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डॉ राकेश कुमार आर्य द्वारा लिखित ‘हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी’ पुस्तक की समीक्षा : डॉक्टर आर्य का साहित्य कराता है यथार्थ का दर्शन : सुमति कुमार जैन

‘जगमग दीपज्योति’ पत्रिका न केवल भारत की बल्कि विश्व की अग्रणी पत्रिकाओं में अपना प्रमुख स्थान रखती है । इसे हिंदी जगत के सुप्रसिद्ध विद्वान माननीय सुमति कुमार जैन जी अलवर से प्रकाशित करते हैं । उनके द्वारा मेरी पुस्तक ‘हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी’ – की समीक्षा को इस पत्रिका में स्थान दिया गया है । […]

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हिंदी को भी चाहिए संक्रमण से मुक्ति

-विनोद बंसल किसी राष्ट्र को समझना हो तो उसकी संस्कृति को समझना आवश्यक है. उसकी संस्कृति को समझने हेतु वहां की भाषा का ज्ञान भी आवश्यक है. विश्व के लगभग सभी देशों की अपनी अपनी राजभाषाएँ हैं जिनके माध्यम उनके देशवासी परस्पर संवाद, व्यवहार, लेखन, पठन-पाठन इत्यादि कार्य करते हैं. स्वभाषा ही व्यक्ति को स्वच्छंद […]

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भारत के हृदय की भाषा है हिंदी

डॉ. वंदना सेन —————————- यह सर्वकालिक सत्य है कि कोई भी देश अपनी भाषा में ही अपने मूल स्वत्व को प्रकट कर सकता है। निज भाषा देश की उन्नति का मूल होता है। निज भाषा को नकारना अपनी संस्कृति को विस्मरण करना है। जिसे अपनी भाषा पर गौरव का बोध नहीं होता, वह निश्चित ही […]

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‘हिंदी दिवस’ के अवसर पर संस्कृत के बारे में विचारणीय कुछ आवश्यक बातें

संस्कृत के विषय में ये सर्वमान्य और सर्वग्राह्य तथ्य है कि संस्कृत विश्व की सर्वाधिक प्राचीन भाषा है। इसीलिए हमारे भारतीय मत के अनुसार संस्कृत मनुष्य की ईश्वर प्रदत्त भाषा है। यही कारण है कि संस्कृत को देव भाषा भी कहा जाता है। पश्चिमी जगत के कई विद्वान भी भारत की इस देवभाषा के विषय […]

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हिंदी के दीप्तिमान नक्षत्र थे बाबा कामिल बुल्के

श्याम सुंदर भाटिया बेल्जियम में जन्मे फादर कामिल बुल्के की जीवनभर कर्मभूमि हिंदुस्तान की माटी रही। हिंदी के पुजारी बुल्के मृत्युपर्यंत हिंदी, तुलसीदास और वाल्मीकि के अनन्य भक्त रहे। ‘कामिल’ शब्द के दो अर्थ हैं। एक- वेदी-सेवक जबकि दूसरा अर्थ है- एक पुष्प का नाम। फ़ादर कामिल बुल्के ने दोनों ही अर्थों को जीवन में […]

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पूर्वोत्तर भारत के साहित्यकारों का हिंदी के विषय में चिंतन

दुनिया में सर्वाधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली हिंदी भाषा अपने ही घर में विमाता बनाई गई है। गणतन्त्र भारत के सत्तर साल होने के बावजूद भी हिंदी को राजभाषा से राष्ट्रभाषा का छोटा सा सफर भी तय न करने दिया गया। दक्षिण और पूर्वोत्तर भारत में राजनीतिक उथल पुथल मचाकर हर बार माँग को […]

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लुप्तप्राय हिंदी अंक पद्धति

राष्ट्रभाषा हिंदी को लेकर गंभीर चिंतन समय की आवश्यकता है ________________________ वह दिन अब दूर नहीं जब अंक गणना लेखन में एक इकाई ,दो इकाई, को लिखने पढ़ने समझने वाले चुनिंदा व्यक्ति रहेंगे| दो एकम दो ,दो दूनी चार नहीं |टू वन जा टू टू टू जा फोर” हो गया है कितनी आसानी से हमने […]

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मेंटल महेश्वरी की संस्कृत के बारे में मानसिकता

* चिंता और चिंतन का विषय* _____________________________ ये तथाकथित मोटिवेशनल स्पीकर वास्तविकता में मेंटल स्पीकर संदीप माहेश्वरी है, संस्कृत भाषा को अपनी मोटिवेशन क्लास में यूज़ लेस भाषा बताता है, कहता है संस्कृत भाषा relevant प्रसांगिक नहीं है संस्कृत के ग्रंथों का हिंदी अंग्रेजी में अनुवाद हो चुका है| यह कोई भाषाविद नहीं है एक […]

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महर्षि दयानंद द्वारा हिंदी अपनाए जाने पर इसका देश देशांतर में प्रचार हुआ

ओ३म् ========= आज हम जिस हिन्दी भाषा का प्रयोग करते हैं उसका उद्भव एवं विकास विगत लगभग दो सौ वर्षों में उत्तरोत्तर हुआ दृष्टिगोचर होता है। ऋषि दयानन्द (1825-1883) के काल में हिन्दी की उन्नति हो रही थी। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी को हिन्दी की उन्नति करने वाले पुरुषों में प्रमुख स्थान प्राप्त है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र […]

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आदि भाषा संस्कृत का प्रकाश और स्वरूप

✍🏻 लेखक – पदवाक्यप्रमाणज्ञ पण्डित ब्रह्मदत्तजी जिज्ञासु प्रस्तुति – 🌺 ‘अवत्सार’ अब हम आदि-भाषा के स्वरूप पर कुछ विचार उपस्थित करते हैं। जब आदि-ज्ञान के स्वरूप को जान लिया जावे, तो आरम्भ में भाषा का व्यवहार कैसे चला होगा? ऐसी आकाङ्क्षा प्रत्येक व्यक्ति को होनी स्वाभाविक ही है। यह नियम है कि मनुष्यों में ज्ञान […]

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