नाम, जन्म, स्थान को, केवल जानै ईश। अन्तःकारण पवित्र रख, मिल जावै जगदीश ॥2712॥ तत्त्वार्थ:- प्रायः देखा गया है कि स्वर्ग तो सभी चाहते हैं किन्तु पुण्य – प्रार्थना कोई और करें क्या यह सम्भव है ? म नही! ठीक इसी प्रकार जिस अन्तःकरण चतुष्ट्य अर्थात् मन बुद्धि, चित्त,अहंकार को निर्मल किये बिना परमात्म-प्राप्ति हो […]
श्रेणी: बिखरे मोती
(देवी-सम्पद की महिमा:-) अहमन्यता के कारणै, पाले बहुत हैं भ्रम । दैवी – सम्पद के बिना, नहीं मिलेगा ब्रह्म॥2710॥ तत्त्वार्थ :- भक्ति के मार्ग दो बढ़ी बाधाएँ हैं- पहली है अद्धेष्टा होना अर्थात् द्वेष रहित होना, और दूसरी अहमन्यता का होना अर्थात् अहम्का होना,अपने को निमित्त नहीं कर्ता समझना। इस छोटी सी चूक से सारे […]
तमोगुण का कूप इतना गहरा है कि इससे निकलना बड़ा जटिल और दुष्कर है , प्रायः सादक या तो इस कूप में गिर जाते है अथवा भटक जाते है इस तमोगुण के दानव में न जाने कितने सादको को निगला है। हमारे मनीषियों ने योगियो, ऋषियों ने तमोगुण को जीतने के कुछ उपाय बताए है […]
रजोगुण की प्रधानता से कर्म तो करो क्योंकि रजोगुण से सुख की प्राप्ति होती है किन्तु उसमें फंसो मत जैसे कमल पानी में रहता किन्तु पानी से ऊपर रहता है। कहने का अभिप्राय यह है कि आसक्ति में मत फंसो निरासक्त रहो, प्राणी मात्र अथवा मानवत के कल्याण के लिए सदैन तत्पर रहो, एक तपस्वी […]
जरा अपने ही गिरहवान में झांक कर तो देखिए :- नफरत हो जायेगी तुझे, अपने ही किरदार से। अगर मैं तुमसे, तेरे ही किरदार में बात करूँ॥2705॥ प्रेम की महिमा :- जब आइना एक था, तो चेहरा भी एक था। आइना क्या टूटा, चेहरे भी जुदा-जुदा हो गए॥2706॥ कौन हैं पृथ्वी के भूषण और भार […]
सहज-सरल-सरस, गण्या प्रेरक प्रशस्या, आवाज खो गई, सब गौर से सुन रहे थे, सहसा वो खामोश हो गई ॥2701॥ *मुक्तक* विलक्षण व्यक्तित्त्व के संदर्भ में :- जब किसी पुण्यात्मा का, धरा पर प्रादुर्भाव होता है। काल की गति बदलती है, फिजा का रंग बदलता है। दिशाएँ गीत गाती हैं, सुयश की बयार बहती है, पौ […]
महर्षि देव दयानन्द की बहुमुखी प्रतिभा के संदर्भ में कविता:- देव दयानन्द क्रान्तिवीर था, गुलामी की रात में प्रकाशवीर था। भारत मां आज़ाद हो, प्रति पल अधीर था। ढोंग और पाखण्ड पर, पैनी शमशीर था। देव दयानन्द *क्रान्तिवीर था … वो इन्सानी चोले में, रहवर-ए-जमीर था। वो ब्रहमज्ञानी, तत्ववेत्ता, तपस्वी और गम्भीर था। देव दयानन्द […]
व्यक्ति को विभूतियां विधाता की कृपा से ही मिलती हैं:- आकर्षक व्यक्तित्व हो, प्रतिभा सौम्य स्वभाव । ये तो प्रभु की देन है, प्रशस्या वाक प्रभाव॥2682॥ व्याख्या : अर्थात् मन को मोहने वाला सुंदर व्यक्तित्व बहुमुखि प्रतिभा का धनी होना तथा इसके साथ-साथ स्वभाव में शालीनता, अहंकार शून्यता होना ये बड़प्पन के लक्ष्ण है, ये […]
‘विशेष शेर’: – ज्ञान की गहराई, चरित्रा की ऊँचाई, दिलों पर गहरी छाप छोड़ती हैं। एक लम्हा ऐसा भी आता है, जब ज़िन्दगी को, रुहानी राह की तरफ मोड़ती हैं॥2674॥ सोचो, यह कितना बढ़ा अज्ञान है? ऐ बशर ! जो तेरा नहीं है, उसे तू मेरा कहता है। खुदा का नाम तेरा था, तेरा है,तेरा […]
‘ विशेष ‘ जब तुम्हें किसी सभा में सम्मानित किया जाय तो कृतज्ञता इस प्रकार ज्ञापित करें :- ऐ खुदा ! मैं इस काबिल तो नहीं, कि कोई दिल से नवाजे मुझे, लगता है तोफ़ा भेजा है तूने , यही सोचकर नज़रें मैंने झुका दीं। ऐ वाहिद! तू इतना बता मुझे, तुझे मेरी खूबी किसने […]