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बिखरे मोती

वाणी कभी औषध बने, कभी करे है घाव।

जब व्यक्ति का उत्थान-पतन सन्निकट होता है, तो वाणी का प्रभाव तदनुसार घटता-बढ़ता रहता है:- वाणी कभी औषध बने, कभी करे है घाव। घटता-बढ़ता चाँद सा, वाणी का प्रभाव॥1760॥ वाणी ऐसी बोलिये, जो दिल में देय उतार। ऐसी कभी न बोलिये, जो दिल में दे उतार॥1761॥ वाणी में शुद्धि नहीं, बिगड़ जाय व्यवहार। आकर्षण रहता […]

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बिखरे मोती

बिखरे मोती : चिंतन के संदर्भ में:-

व्यक्ति का चिन्तन उसे, देता है व्यक्तित्व । चिन्तन आला दर्जे का, ऊँचा रखे अस्तित्व॥1721॥ चिन्तन जैसा होत है, वैसा हो व्यक्तित्व। सुई संग धागा चले, वृत्ति संग के कृतित्त्व ॥1723॥ चिन्तन मति बिगारिये, चिन्तन है बुनियाद्। ऊँचे चिन्तन से उठै, नीचे से बर्बाद॥1723॥ चिन्तन निर्मल राखिए, प्रभु की पहली पसन्द। निर्मल चिन्तन से मिले, […]

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बिखरे मोती

मन भक्ति में लीन, ज्ञान- कर्म और उपासना तैरे पँख है तीन”

भक्ति चढ़ै परवान तो , वाणी हो खामोश । आँखियों से आंसू बह, मनुआ हो निर्दोष ॥1705 ॥ रसों का रस वह ईश है, भज उसको दिन – रात । एक दिन ऐसे जायेगा, ज्यों तारा प्रभात् ॥ 1706॥ नाम जन्म स्थान को, जाने प्राणाधार । संसृति से मुक्ति का , बिरला करे विचार॥1707॥ जीवन […]

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आज का चिंतन बिखरे मोती

बिखरे मोती : कड़वे अतीत को भूलना ही श्रेयस्कर है:-

भूल जा कड़वे अतीत को, मत कर उसको याद। सोच समय सम्पत्ति को, कर देगा बर्बाद॥1687व भक्ति के संदर्भ में:- एक जाप एक ध्यान हो, मत भटकै चहुँ ओर। हिये में आनन्द स्रोत है, सुन अनहद का शोर॥1688॥ भगवद – भाव में जी सदा, जो चाहै कल्याण। यही कमाई संग चले, जब निकलेंगे प्राण॥1689॥ दुनिया […]

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बिखरे मोती

बिखरे मोती : प्रभु मिलन की चाह है तो……

. दुर्गुण – दुरित का शमन, किया करो हर रोज। जग की सेवा प्रति हरी से, करो स्वयं की खोज॥1686॥ भावार्थ:- जिस प्रकार दो कुंओं का स्वच्छ जल आपस में मिलकर एकाकार हो जाता है, ठीक इसी प्रकार जब भक्तों की आत्मा में परमात्मा के ईश्वरीय गुण आत्मसाता होते हैं तो उसकी आत्मा तदाकार हो […]

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बिखरे मोती

भगवान राम की अप्रतिम महिमा के संदर्भ में :-

सत्य शील और सोम्यता, से भूषित श्रीराम । जिसमें हों ये विभूतियाँ, पावै मुक्ति-धाम॥1685॥ भावार्थ:- भगवान राम का व्यक्तित्व अप्रतिम है, मर्यादा से परिपूर्ण है, जीवन के हर क्षेत्र में उन्होंने मर्यादा का पालन करके उन्होंने उत्कृष्ट आदर्श उपस्थित किया है। चाहे गुरु के प्रति शिष्य – धर्म हो, पितृ – धर्म हो, पत्नीव्रता – […]

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आज का चिंतन बिखरे मोती

फूल की खुशबू बहत है, जिस दिश बहे समीर।

चरित्र की खुशबू चारों दिशाओं को सुरभित करती है:- फूल की खुशबू बहत है, जिस दिश बहे समीर। रामचरित चहुँ दिश बहे, सुलोचना भई अधीर॥1682॥ भावार्थ:- माना कि फूल अपने आसपास के वातावरण को सौन्दर्य देते हैं, सुगन्धित करते हैं किन्तु इनकी सुगन्ध उस दिशा को बहती है जिस दिशा को वायु का वेग होता […]

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बिखरे मोती

ये जीवन स्वर्ग कैसे बने :-

बिखरे मोती ये जीवन स्वर्ग कैसे बने :- आंखों में स्वर्ग रखो। हृदय में रहम रखो॥ हाथों में कर्म रखो। वाणी को नरम रखो।। गुणी- ज्ञानी के पास में लगा रहे दरबार :- सागर को घेरे रहे, ज्यों सरिता की धार। गुणी-ज्ञानी के पास में, लगा रहे दरबार ।। मूरख से बचाव ही श्रेयस्कर है:- […]

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बिखरे मोती

घट भीतर परमात्मा, जाग सके तो जाग

बिखरे मोती आत्म – साक्षात्कार के संदर्भ में:- आतम भावना जी सदा, देह – भाव को त्याग। घट भीतर परमात्मा, जाग सके तो जाग॥1677॥ जिनके कारण मनुष्य का रिश्ता कहलाता है:- कीर्ति जैसा धन नहीं, माता जैसा देव। संयम जैसा गुण नहीं, नर होता भूदेव॥1678॥ भूदेव – अर्थात् पृथ्वी का देवता भूल की भूल आत्मा […]

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बिखरे मोती

अंहता – ममता कब मोक्ष दायिनी होती है

बिखरे मोती अंहता – ममता में फंसा, ये सारा संसार। बदलो अहं की सोच को, मिले मुक्ति का द्वार॥1676॥ व्याख्या:- दृश्यम संसार अहंता और ममता में फंसा हुआ है, चाहे वह राजा है अथवा रंक हो। अहंता से अभिप्राय है -ममता से अभिप्रया है – जो इस शरीर से जुड़े हैं उनके प्रति आसक्ति भाव […]

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