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बिखरे मोती

संचित पड़े हैं चित्त में जन्मों के संस्कार

बिखरे मोती-भाग 219  गतांक से आगे….  आत्मा और चित्त के संयोग से चेतना और सूक्ष्मप्राण की उत्पत्ति होती है। जिनसे जीवन की क्रियाशीलता प्रतिक्षण बनी रहती है। इसीलिए हमारा चित्त शक्ति का मुख्य केन्द्र है। जैसे भौतिक जड़ मशीन में मुख्य भाग गरारी को बिजली का मोटर गतिमान बना देता है और उसके साथ ‘पटों’ […]

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बिखरे मोती

चित्त में रहती आत्मा, जहां सूक्ष्म प्राण

बिखरे मोती-भाग 218 गतांक से आगे…. बुद्घि का निवास स्थान-बुद्घि तत्व का निवास स्थान ‘ब्रह्मरन्ध्र’ में है। चित्त के कार्य-सर्ग से प्रारंभ काल से जीवात्मा के साथ संयुक्त होकर और उसे अपने गर्भ में रखकर तथा अहंकार को धारण करके मोक्ष पर्यन्त आत्मा के कार्यों को सम्पादित करते हुए मोक्ष द्वार पर लाकर खड़ा कर […]

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बिखरे मोती

चित्त-बुद्घि दोनों ही अंग, ज्ञान से हैं भरपूर

बिखरे मोती-भाग 217 गतांक से आगे…. इससे स्पष्ट हो गया है कि इन सबका आधार ‘मन’ है। अत: वाणी और व्यवहार को सुधारना है तो पहले मन को सुधारिये। इसीलिए यजुर्वेद का ऋषि कहता है-‘तन्मे मन: शिव संकल्पमस्तु’ अर्थात हे प्रभु! मेरा मन आपकी कृपा से सदैव शुभ संकल्प वाला हो, अर्थात अपने तथा दूसरे […]

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बिखरे मोती

वाणी और व्यवहार का, मन होता आधार

बिखरे मोती-भाग 216 गतांक से आगे…. गतिशील रहता है सातवें प्रश्न का उत्तर इसे सत्व गुण की प्रधानता से काबू किया जा सकता है। प्रश्न का उत्तर-मन के सहयोग के बिना कोई भी ज्ञानेन्द्रीय अथवा कर्मेेन्दीय अपना कार्य करने में समर्थ नहीं होती है। शरीर का सभी ज्ञान-व्यापार अथवा कर्म -व्यापार मन के सहयोग से […]

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बिखरे मोती

मन की शक्ति असीम है, करके देख तू एक

बिखरे मोती-भाग 215 गतांक से आगे…. उसके हृदय की सात्त्विकता, आर्वता (सरलता) और पवित्रता प्रभु का भी मन मोह लेती है। ऐसी अवस्था बड़ी तपस्या के बाद आती है, बड़ी मुश्किल से आती है और यदि कोई व्यक्ति इस अवस्था को प्राप्त हो जाए, तो समझो वह वास्तव में ही प्रभु से जुड़ गया है। […]

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मन हो जावै सुमन तो, समझो प्रभु समीप

बिखरे मोती-भाग 214 गतांक से आगे…. वाणी व्यवहार का आधार होती है। यह ऐसा प्रभु-प्रदत्त गहना है जिसका कोई सानी नहीं। इसे न तो कोई चुरा सकता है और न ही कोई छीन सकता है। वाणी में विवेक और विनम्रता यश की सुगंध भरते हैं। वाक्पटुता और व्यवहार कुशलता तो व्यक्ति के हृदय पर राज […]

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बिखरे मोती

हे पुनरूक्षु! अन्न दे, सबका करना त्राण

बिखरे मोती-भाग 212 गतांक से आगे…. जो मेरे निमित्त क्रिया हो वह ‘कर्म’ होता है और जो मेरे निमित्त क्रिया न हो वह कुकर्म होता है। जो मेरे निमित्त प्रेम होता है, वह भक्ति कहलाती है और जो मेरे निमित्त प्यार न होकर माया के प्रति प्यार होता है वह तो राग होता है, मोह […]

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बिखरे मोती

ज्ञानेन्द्री और कर्मेन्द्री, रक्षित मन से होय

बिखरे मोती-भाग 211 गतांक से आगे…. इसके अतिरिक्त तीन शरीर-स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर जो स्वप्न में हमारे साथ रहते हैं। अति सूक्ष्म शरीर अथवा कारण शरीर जिसमें जीव का स्वभाव बसता है। जीवात्मा के पास भोग के साधन उन्नीस हैं अर्थात उन्नीस मुख हैं-पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कमेन्द्रियां पांच प्राण ये पन्द्रह वाह्य कारण हैं तथा […]

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बिखरे मोती

तीन तन उन्नीस मुख, दिये अंग जीव को सात

बिखरे मोती-भाग 210 गतांक से आगे…. सारांश यह है सृष्टि का संचालन कर्म से और कर्म का संचालन भाव से हो रहा है। भाव हमारे चित्त में उठते हैं, जो कर्म में परिणत होने से पूर्व ही पवित्र होने चाहिए। भावों पर पैनी नजर रखनी चाहिए क्योंकि असली चीज कर्म नहीं भाव है। यह भाव […]

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बिखरे मोती

सौरी-दशा ब्रह्म लोक का द्वार है

बिखरे मोती-भाग 209 गतांक से आगे…. अब प्रश्न पैदा होता है आत्मा शरीर से निकलता कैसे है? मुक्तात्मा के लिए सुषुम्णा नाड़ी, जो काकू में से गुजरकर, कपाल को भेदकर , बालों का जहां अंत है, वहां से जाती है। यह सुषुम्णा नाड़ी आत्मा के शरीर में से निकलने का मार्ग है। इस प्रकार जो […]

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