साहित्यिक प्रदूषण छा रहा हर ओर साहित्यिक प्रदूषण, पद्य एवं गद्य दोनों मर रहे हैं। पंत जी का कवि नहीं होता वियोगी, अब नहीं दिनकर व्यथायें छंद बनतीं। अब इलाहाबाद के पथ पर निराला, तोड़ पत्थर नारियाँ कब राह गढ़तीं! निर्मला होरी गबन गोदान गायब, सत्य कहने से समीक्षक डर रहे हैं। व्यास बाल्मीकि तुलसीदास […]
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राहुल पाण्डेय भाषा और लिपि की बात करें तो भारत में सबसे पुरानी सिंधु लिपि ही मानी जाएगी जो अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है। इसके बारे में भाषाविद इतना ही जान पाए हैं कि इसकी पहली लाइन दाएं से बाएं चलती है और दूसरी बाएं से दाएं। इसमें लगभग चार सौ संकेत हैं, […]
प्रवीन मोहता इटावा का एक छात्र कानपुर के एक कोचिंग इंस्टिट्यूट में पहुंचा। लक्ष्य, IIT से बीटेक करना। एक दिन टीचर ने उस छात्र से एक सवाल किया तो वह सकपका गया। जवाब दिया, ‘अब तक आपने जो पढ़ाया, उसमें से कुछ समझ नहीं आया।’ टीचर यह सुनकर हैरान थे। काउंसलिंग में पता चला कि […]
अनुवाद दो भाषाओं को जोड़ने वाला पुल है
हर भाषा का अपना एक अलग मिज़ाज होता है,अपनी एक अलग प्रकृति होती है जिसे दूसरी भाषा में ढालना या फिर अनुवादित करना असंभव नहीं तो कठिन ज़रूर होता है।भाषा का यह मिज़ाज इस भाषा के बोलने वालों की सांस्कृतिक परम्पराओं, देशकाल वातावरण, परिवेश, जीवनशैली, रुचियों,चिन्तन-प्रक्रिया आदि से निर्मित होता है।अंग्रेजी का एक शब्द है […]
उमेश चतुर्वेदी विश्व हिंदी सम्मेलन तो हो गया मगर इससे हिंदी को क्या हासिल हुआ? विश्व हिंदी सम्मेलन के 48 साल की यात्रा कम नहीं होती। फिजी के नादी में हुए 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन के मौके पर देश में यह सवाल जरूर उठा कि जिस उद्देश्य से यह सम्मेलन शुरू हुआ, क्या उसे वह […]
मातृभाषा को मात्र भाषा ना समझें.
नहीं तो मातृभाषा को मृत भाषा बनने से कोई नहीं रोक सकता. 1- अफ्रिका महाद्वीप – 46 पिछडे देश 21 देश फ्रांसीसी में सीखते हैं। 18 देश अंग्रेज़ी में सीखते हैं।, 5 देश पुर्तगाली में सीखते हैं।, 2 देश स्पेनिश में सीखते हैं।, उन देशों के लिए ये सारी परदेशी भाषाएँ हैं। उनपर शासन करने […]
डॉ. वंदना सेन जन्म लेने के बाद मानव जो प्रथम भाषा सीखता है उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं। मातृभाषा, किसी भी व्यक्ति की सामाजिक एवं भाषाई पहचान होती है। मातृभाषा का शाब्दिक अर्थ है माँ से सीखी हुई भाषा। बालक यदि माता-पिता के अनुकरण से किसी भाषा को सीखता है तो वह भाषा ही उसकी […]
विष्णुगुप्त अभी-अभी उर्दू को लेकर परतंत्रवाद-सेक्युलरवाद और परसंस्कृतिवाद की वैचारिक गुलामी देखने और समझने को मिली। अवसर था वरिष्ठ कवि महेश बंसल की जन्मतिथि पर आयोजित राष्टीय कवि सम्मेलन का। कवि सम्मेलन में मेरे अतिरिक्त डॉ सुरेश नीरव और डा सरस्वत मोहन मनीषी सहित देश भर से आये एक दर्जन से अधिक कवि शामिल थे। […]
विश्व हिंदी या अंग्रेजी की गुलामी?
डॉ. वेदप्रताप वैदिक फिजी में 15 फरवरी से 12 वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन होने जा रहा है। यह सम्मेलन 1975 में नागपुर से शुरु हुआ था। उसके बाद यह दुनिया के कई देशों में आयोजित होता रहा है। जैसे मोरिशस, त्रिनिदाद, सूरिनाम, अमेरिका, ब्रिटेन, भारत आदि! पिछले दो सम्मेलनों को छोड़कर बाकी सभी सम्मेलनों के […]
अंतरराष्ट्रीय हिंदी दिवस 10 जनवरी पर विशेष डॉ. वंदना सेन हमारी संस्कृति के कई बिन्दु ऐसे हैं, जिसे सुनकर या देखकर हम सभी को गौरव की अनुभूति होती है। उसमें से एक है हमारी हिन्दी भाषा। जो हमारे मूल से प्रस्फुटित है। सही मायनों में हिन्दी भारत का गौरव गान है। जिसे हम जितना आचरण […]