदर्भ में भगवान राम ‘रामचरितमानस’ के उत्तरकाण्ड पृष्ठ 843 पर कहते हैं- सोइ सेवक प्रियतम मम […]
श्रेणी: बिखरे मोती
बिखरे मोती-भाग 188 गतांक से आगे…. हिंसा मन का स्वभाव है जबकि अहिंसा आत्मा का स्वभाव है। लोभवश कोई अपराध करने पर कहता है-”मन बिगड़ गया था” अर्थात आत्मा रूपी सवार को मन रूपी घोड़ा उड़ा ले गया और उसे पतन के गड्ढे में गिरा दिया। इससे स्पष्ट होता है कि लोभ मन का स्वभाव […]
बिखरे मोती-भाग 187 गतांक से आगे…. बाढ़ ही खेती को खा रही है तो हिमायत किससे करें? किस-किस को रोओगे? रोते-रोते पागल हो जाओगे क्योंकि लोगों ने अपनी आत्मा का हनन करना शुरू कर दिया है। यह पैदा होता है कि यदि ऐसे लोग देश के सुसंस्कृत नागरिक हैं तो निकृष्ट किसे कहेंगे? यदि ऐसे […]
बिखरे मोती-भाग 185 तत्वज्ञान प्राप्ति के लिए आत्मज्ञानी व्यक्ति बाधा आने पर भी विचलित नही होता है क्योंकि उसके अंदर स्थैर्य का विशिष्ट गुण होता है। वह थर्मोस्टेट की तरह होता है, थर्मोस्टेट से अभिप्राय है कि कमरे में लगे हुए ए.सी. के तापमान को स्थिर रखने वाला यंत्र। इस यंत्र की यह विशेषता है […]
बिखरे मोती-भाग 184 भक्ति के संदर्भ में महर्षि देव दयानंद ने कहा-”प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम एक घंटा प्रतिदिन ध्यान (भक्ति) में बैठना चाहिए। चित्त को हर ओर से हटाकर भगवान के चिंतन में लगा देना चाहिए परंतु जो लोग मुक्ति चाहते हैं उन्हें कम से कम दो घंटे ध्यान करना चाहिए।” महर्षि ने […]
बिखरे मोती-भाग 183 भाव यह है कि भगवान से ऊर्जान्वित होते रहने से मनुष्य जीवन की समर्थता है अन्यथा नहीं। दूध विभिन्न सोपानों से गुजर कर भक्ति की उत्कृष्टता और उच्चतम अवस्था को प्राप्त होता है। इसलिए भक्ति का मानव जीवन में विशिष्ट स्थान है। भक्ति के कारण मनुष्य ईश्वर की कृपा का पात्र बनता […]
बिखरे मोती-भाग 182 सद्गुणों से मनुष्य प्रतिभावान होता है, आभावान होता है, दीप्तिमान होता है, गुणवान होता है। वह अपने कुल, समाज और राष्ट्र को आलोकित करता है, उनका गौरव बनता है-जबकि दुर्गुणों से मनुष्य पतन के गर्त में गिरता है, अपने कुल अथवा खानदान, राष्ट्र व समाज को कलंकित करता है और घृणा का […]
बिखरे मोती-भाग 181 अर्जित की हुई संपत्ति बंटवारे के समय विपत्ति बन जाती है। जिस संपत्ति के कारण वह अपने बुढ़ापे को सुरक्षित समझ रहा था, वही विवाद और विनाश का चक्रवात बन जाती है। जिनको वह सहारे समझ रहा था, वही किनारे बन जाते हैं। उसके सुनहले सपने यथार्थ के धरातल से कोसों दूर […]
बिखरे मोती-भाग 180 वास्तव में ऐसा व्यक्ति ही परमात्मा का सबसे प्रिय होता है, उसका खजाना कभी खाली नहीं होता है- क्योंकि उसके सिर पर परमात्मा का वरदहस्त होता है। गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं-हे पार्थ! ‘आप्त बांधव: अर्थात जो दूसरों को आपत्ति से निकालते हैं-वे मेरे रिश्तेदार हैं।’ भाव […]
बिखरे मोती-भाग 179 प्रभुता पाकै श्रेष्ठ हो, फिर भी नहीं अभिमान। ऐसा नर दुर्लभ मिलै, जापै हरि मेहरबान ।। 1108 ।। व्याख्या :- भाव यह है कि प्राय: इस संसार में ऐसे लोग तो देखने को बहुत मिलते हैं, जो धन-दौलत, पद-प्रतिष्ठा, जाति-कुल, विद्या, बुद्घि, आश्रम, शारीरिक सौष्ठव अथवा सौंदर्य विभिन्न प्रकार के बल, […]