बिखरे मोती-भाग 199 कछुआ भूले ना लक्ष्य को, बेशक पलटी खाय। मनुआ हरि को याद रख, यह माया तो भटकाय ।। 1132 ।। व्याख्या :- प्रकृति में कछुआ एक ऐसा प्राणी है, जिसमें आत्मसंयम, परिस्थिति से तालमेल और अपने गंतव्य को न भूलने की विलक्षण शांति परमपिता परमात्मा ने उसे उपहार स्वरूप प्रदान की है। […]
श्रेणी: बिखरे मोती
बिखरे मोती-भाग 198 ठीक इसी प्रकार हमारी जीवनी नैया के भी दोनों तरफ चप्पू लगे हैं। एक है लौकिक उन्नति, भौतिक उन्नति का और दूसरा है पारलौकिक उन्नति (आध्यात्मिक उन्नति) का, कैसी हास्यास्पद स्थिति है? पाना चाहते हैं ‘आनंद’ को और चप्पू चलाते हैं, माया का, रात-दिन एक ही रट हाय माया? हाय रूपया पैसा!!! […]
बिखरे मोती-भाग 197 यहां तक कि सद्गुणों के कारण व्यक्ति का इस संसार में ही नहीं अपितु स्वर्ग में भी उसका आसन श्रेष्ठ होता है। अत: हो सके तो संसार में अपने सद्गुणों का, अच्छे हुनर का अधिक से अधिक दान दीजिए। आपके द्वारा दान में दिये गये सद्गुण किसी को फर्श से उठाकर अर्श […]
बिखरे मोती-भाग 196 यह कोई आवश्यक नहीं कि कपड़े रंगने से ही वैराग्य होता है। महाराजा जनक तो राजा होते हुए भी वैरागी थे। वैराग्य से अभिप्राय है-विवेक का जगना अर्थात आसुरी शक्तियों का उन्मूलन और दिव्य शक्तियों (ईश्वरीय शक्तियों) का अभ्युदय होना, उनका प्रबल होना ही वैराग्य कहलाता है। यदि जीवन में वैराग्य जग […]
बिखरे मोती-भाग 195 जो लोग इस तन को सजाने संवारने में, उसे हर प्रकार से प्रसन्न रखने में उसके लिए ‘येन केन प्रकारेण’ अर्थोपार्जन करने में अर्थात अनाप-शनाप तरीके से धन कमाने में जीवनपर्यन्त लगे रहते हैं, वे आत्मा का हनन करते हैं, अक्षम्य अपराध करते हैं, वे इस लोक में तो अपयश के भागी […]
बिखरे मोती-भाग 194 गतांक से आगे…. भोजन वसन तन को दिये, सुंदर दिये आवास, भक्ति-रस ना दे सका, नहीं बुझी हंस की प्यास ।। 1127।। व्याख्या :-हाय रे मानव! तेरी मनोदशा देखकर मुझे करूणा आती है। पता नहीं कितने जन्मों के बाद तुझे यह नर-तन मिला है, इसे तो प्यारा प्रभु ही जानता है। इसीलिए […]
बिखरे मोती-भाग 193 परिणाम यह होता है कि पहले तो रिश्तों में खिंचाव और बचाव का क्रम चलता है, घुटन, तनाव और दूरी बढऩे लगती है, ईष्र्या और घृणा की अग्नि जो सामाजिक आवरण की राख के नीचे दबी थी, उसे मामूली से क्रोध की चिंगारी विस्फोटक और भयावह इस कदर बना देती है कि […]
बिखरे मोती-भाग 192 इनका स्वामी तो केवल वही परमपिता परमात्मा है। इसीलिए ऋग्वेद के ऋषि ने भी उसे ‘स्ववान’ कहा है। ‘स्व’ कहते हैं धन को और वान कहते हैं स्वामी को अर्थात जो समस्त सृष्टि के ऐश्वर्य का स्वामी है। जो सूर्य, चंद्र, नक्षत्र, पृथ्वी आदि का रचने हारा है, जो पर्वत, पठार, सरिता, […]
बिखरे मोती-भाग 191 गतांक से आगे…. यदि वाणी में आकर्षण नहीं अपितु विकर्षण है तो परिजन, मित्र बंधु-बांधव, अनुयायी, भृत्य और प्रशंसक ऐसे छोडक़र चले जाते हैं जैसे सूखे वृक्ष को छोडक़र पक्षी चले जाते हैं। इसलिए श्रेष्ठता का ताज व्यक्ति की वाणी पर टिका है, क्योंकि वाणी ही व्यवहार का आधार होती है। सम्राट […]
बिखरे मोती-भाग 190 गतांक से आगे…. कहने का अभिप्राय है कि जो व्यक्ति पैसे के लिए दूसरों का हक मारते हैं, उनका टेंटुआ दबाते हैं, उन्हें पाप-पुण्य अथवा धर्म-कर्म की चिंता नहीं, उन्हें तो पैसा चाहिए, पैसा। चाहे वह ईमानदारी के बजाए बेशक बेइमानी से आये, उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं। ऐसे लोग […]