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बिखरे मोती

बिखरे मोती : कैसे हों काम से निष्काम ?

जो सिमरै संसार को, तो जगता है काम। जो सिमरै ओंकार को, तो होता निष्काम॥1623॥ व्याख्या:- भाव यह है कि जब व्यक्ति भगवान का भजन करने के लिए बैठता है और चिन्तन संसार का करता है,तो काम ( तृष्णाएं) उत्पन्न होता है। काम से राग – द्वेष ईर्ष्या, घृणा, क्रोध, सम्मोह (मुढ़ता) उत्पन्न होते हैं,स्मृतिभ्रंश […]

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बिखरे मोती : वेद,तप,दान से, मिलते नहीं भगवान

वेद,यज्ञ,तप,दान से, मिलते नहीं भगवान। कृपा होय अहेतु की, दर्शन दें भगवान॥1614॥ ( उद्धरण-श्रीमदभगवद गीता, अध्याय 11/40) व्याख्या:- वेदों का अध्ययन किया जाय, यज्ञों का विधि-विधान से अनुष्ठान किया जाय, शास्त्रों का अध्ययन किया जाय, बड़े-बड़े दान किए जाय, बड़ी उग्र तपस्या की जाय और तीर्थ,व्रत आदि शुभ कर्म किए जाय- ये सब के सब […]

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जब चित्त चैतन्य से जुड़ता है

जब चित्त चैतन्य से जुड़ता है चित्त जुड़े चैतन्य से, भासै दिव्य – प्रकाश। वाणी और व्यवहार में, ऋजुता भरी मिठास॥1613॥ व्याख्या:- ध्यान देने वाली विशेष बात यह है कि जो जितना जड़ता (अज्ञान और अहंकार) में है वह उतना ही चैतन्य (परमपिता परमात्मा) से दूर है। प्रभु कृपा से यदि किसी के चित्त की […]

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बुद्धि जानै प्रकृति को,ब्रह्म को जाने नाय

बुद्धि जानै प्रकृति को, ब्रह्म को जाने नाय। ज्यों दीये की लोय से, सूरज मिलता नाय॥1608॥ भावार्थ:- बुद्धि का गम्य क्षेत्र सीमित है जबकि ब्रह्म अनन्त है, असीमित है। ब्रह्म स्वतः प्रकाश है। इसलिए उसे बुद्धि के प्रकाश से जाना नहीं जा सकता,जैसे सूर्य स्वत: प्रकाशित है, उसे किसी दीपक से नहीं जाना जा सकता […]

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संस्कार जिसमें प्रबल,वही कला-निष्णात

बिखरे मोती संस्कार की प्रबलता के संदर्भ में:- संस्कार जिसमें प्रबल,वही कला-निष्णात संस्कार जिसमें प्रबल, वही कला -निष्णात। साधन साथी सद्गुरु, मिले हरि का हाथ॥1583॥ व्याख्या:- पाठकों की जानकारी के लिए बृहदारण्यक – उपनिषद के अनुसार “मरणासन्न मनुष्य की आत्मा चक्षु से, मुर्धा से या शरीर के किसी अन्य प्रदेश से निष्क्रमण कर देती है। […]

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बिखरे मोती ऊँचा सोचो सर्वदा,ऊँचे रखो भाव

ऊँचा सोचो सर्वदा, ऊँचे रखो भाव। जैसा चिन्तन चित्त में, वैसा बने स्वभाव॥1504॥ व्याख्या:- छान्दोग्य-उपनिषद की सूक्ति है “यत पिण्डे जो ब्रह्माण्डे” अर्थात जो हमारे शरीर में है, वही ब्रह्माण्ड में है। पिण्ड और ब्रह्माण्ड का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। हमारे हृदय में चित्त है, जिसमें आत्मा रहता है और आत्मा के अन्दर परमात्मा रहता है, […]

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कर्मयोग में शान्ति रस,ज्ञानयोग में अखण्ड

कर्मयोग में शान्ति रस,ज्ञानयोग में अखण्ड कर्मयोग में शान्ति रस, ज्ञानयोग में अखण्ड। भक्तियोग में अनन्त रस, यदि होवै प्रचण्ड ॥1503॥ व्याख्या:- प्रायः लोग कर्मयोग से अभिप्राय कर्म करने मात्र से लेते हैं जबकि वास्तविकता यह है कि कर्मयोग नि:स्वार्थ भाव से केवल दूसरों के हित के लिए कर्म करता है। इससे उसके मन को […]

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बिखरे मोती : जीवन में कितना रहा,सोचो हर्ष – विषाद

जीवन में कितना रहा, सोचो हर्ष – विषाद। शान्त चित्त से बैठकर, क्या किया प्रभु को याद॥1504॥ व्याख्या:- विवेकशील व्यक्ति को अपने जीवन के भूतकाल की ओर वर्तमान समय की समीक्षा अवश्य करना चाहिए और देखना चाहिए कि मेरा भूत कैसा रहा, वर्तमान कैसा चल रहा है तथा भविष्य कैसा होगा ? क्या मेरा भूतकाल […]

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देह का सार है आत्मा,सृष्टि का है ब्रह्म

बिखरे मोती देह का सार है आत्मा, सृष्टि का है ब्रह्म। जान सके तो जान ले, इनमें आनन्दम्॥1496॥ व्याख्या:- पाठकों को यहां यह बता देना प्रासंगिक रहेगा कि जीवात्मा तथा ब्रह्म यह दोनों प्रज्ञ है अर्थात् ज्ञान वाले हैं,चेतना वाले हैं,जबकि शरीर तथा प्रकृति प्राज्ञ है अर्थात् ज्ञान वाले नहीं है,चेतना वाले नही है किन्तु […]

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बिखरे मोती : जीवन में संचित करो, जितना हो हरि- नाम

जीवन में संचित करो, जितना हो हरि- नाम। मानुष-धन रह जाएगा, काम आये हरि-नाम॥ 1439॥ व्याख्या:- कैसी विडम्बना है मनुष्य अपनी उर्जा का अधिकांश भाग धन-संग्रह में लगा देता है जबकि होना यह चाहिए था कि उसे अपनी जीवन- ऊर्जा को धर्म- संग्रह और प्रभु भक्ति में लगाना चाहिए। उसके जीवन का अन्तिम लक्ष्य भी […]

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