चिता किनारे तक रहें, रूप सृजन श्रंगार। मृत्यु ऐसा सत्य है, करें भीगी आँख स्वीकार॥1494॥ व्याख्या:- न जाने किस डोरी में बंधा हुआ मनुष्य जीवन पर्यन्त कठपुतली की तरह नाचता है किन्तु जैसे ही मृत्यु का क्रूर झपट्टा लगता है, तो सब क्रियाएं गतिशून्य हो जाती हैं।उसके रूप श्रृंगार और सृजन की कहानी भी चिता […]
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ब्रह्मानन्द में लीन जो,दूर रहें सन्ताप ब्रह्मानन्द में लीन जो, दूर रहें सन्ताप। सर्दी को हर लेते है, ज्यों सूरज का ताप॥1487॥ व्याख्या:- जिस प्रकार सूर्य की तेज धूप सर्दी को हर लेती है,ठीक इसी प्रकार ब्रह्मानन्द में लीन रहने वाले साधक के सारे सन्ताप स्वतः दूर हो जाते हैं।इस संदर्भ में तैत्तीरोपनिषद् ( ब्रह्मानन्द […]
हंस उड़ेगा ताल से, नाम बदल फिर आय। जैसी करनी कर चला, वैसी योनि पाय॥1483॥ व्याख्या:- यह क्षणभंगुर संसार है। हंसरूपी आत्मा तालरूपी शरीर से एक दिन प्रयाण करेगी यह शाश्वत सत्य है। आवागमन का क्रम यहां निरंतर चल रहा है। नाम,स्थान और जन्म को सिवाय ईश्वर के और कोई नहीं जानता है। कर्माशय के […]
प्रकृति को देखिए, करती रोज परार्थ
प्रकृति को देखिए , करती रोज पदार्थ। नर तो वही श्रेष्ठ है , जो करता परामर्श॥ 1481॥ व्याख्या :- हमारे ऋषि – मुनि प्रकृति की सुरम्य उपत्यका में बैठकर चिंतन-मनन और ध्यान करते थे। वे प्रकृति से बहुत कुछ सीखते थे । जैसे प्रकृति के पंचभूत – पृथ्वी सबको आश्रय देती है ,भरण […]
परमात्मा कितना दूर कितना पास ?
बिखरे मोती पंचतत्त्व से दूर है, महत्त्व से महान । कारण रूप में व्यापता कण-कण में भगवान॥ 1476॥ भावार्थ – पृथ्वी से परे अर्थात् दूर जल है,जल से दूर तेज (अग्नि) है, तेज से दूर वायु है,वायु से दूर आकाश है,आकाश से दूर महतत्त्व है, महतत्त्व से दूर प्रकृति है,और प्रकृति से दूर परमात्मा है। […]
ज्ञान से होता कर्म है,श्रद्धा से सत्कर्म ज्ञान से होता कर्म है, श्रद्धा से सत्कर्म । धर्म होय वैराग्य से , ऐश्वर्य दे धर्म ॥1475॥ व्याख्या:- ज्ञान से अभिप्राय है – “जो जैसा है,उसे वैसा ही जानना और मानना ज्ञान कहलाता है”।”ज्ञान का क्रिया में परिवर्तित होना कर्म कहलाता है।”हमारे धर्म – शास्त्रों में […]
आत्मज्ञानी की पहचान
आत्मज्ञानी है वही, आत्मरमण करे रोज। स्थित आत्मस्वरूप में , करे ब्रह्म की खोज॥1474॥ व्याख्या:- पाठकों को यह बताना अपेक्षित रहेगा कि यह मरण-धर्मा शरीर उस अमृत रूप अशरीर आत्मा का अधिष्ठान है,उसके रहने का स्थान है।आत्मा स्वभाव से अशरीर है,परन्तु जब तक इस शरीर के साथ अपने को एक समझ कर रहता है तब […]
बिखरे मोती श्रद्धा विवेक वैराग्य से भक्ति चढ़े परवान । भक्ति करे कोई सूरमा, जाको हरि में ध्यान॥1471॥ व्याख्या:- साधारणतया लोग ऐसे व्यक्ति को भक्त कहते हैं,जो राम-नाम का जप करता है अथवा ओ३म् नाम का जप करता है। वस्तुतः भक्ति तो चौथा सोपान है, जो अध्यात्म का शिखर है।इस शिखर तक पहुँचने से पूर्व […]
रसना हरि को नाम ले, मत करना प्रमाद
रसना हरि को नाम ले, मत करना प्रमाद। अनहद – चक्र मे बजे, सुन अनहद का नाद॥ 1469॥ व्याख्या:- मनुष्य प्रकृति में परमपिता परमात्मा की उत्कृष्टतम रचना है।चौरासी लाख योनियों में केवल मनुष्य को ही प्रभु ने ऐसी रसना का अमोघ उपहार दिया है,जिससे वह संवाद के साथ-साथ भगवान की भक्ति भी कर सकता […]
धन को बदलो धर्म में करो लोक कल्याण
बिखरे मोती धन को बदलो धर्म में , करो लोक – कल्याण। हाथ दिया ही संग चले, खुश होवें भगवान॥1467॥ व्याख्या :- मानव – जीवन क्षणभंगुर है,न जाने कौन सा स्वांस जाने के बाद फिर लौट कर ना आये। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह अपने तन ,मन और धन से धर्म को कमाये अर्थात् […]