बिखरे मोती-भाग 203 गतांक से आगे…. जैसे मछली के जिंदा रहने के लिए जल आवश्यक है वैसे ही आत्मा के रक्षण और पोषण के लिए शांति, प्रेम, प्रसन्नता अत्यंत आवश्यक है, अन्यथा आत्मा का हनन हो जाता है। कुकृत्यों के कारण आत्मा का हनन होने पर मनुष्य धनी होने पर भी अपने को निर्धन महसूस […]
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बिखरे मोती-भाग 202 गतांक से आगे…. संसार में भोगेच्छा से नहीं, अपितु भगवद्इच्छा से जीओ, और ध्यान रखो, भक्ति मार्ग में प्रभाव का नहीं, स्वभाव का महत्व है। अत: अपने स्वभाव को ऐसा बनाइये, जिससे प्रभु प्रसन्न हो जायें। प्रभु का सामीप्य (प्रभु-कृपा) प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि भक्त का मन इतना सधा […]
यजन भजन के योग तै, भक्ति चढ़ै परवान
बिखरे मोती-भाग 201 यहां तक कि चोरी और डाका डालने में निष्णात भी हम और हमारा समाज बनाता है। फिर मंदिर में मायावी (नकली) पूजा करने का ढोंग भी उन्हें घुट्टी में हम ही पिलाते हैं। कैसी विडंबना है? एक तरफ तो विकृत मानसिकता के लोगों की भीड़ बढ़ रही है, जबकि दूसरी तरफ नकली […]
बिखरे मोती-भाग 200 गतांक से आगे…. केकैयी ने अपना स्वार्थ सिद्घि के लिए भगवान राम को वनवास दिलाया और अपने पुत्र भरत को अयोध्या का राज दिलाया। इतना ही नहीं, अपने पति दशरथ की प्राणघातिनी का आरोप भी उस पर लगता है। यह उसकी नकारात्मक सोच और स्वार्थ-सिद्घि की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है? […]
मनुआ हरि को याद रख, यह माया तो भटकाय
बिखरे मोती-भाग 199 कछुआ भूले ना लक्ष्य को, बेशक पलटी खाय। मनुआ हरि को याद रख, यह माया तो भटकाय ।। 1132 ।। व्याख्या :- प्रकृति में कछुआ एक ऐसा प्राणी है, जिसमें आत्मसंयम, परिस्थिति से तालमेल और अपने गंतव्य को न भूलने की विलक्षण शांति परमपिता परमात्मा ने उसे उपहार स्वरूप प्रदान की है। […]
बिखरे मोती-भाग 198 ठीक इसी प्रकार हमारी जीवनी नैया के भी दोनों तरफ चप्पू लगे हैं। एक है लौकिक उन्नति, भौतिक उन्नति का और दूसरा है पारलौकिक उन्नति (आध्यात्मिक उन्नति) का, कैसी हास्यास्पद स्थिति है? पाना चाहते हैं ‘आनंद’ को और चप्पू चलाते हैं, माया का, रात-दिन एक ही रट हाय माया? हाय रूपया पैसा!!! […]
बिखरे मोती-भाग 197 यहां तक कि सद्गुणों के कारण व्यक्ति का इस संसार में ही नहीं अपितु स्वर्ग में भी उसका आसन श्रेष्ठ होता है। अत: हो सके तो संसार में अपने सद्गुणों का, अच्छे हुनर का अधिक से अधिक दान दीजिए। आपके द्वारा दान में दिये गये सद्गुण किसी को फर्श से उठाकर अर्श […]
बिखरे मोती-भाग 196 यह कोई आवश्यक नहीं कि कपड़े रंगने से ही वैराग्य होता है। महाराजा जनक तो राजा होते हुए भी वैरागी थे। वैराग्य से अभिप्राय है-विवेक का जगना अर्थात आसुरी शक्तियों का उन्मूलन और दिव्य शक्तियों (ईश्वरीय शक्तियों) का अभ्युदय होना, उनका प्रबल होना ही वैराग्य कहलाता है। यदि जीवन में वैराग्य जग […]
बाना लिया बैराग का, पर भीतरले में मोह
बिखरे मोती-भाग 195 जो लोग इस तन को सजाने संवारने में, उसे हर प्रकार से प्रसन्न रखने में उसके लिए ‘येन केन प्रकारेण’ अर्थोपार्जन करने में अर्थात अनाप-शनाप तरीके से धन कमाने में जीवनपर्यन्त लगे रहते हैं, वे आत्मा का हनन करते हैं, अक्षम्य अपराध करते हैं, वे इस लोक में तो अपयश के भागी […]
भगवद् भक्ति का लक्ष्य पीछे छूट गया
बिखरे मोती-भाग 194 गतांक से आगे…. भोजन वसन तन को दिये, सुंदर दिये आवास, भक्ति-रस ना दे सका, नहीं बुझी हंस की प्यास ।। 1127।। व्याख्या :-हाय रे मानव! तेरी मनोदशा देखकर मुझे करूणा आती है। पता नहीं कितने जन्मों के बाद तुझे यह नर-तन मिला है, इसे तो प्यारा प्रभु ही जानता है। इसीलिए […]