‘ विशेष ‘ निर्मल और अधम हृदय की पहचान :- निर्मल हृदय में उगें , प्रभु-प्रेरित सद्भाव। अधम हृदय में जन्मते, कल्मष कुटिल दुराव॥2718॥ तत्त्वार्थ- भाव यह है कि जनका हृदय निर्मल होता है। वे प्रभु-कृपा के पात्र होते है। प्रभु प्रेरणा से उनके हृदय में हमेशा ऐसी उर्मियाँ उठती हैं,जो उन्हें सत् चर्चा सत्कर्म […]
Category: बिखरे मोती
भक्ति की धारा बहे, चाव-भाव के बीच। ध्यान लगा हरि-ओ३म् -से, आँखों को ले मींच ॥2715॥ प्रत्येक जीवात्मा के साथ जिनका अनन्य सम्बन्ध है- मन ज्ञानेन्द्री जीव , ऐसे है सम्बन्ध । जैसे वायु के संग में, बहती रहती गन्द॥2716॥ तत्त्वार्थ:– भाव यह है कि परम पिता परमात्मा प्रत्येक जीवात्मा को मन अथवा चित्त श्रोत्र, […]
‘विशेष शेर’ सर्वदा शब्द सम्भालकर बोलिए :- जीभ में ज़ख्म हो, तो कुछ वक्त में भर जाता है। मगर जीभ से दिया ज़ख्म, ताउम्र नहीं भरता॥2713॥ जो कहते कुछ हैं और करते कुछ है उनके संदर्भ में:- देखा नज़दीक से लोगों को , तो होश उड़ गए । हक़ीक़त जानकर, हम खामोश हो गए॥2714॥ क्या […]
प्रभु-मिलन की चाह है, तो: -*
नाम, जन्म, स्थान को, केवल जानै ईश। अन्तःकारण पवित्र रख, मिल जावै जगदीश ॥2712॥ तत्त्वार्थ:- प्रायः देखा गया है कि स्वर्ग तो सभी चाहते हैं किन्तु पुण्य – प्रार्थना कोई और करें क्या यह सम्भव है ? म नही! ठीक इसी प्रकार जिस अन्तःकरण चतुष्ट्य अर्थात् मन बुद्धि, चित्त,अहंकार को निर्मल किये बिना परमात्म-प्राप्ति हो […]
(देवी-सम्पद की महिमा:-) अहमन्यता के कारणै, पाले बहुत हैं भ्रम । दैवी – सम्पद के बिना, नहीं मिलेगा ब्रह्म॥2710॥ तत्त्वार्थ :- भक्ति के मार्ग दो बढ़ी बाधाएँ हैं- पहली है अद्धेष्टा होना अर्थात् द्वेष रहित होना, और दूसरी अहमन्यता का होना अर्थात् अहम्का होना,अपने को निमित्त नहीं कर्ता समझना। इस छोटी सी चूक से सारे […]
तमोगुण का कूप इतना गहरा है कि इससे निकलना बड़ा जटिल और दुष्कर है , प्रायः सादक या तो इस कूप में गिर जाते है अथवा भटक जाते है इस तमोगुण के दानव में न जाने कितने सादको को निगला है। हमारे मनीषियों ने योगियो, ऋषियों ने तमोगुण को जीतने के कुछ उपाय बताए है […]
रजोगुण की प्रधानता से कर्म तो करो क्योंकि रजोगुण से सुख की प्राप्ति होती है किन्तु उसमें फंसो मत जैसे कमल पानी में रहता किन्तु पानी से ऊपर रहता है। कहने का अभिप्राय यह है कि आसक्ति में मत फंसो निरासक्त रहो, प्राणी मात्र अथवा मानवत के कल्याण के लिए सदैन तत्पर रहो, एक तपस्वी […]
जरा अपने ही गिरहवान में झांक कर तो देखिए :- नफरत हो जायेगी तुझे, अपने ही किरदार से। अगर मैं तुमसे, तेरे ही किरदार में बात करूँ॥2705॥ प्रेम की महिमा :- जब आइना एक था, तो चेहरा भी एक था। आइना क्या टूटा, चेहरे भी जुदा-जुदा हो गए॥2706॥ कौन हैं पृथ्वी के भूषण और भार […]
सहज-सरल-सरस, गण्या प्रेरक प्रशस्या, आवाज खो गई, सब गौर से सुन रहे थे, सहसा वो खामोश हो गई ॥2701॥ *मुक्तक* विलक्षण व्यक्तित्त्व के संदर्भ में :- जब किसी पुण्यात्मा का, धरा पर प्रादुर्भाव होता है। काल की गति बदलती है, फिजा का रंग बदलता है। दिशाएँ गीत गाती हैं, सुयश की बयार बहती है, पौ […]
महर्षि देव दयानन्द की बहुमुखी प्रतिभा के संदर्भ में कविता:- देव दयानन्द क्रान्तिवीर था, गुलामी की रात में प्रकाशवीर था। भारत मां आज़ाद हो, प्रति पल अधीर था। ढोंग और पाखण्ड पर, पैनी शमशीर था। देव दयानन्द *क्रान्तिवीर था … वो इन्सानी चोले में, रहवर-ए-जमीर था। वो ब्रहमज्ञानी, तत्ववेत्ता, तपस्वी और गम्भीर था। देव दयानन्द […]