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बिखरे मोती

बिखरे मोती-भाग 229

हमेशा याद रखो, मन से भी अधिक सूक्ष्म, भाव अथवा संस्कार होते हैं, हमारे मानस-पटल पर ऐसे रहते हैं, जैसे जल के ऊपर तरंगे रहती हैं। इसीलिए हमारे ऋषियों ने कर्म की प्रधानता के साथ-साथ ‘भाव की पवित्रता’ पर विशेष बल दिया है। ये भाव ही हमारे स्वभाव का निर्माण करते हैं, जिनका प्रभाव जन्म-जन्मान्तरों […]

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बिखरे मोती-भाग 228

सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दु:ख भाग भवेत्।। अर्थात हे प्रभो! सब सुखी हों, सब स्वस्थ और निरोग हों, सबका कल्याण हो, कोई भी प्राणी दु:खी न हो, ऐसी कृपा कीजिए। हे ईश! सब सुखी हों, कोई न हो दुखारी। सब हों निरोग भगवन्, धन धान्य के भण्डारी।। सब […]

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बिखरे मोती-भाग 227

इसके अतिरिक्त मैं कहां से आया हूं। मैं क्यों आया हूं? मुझे कहां जाना है? मैं क्या कर रहा हूं? मुझे क्या करना चाहिए? ‘मैं’ और ‘वह’ अर्थात आत्मा और परमात्मा का संबंध क्या है? इसे कैसे प्रगाढ़ किया जा सकता है? यह सृष्टिक्रम क्या है? हम अपने स्वामी कैसे बने? परमात्मा को कैसे प्राप्त […]

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बिखरे मोती-भाग 226

गतांक से आगे…. क्या कभी इस विषय पर गम्भीर चिन्तन किया है? यह नैतिक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पतन नहीं तो और क्या है? लज्जा-जिसे लोक लिहाज कहते हैं, उसका दिवाला नहीं तो और क्या है? यह हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों के दिये हुए प्रेरणास्पद प्रवचनों का अपमान नहीं तो और क्या है? यह वेदों की घोर […]

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मनुष्यत्त्व से देवत्त्व को, प्राप्त कराये वेद

बिखरे मोती-भाग 225 ‘ज्ञानचक्षु वेद की महिमा’  वेदों को विस्मृत करें,  जिसका मुझको खेद। मनुष्यत्त्व से देवत्त्व को, प्राप्त कराये वेद ।। 1162 ।। व्याख्या :-भूतल पर जितने भी राष्ट्र हैं उन सब में प्राचीनतम तथा उच्चतम सभ्यता संस्कृति यदि किसी राष्ट्र की है तो वह भारतवर्ष की है, जिसका कोई सानी नहीं। मानव जीवन […]

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सठ सुधरहिं सत्संगति पाई पारस परसि कुधात सुहाई

बिखरे मोती-भाग 224 गतांक से आगे…. सत्संग की महिमा सूर्य उगे तो दीप सब होते कान्तिहीन। सत्संग जिनको हो गया, हो गये व्यसन विहीन।। 1161।। व्याख्या:-उपरोक्त दोहे की व्याख्या करने से पूर्व सत्संग का अर्थ समझना प्रासंगिक रहेगा। सत्य के संग को सत्संग कहते हैं। सत्य का संग तभी होता है, जब आप अपना आत्मावलोकन […]

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सोमपान जो जन करे, होवै ना अक्षिपात

बिखरे मोती-भाग 223 गतांक से आगे…. 15. यक्ष-जिसके मित्र अधिक होते हैं, इससे क्या लाभ है? युधिष्ठिर-महाराज! जिसके मित्र अधिक होते हैं, उसके कभी काम नहीं अटकते हैं। 16. यक्ष-धर्म का पालन करने वाले को क्या मिलता है? युधिष्ठिर-महाराज! धर्मनिष्ठ व्यक्ति को सद्गति प्राप्त होती है। इतना ही नहीं, ऐसा व्यक्ति आत्मा को जान लेता […]

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दिशाएं होते सत्पुरूष, देते सत्सन्देश

बिखरे मोती-भाग 222 गतांक से आगे…. दिशाएं होते सत्पुरूष, देते सत्सन्देश। परहित जिनका धर्म है, रहते खुशी हमेश ।। 1159 ।। व्याख्या:-विश्वमंगल करने के लिए विधाता धरती पर ऐसी दिव्यात्माओं का आविर्भाव किया करता है, जो सत्पुरूष कहलाती हैं। ऐसी दिव्यात्माओं का स्वभाव ऋजुता (कुटिलता रहित होना) से ओत-प्रोत रहता है। सरलता, शीलता, प्रेम और […]

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चित्त का चिन्तन ठीक हो, तो मनुज का हो उत्थान

बिखरे मोती-भाग 221 गतांक से आगे…. काश! ऐसा हो कि हम अपने आत्मस्वरूप को पहचानें और प्रभु प्रदत्त चित्त रूपी मानसरोवर जो प्रेम, प्रसन्नता शान्ति, क्षान्ति, क्षमा, धैर्य, सौहाद्र्र, संतोष, उदारता, वात्सल्य, स्नेह, श्रद्घा, समर्पण इत्यादि सद्भावों का जलाशय है। यदि मानव इस जलाशय में नित्य प्रति अवगाहन करेगा, इस जलाशय में गोता लगाएगा अर्थात […]

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मानसरोवर चित्त है, जिसमें जल सद्भाव

बिखरे मोती-भाग 220 गतांक से आगे…. स्मरण रहे, पवित्र चित्त में ही परमात्मा का निवास होता है, दूषित चित्त में नहीं। चित्त की पवित्रता पर सभी धर्मों के धर्मशास्त्रों और धर्माचार्यों ने इसीलिए विशेष बल दिया है। मोक्ष में भी बुद्घि-चित्त,  तन्मात्रा जीव के साथ। ये मन्दिर हरि-मिलन का, मोक्ष इसी के हाथ ।। 1155 […]

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