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बिखरे मोती

बिखरे मोती : आकर्षण से चल रहा यह सारा ब्रह्मांड

आकर्षण से चल रहा, ये सारा ब्रह्माण्ड । आकर्षण जब टूटता, होता है कोई काण्ड॥ 1254॥ व्याख्या :- परमपिता परमात्मा ने इस दृश्यमान सृष्टि को बड़े ही वैज्ञानिक तरीके से बनाया है ।सारी सृष्टि मर्यादित है , अनुशासित हैं अर्थात् नियमों में बंधी हुई है । ग्रह , उपग्रह , नक्षत्र , वनस्पति और सारा […]

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प्रेम प्रसन्नता शांति तेरा मूल स्वभाव

बिखरे मोती प्रेम प्रसन्नता शान्ति, तेरा मूल स्वभाव। इनमें टिकना सीख ले, पार लगेगी नाव ॥ 1252॥ व्याख्या:- मनुष्य का स्वभाव है कि उसका मन अपनों में लगता है, अपने सगे संबंधियों में लगता है, बेशक वह धरती का स्वर्ग कहलाने वाले स्विटट्जरलैण्ड की रमणीक और मनोरम घाटियों में क्यो ना खड़ा हो। ऐसा व्यक्ति […]

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मन का मधुमेह राग है , द्वेष दहकती आग

मन का मधुमेह राग है, द्वेष दहकती आग। मन की लूटें शांति, जाग सके तो जाग॥ 1251॥ व्याख्या:- राग का अर्थ है- कर्मों में,कर्मों के फलों में तथा घटना, वस्तु,व्यक्ति,परिस्थिति,पदार्थ इत्यादि में मन का खिंचाव होना, मन की प्रियता होना राग कहलाता है।राग में फंसे हुए व्यक्ति को कभी तृप्ति नहीं मिलती है। राग को […]

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मानस में आते रहें,क्षण-क्षण व्यर्थ विचार

मानस में आते रहे, क्षण-क्षण व्यर्थ विचार। खारिज कर आगे बढै, भवनिधि उतरै पार॥ ॥1245॥ व्याख्या:- जिस प्रकार सागर का जल कभी शांत नहीं रहता है, उसमें हर समय छोटी-बड़ी लहरें उठती ही रहती हैं। ठीक इसी प्रकार मनुष्य का मन क्षण-प्रतिक्षण चलायमान रहता है। कभी शांत और एकांत बैठकर मन का तटस्थ भाव से […]

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बिखरे मोती-भाग 239

हे मनुष्य! बाधाओं को देखकर निराश मत हो, जीवन में बाधाएं तो आएंगी ही आएंगी। जैसे सागर के जल से लहरों को अलग नहीं किया जा सकता है, ठीक इसी प्रकार जीवन से समस्याओं को दूर नहीं किया जा सकता है। इनसे तो जूझना ही पड़ता है। पानी की तरह रास्ता ढूंढऩा पड़ता है, और […]

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बिखरे मोती-भाग 238

समस्त सृष्टि की रचना पंचमहाभूतों से हुई है। इनमें अग्नि तत्त्व ऐसा है, जो चार महाभूतों जल, पृथ्वी, वायु और आकाश का अतिथि है अर्थात अग्नि तत्त्व सब महाभूतों में प्रविष्टï हो सकता है, यह विशेषता अन्य किसी महाभूत में नहीं है। यदि पांचों महाभूतों में प्रविष्टï होने की विलक्षणता है, तो वह केवल मात्र […]

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मन घटता बढ़ता रहै, अटल विधि का विधान

बिखरे मोती-भाग 237 गतांक से आगे…. हम मंदिर अथवा पूजागृह में भी जाते हैं, तो मांगों की फहरिश्त लेकर जाते हैं और अपने आराध्य देव की अथवा परमात्मा की पूजा सशर्त करते हैं-यदि तुम मेरी यह मांग पूरी कर दोगे, तो मैं इतना चढ़ावा अथवा प्रसाद बांटूंगा। कैसी घटिया सोच हो गयी है, आज के […]

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बिखरे मोती-भाग 236

गतांक से आगे……… हे अर्जुन! संसार से ऊंचा उठने के लिए राग-द्वेष आदि द्वन्द्वों से रहित होने की बड़ी भारी आवश्यकता है, क्योंकि ये ही वास्तव में मनुष्य के शत्रु हैं, जो उसको संसार में फंसाये रखते हैं, और भगवान के चरणों में ध्यान नहीं लगने देते हैं। इसलिए तू सम्पूर्ण द्वन्द्वों से रहित हो […]

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बिखरे मोती-भाग 235

रजोगुण और तमोगुण की तरह सत्त्वगुण में मलिनता नहीं है इसलिए भगवान कृष्ण ने गीता के चौदहवें अध्याय के छठे श्लोक में सत्त्वगुण को ‘अनामयम्’ कहा है अर्थात निर्विकार कहा है। निर्मल और निर्विकार होने के कारण यह परमात्मा तत्त्व का ज्ञान कराने में सहायक है। सत्त्वगुण की प्रधानतमा से ‘मन’ को सहजता से काबू […]

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बिखरे मोती-भाग 234

बालक नरेन्द्र में कुशाग्र बुद्घि हृदय में उदारता, ऋजुता समाज और राष्टï्र के लिए कुूछ कर गुजरने का जज्बा, वाकपटुता, वाकसंयम, प्रत्युत्तर मति और बहुमुखी प्रतिभा अप्रतिम थी, जिसे उनके गुरूरामकृष्ण परमहंस ने और भी धारदार बना दिया। प्रभावशाली बना दिया। बड़ा होकर यही बालक स्वामी विवेकानंद के नाम से विश्व विख्यात हुआ तथा ज्ञान […]

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