बिखरे मोती जैसा जिह्वा जप करे, वैसे मन में भाव। दोनों में हो एकता, पार लगेगी नाव ॥1463॥ व्याख्या:- प्रायःदेखा गया है कि कतिपय लोग अपनी रसना से किसी वेद – मंत्र अथवा श्लोक का जप तो करते हैं किंतु चित्त में आर्जवता(सरलता) नहीं कुटिलता होती है अर्थात् छल, कपट, ईर्ष्या, द्वेष,प्रतिशोध और जघन्य […]
Category: बिखरे मोती
मृत्यु खावै रोग को, पाप आत्मा खाय। ऐसी करनी कर चलो, जो परमधाम मिल जाय॥1461॥ व्याख्या :- मृत्यु का क्षण बड़ा दार्शनिक होता है।आदर्श और यथार्थ का यह कितना कठोर संगम है? मृत्यु की गोद में जीवन के सारे स्वप्न सो जाते हैं। वियोग जीवन का परम सत्य है।एक न एक दिन सभी को […]
बाहर की प्रताड़ना देती मन को त्रास
बिखरे मोती हरि भजै दुर्गुण तजै, मन होवै प्रपन्न। ऐसे साधक से सदा, हरी रहे प्रपन्न॥1458॥ प्रपन्न – अहंकार का गलना और प्रभु के समर्पित होना,प्रभु के शरणागत होना साधक -भक्त धन – माया दोनों छिनें, मृत्यु छीने प्राण। सर सूखे हंसा उड़़े, सब कुछ हो सुनसान॥1459॥ बाहर की प्रताड़ना, देती मन को त्रास। […]
अशेष की जो विभूतियां, जाने सिर्फ अशेष अक्षत मन से सिमरले, परम – पिता का नाम। आत्मा का भोजन भजन, लिया करो सुबह-शाम॥1448॥ अक्षत मन – पूरा मन, पूर्ण मनोयोग भक्ति में हो प्रेम-रस, साधक होवै लीन। अवगाहन हरि में करे। जैसे जल में मीन ॥1449॥ अवगाहन – विचरण रूहानी – दौलत के छिपे , […]
चुनरी अंतःकरण की,धोय सके तो धोय
चुनरी अंतःकरण की,धोय सके तो धोय चुनरी अंतःकरण की, धोय सके तो धोय। दिव्यलोक – नौका मिली, मत वृथा इसे खोय॥ 1261॥ व्याख्या:- हे मनुष्य! वस्त्रों में लगे दागों की तो तू चिंता करता है और उन्हें येन केन प्रकारेण साफ भी कर लेता है किन्तु तेरी नादानीयों के कारण यह मनुष्य- जीवन व्यर्थ जा […]
हीरों की बारिश
पृथ्वी पर जो असंभव है, अंतरिक्ष में वह संभव है| पृथ्वी से 9 गुना बड़ा 54 गुना भारी हमारे सौरमंडल का दूसरा सबसे भारी ग्रह शनि जो सूर्य से 140 करोड़ किलोमीटर दूर है |उसे लगभग 30 साल लग जाते हैं सूर्य का एक चक्कर लगाने में… लेकिन शनि ग्रह की विचित्रता विशालता का सिलसिला […]
जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी सलाह
* प्रस्तुति : धर्म मुनि जी महाराज* डॉक्टर कभी भी नहीं बताएगा, आप से फीस पर फीस लेता रहेगा मगर माजरा कुछ और है, पढ़िए। सभी *वरिष्ठ नागरिक* (55 से ऊपर की उम्र के) कृपया अवश्य पढ़ें, हो सकता है आपके लिए फायदेमंद हो .. *आप जानते हैं कि मन चाहे कितना ही जोशीला हो […]
देह तो मरणासन्न है एक दिन होवै शून्य। पाप रूलायेंगे तुम्हें, हर्षित करेंगे पुण्य॥1256॥ व्याख्या:- हे मनुष्यों ! यह शरीर तो मरण – धर्मा है , मृत्यु से ग्रसा हुआ है। यह मरण – धर्मा शरीर उस अमृत – रूप अशरीर आत्मा का अधिष्ठान है अर्थात् उसके रहने का स्थान है । जीवात्मा तथा ब्रह्म […]
बिखरे मोती भाग 314
गतांक से आगे… 3- गरुड़ प्रवृत्ति:- गरुड़ प्रवृत्ति को गिद्ध प्रवृत्ति भी कहते हैं। गरुण ऐसा पक्षी है,जो बड़ी ऊंची और लंबी उड़ान भरता है। इसलिए उसे अपने पंखों पर बड़ा घमंड होता है। इस घमंड के कारण वह अन्य पक्षियों को हेय और अपने आप को श्रेष्ठ समझता है। उसका यह अहंकार जब टूटता […]
पशु प्रवृत्ति चर रहीं, जीवन रूपी खेत। चंदन कोयला बन रहा, चेत सके तो चेत॥1255॥ व्याख्या:- चंदन के वृक्ष की यह विशेषता है कि वह जहां उगता है, वहां के आस-पास के वृक्षों में भी अपनी जैसी खुशबू पैदा कर देता है। चंदन की नायाब खुशबू के कारण चंदन की लकड़ी बड़ी महँगी बिकती है।कल्पना […]