हे मनुष्य! बाधाओं को देखकर निराश मत हो, जीवन में बाधाएं तो आएंगी ही आएंगी। जैसे सागर के जल से लहरों को अलग नहीं किया जा सकता है, ठीक इसी प्रकार जीवन से समस्याओं को दूर नहीं किया जा सकता है। इनसे तो जूझना ही पड़ता है। पानी की तरह रास्ता ढूंढऩा पड़ता है, और […]
श्रेणी: बिखरे मोती
समस्त सृष्टि की रचना पंचमहाभूतों से हुई है। इनमें अग्नि तत्त्व ऐसा है, जो चार महाभूतों जल, पृथ्वी, वायु और आकाश का अतिथि है अर्थात अग्नि तत्त्व सब महाभूतों में प्रविष्टï हो सकता है, यह विशेषता अन्य किसी महाभूत में नहीं है। यदि पांचों महाभूतों में प्रविष्टï होने की विलक्षणता है, तो वह केवल मात्र […]
बिखरे मोती-भाग 237 गतांक से आगे…. हम मंदिर अथवा पूजागृह में भी जाते हैं, तो मांगों की फहरिश्त लेकर जाते हैं और अपने आराध्य देव की अथवा परमात्मा की पूजा सशर्त करते हैं-यदि तुम मेरी यह मांग पूरी कर दोगे, तो मैं इतना चढ़ावा अथवा प्रसाद बांटूंगा। कैसी घटिया सोच हो गयी है, आज के […]
गतांक से आगे……… हे अर्जुन! संसार से ऊंचा उठने के लिए राग-द्वेष आदि द्वन्द्वों से रहित होने की बड़ी भारी आवश्यकता है, क्योंकि ये ही वास्तव में मनुष्य के शत्रु हैं, जो उसको संसार में फंसाये रखते हैं, और भगवान के चरणों में ध्यान नहीं लगने देते हैं। इसलिए तू सम्पूर्ण द्वन्द्वों से रहित हो […]
रजोगुण और तमोगुण की तरह सत्त्वगुण में मलिनता नहीं है इसलिए भगवान कृष्ण ने गीता के चौदहवें अध्याय के छठे श्लोक में सत्त्वगुण को ‘अनामयम्’ कहा है अर्थात निर्विकार कहा है। निर्मल और निर्विकार होने के कारण यह परमात्मा तत्त्व का ज्ञान कराने में सहायक है। सत्त्वगुण की प्रधानतमा से ‘मन’ को सहजता से काबू […]
बालक नरेन्द्र में कुशाग्र बुद्घि हृदय में उदारता, ऋजुता समाज और राष्टï्र के लिए कुूछ कर गुजरने का जज्बा, वाकपटुता, वाकसंयम, प्रत्युत्तर मति और बहुमुखी प्रतिभा अप्रतिम थी, जिसे उनके गुरूरामकृष्ण परमहंस ने और भी धारदार बना दिया। प्रभावशाली बना दिया। बड़ा होकर यही बालक स्वामी विवेकानंद के नाम से विश्व विख्यात हुआ तथा ज्ञान […]
गुरू तो बादल की तरह है, शहद की मक्खी की तरह है। जैसे-शहद की मक्खी न जाने कितने प्रकार के असंख्य पुष्पों के गर्भ से शहद के महीन कणों को अपनी सूंडी से चूसकर शहद के छत्ते में डाल देती है, उसे शहद से सराबोर कर देती है, ऐसे बादल भी न जाने कितने पोखरों, तालाबों, […]
गतांक से आगे…. गुरू व्यक्ति नहीं, एक दिव्य शक्ति है :- नर-नारायण है गुरू, देानों ही उसके रूप। संसारी क्रिया करै, किन्तु दिव्य स्वरूप ।। 1168 ।। व्याख्या :-”गुरू व्यक्ति नहीं, एक दिव्य शक्ति है।” वे बेशक इंसानी चोले में खाता-पीता उठता बैठता, सोता-जागता, रोता-हंसता तथा अन्य सांसारिक क्रियाएं करता हुआ दिखाई देता है, किंतु […]
जिस प्रकार मुकुट में ‘हीरा’ लगने से मुकुट का मूल्य और महत्व अधिक हो जाता है, ठीक इसी प्रकार व्यक्ति के पास यदि ‘शील’ है अर्थात उत्तम स्वभाव है तो उसके धन दौलत, पद-प्रतिष्ठा, योग्यता (विद्या अथवा ज्ञान) और कर्मशीलता का महत्व अनमोल हो जाता है, लोकप्रियता और ऐश्वर्य का सितारा चढ़ जाता है अन्यथा […]
अब तस्वीर का दूसरा पहलू देखिये-झरना भी पृथ्वी से निकलता है और ज्वालामुखी भी पृथ्वी से निकलता है, किंतु दोनों के स्वरूप और स्वभाव में जमीन आसमान का अंतर है। झरना पृथ्वी पर हरियाली लाता है, खुशहाली लाता है, सौंदर्य बढ़ाता है, विकास की नई राहें खोलता है, जबकि ज्वालामुखी लाल-लाल गर्म लावा उगलता है, […]