बिखरे मोती प्रतिभापुँज व्यक्ति आकर्षण का केंद्र होता है प्रतिभापुँज संसार में, बिरला होता कोय। आकर्षण का केंद्र हो, सभा भी रोशन होय॥1669॥ भावार्थ:- जिस प्रकार झील का कमल और सरोवर का हंस दोनों ही अपनी उपस्थिति से यथा स्थान शोभा में चार चांद लगाते हैं, वहां की शोभा बढ़ाते हैं, ठीक इसी प्रकार प्रतिभा […]
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बिखरे मोती : मन, दिव्य शक्ति है-
मन के शुभ संकल्प से, होता है कल्याण। मन रक्षक मन ब्रह्म है, शक्ति दिव्य महान॥1666॥ व्याख्या:- प्रायः मन के बारे में कहा जाता है कि मन पापी है, मन कपटी है, मन चोर है, मन बेलगाम घोड़ा है, यह मन का नकारात्मक पक्ष है किन्तु समग्र दृष्टि से देखिए,समीक्षा कीजिए, सकारात्मक पक्ष पर भी […]
कौन किसके लिए कितना महत्त्वपूर्ण
बिखरे मोती खेती होवै पानी से, वाणी से व्यापार। हाँ – जी से हो चाकरी, चाव से हो त्योहार॥1664॥ वाणी विधाता का वरदान है वाणी तो एक बांसुरी, मोहक धुन की खान। गहना है व्यक्तित्व का, विधाता का वरदान॥1665॥ व्याख्या :- वाणी और मुस्कान परमपिता परमात्मा ने केवल मनुष्य को ही प्रदान किए हैं, अन्य […]
जीवन का सार,मन-वाणी की साधना
मन-वाणी की साधना, दो ऐसी पतवार। जीवन – नैया को करें, भवसागर से पार॥1662॥ भावार्थ :- प्रायः मनुष्य तीन तरह से पाप करता है – मन ,वाणी और शरीर पाप के माध्यम है। इसके अतिरिक्त इन तीनों से शुभ – कर्म भी होते हैं, जो इस प्रकार हैं:- तन से होने वाले पाप:- अशुभ कर्म- […]
बिखरे मोती संयम खूंटे से बाँधले, वाणी रूपी गाय, खुली छोड़ने पर तेरी, यस – खेती चर जाय।।1661।। भावार्थ :- जिनकी वाणी में प्राण और प्राण में प्राण होता है, संसार में ऐसे लोग बिरले ही होते हैं। वाणी माननीय व्यक्तित्व का सर्वश्रेष्ठ गहना है। सब गहने एक दिन अपनी चमक खो देते हैं किन्तु […]
साधना से सृजन करें, कोई दाता या शूर
साधना से सृजन करे, कोई दाता या शूर। सृष्टि-हित में रत रहे, ईश्वर का है नूर॥1656॥ भावार्थ:- अपनी आजीविका आजीविका के लिए सामान्य व्यक्ति कुछ न कुछ उत्पन्न करने अथवा निर्माण करने में लगा हुआ है किन्तु संसार में ऐसे ही व्यक्ति होते परमपिता परमात्मा की बनाई सृष्टि के कल्याण के लिए निर्माण अथवा अनुसंधान […]
स्मृति मेधा क्षमा, धृति श्री यश वाक। जग में सात विभूतियाँ, बाकी तो सब ख़ाक॥1645॥ व्याख्या :- संसार में सात विभूतियाँ (विलक्षणता) ऐसी हैं, जो किसी एक व्यक्ति के पास एक साथ बड़ी दुर्लभ मिलती है। ऐसा व्यक्ति कोई पुण्यसील आत्मा होता है, जिसका प्रारब्ध महान् होता है। प्रभु का प्रिय कृपा-पात्र होता है। 1 […]
आत्मा के दिव्य गुणों का वर्धन कीजिए:- भक्ति में बाधक राग और द्वेष जब तक राग और द्वेष हैं, मन में रहे तनाव। भक्ति को बाधित करें, टिके न भगवद् – भाव॥1638॥ परमात्मा का प्रिय, कोई बिरला ही होता है:- प्रभु प्यारे को सब चुनें, प्रभु चुनें कोई एक। उस पर कृपा सब करें, जिस […]
मैं- मेरे पर हो रहा, इस जग में घमासान। तू- तेरे के भाव से, खुश होते भगवान॥1635॥ व्याख्या:- विश्व के परिदृश्य पर एक समग्र दृष्टि डालें तो प्रतीत होता है संसार में लोग सुखी कम है दु:खी ज्यादा है किन्तु फिर भी लोग जीना चाहते हैं ऐसा क्यों ? ऐसा इसलिए है व्यक्ति की मूल […]
प्रकृति के तत्व दो, एक अग्नि एक सोम। दोनों के संयोग से, चल रहा सृष्टि- होम॥1634॥ व्याख्या:- सुना है सृष्टि के आग और पानी दो शत्रु हैं, जो निर्माण या नाश का नृत्य करते हैं।भाव यह है कि मनुष्य जो भी निर्माण करता है, उसका यह विनाश कर देते हैं। जल जहां सब कुछ बहा […]