विदेशी भाषा ‘अंग्रेजी’ हमारी शिक्षा पद्घति का आधार बनी बैठी है। जो हमारी दासता रूपी मानसिकता की प्रतीक है। यदि राष्ट्रभाषा हिंदी को प्रारंभ से ही फलने फूलने का अवसर दिया जाता तो आज भारत में ये भाषाई दंगे कदापि न हो रहे होते। वास्तव में क्षेत्रवाद और भाषावाद को हमारे नेतागण निहित स्वार्थ में […]
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जब 6 जून 1674 को शिवाजी महाराज ने ” हिंदवी स्वराज्य ” की स्थापना करते हुए राज्य सत्ता संभाली तो उन्होंने मुगलिया राज्य होने के कारण प्रशासनिक शब्दावली में आ गए अरबी और फारसी के शब्दों को दूर करने का अभियान आरंभ किया। उन्होंने अपने एक मंत्री रामचंद्र अमात्य को शासकीय उपयोग में आने वाले […]
*हिन्दी दिवस मनाना बहुत ही लज्जा जनक विषय।*
(१४ सितम्बर हिन्दी-दिवस पर विशेष) – आचार्य राहुलदेवः वैसे तो अपनी मातृभाषा, अपनी राजभाषा और अपनी राष्ट्रभाषा से सबको लगाव और स्वाभिमान होता है। परन्तु भारत जैसा विरला देश भी है इस धरा पर जो वर्तमान समय में इसका पर्याय बना हुआ है। जिसकी अभी तक कोई भी राष्ट्रभाषा नहीं है। भारत का निवासी न […]
राष्ट्रभाषा हिन्दी और देवनागरी लिपि
लेखक- डॉ० भवानीलाल भारतीय प्रस्तोता- प्रियांशु सेठ, #डॉविवेकआर्य सहयोगी- डॉ० ब्रजेश गौतमजी अपने विचारों को दूसरे तक प्रेषित करने में हमें भाषा की आवश्यकता पड़ती है। स्वामी दयानन्द जब धर्म प्रचार के क्षेत्र में आये तब उनके सामने यही समस्या थी कि वे किस भाषा के द्वारा अपने विचारों को अन्यों तक सम्प्रेषित करें। उनकी […]
============ भारतवर्ष के इतिहास में महर्षि दयानन्द पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने पराधीन भारत में सबसे पहले राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता के लिए हिन्दी को सर्वाधिक महत्वपूर्ण जानकर मन, वचन व कर्म से इसका प्रचार-प्रसार किया। उनके प्रयासों का ही परिणाम था कि हिन्दी शीघ्र लोकप्रिय हो गई। यह ज्ञातव्य है कि हिन्दी को स्वामी दयानन्द […]
हिन्दी विश्व में सर्वाधिक तीसरे नंबर की बोले जाने वाली भाषा -सुरेश सिंह बैस शाश्वत राष्ट्र कोई भौगोलिक इकाई ही मात्र नहीं है, उससे अधिक कुछ और है। हमारी धर्म, भाषा, वेशभूषा, परंपरा रीतिरिवाज़ आदि के द्वारा बाहर से अलग दिखाई देने वाला राष्ट्र भीतर से एक ऐसे अंतर धारा से जुड़ा होता है, जो […]
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल‘ भाषाओं की मर्यादाएँ, सीमाएँ न केवल संवाद की मध्यस्थता तक हैं बल्कि राष्ट्र के समृद्ध सांस्कृतिक वैभव का परिचय भी भाषाओं के उन्नयन से ही होता है। जिस तरह समग्र विश्व में आज भारत की पहचान में तिरंगा, राष्ट्रगान वन्दे मातरम और राष्ट्रगीत जन-गण-मन है, उसी तरह भारत का भाषाई परिचय […]
कितनी उपयोगी है हिन्दी में तकनीकी शिक्षा*
(विवेक रंजन श्रीवास्तव-विभूति फीचर्स) राष्ट्र की प्रगति में तकनीकज्ञों का महत्वपूर्ण स्थान होता है। सच्ची प्रगति के लिये अभियंताओं और वैज्ञानिकों का राष्ट्र की मूल धारा से जुड़ा होना अत्यंत आवश्यक है। हमारे देश में आज भी तकनीकी शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी है। इस तरह अपने अभियंताओं पर अंग्रेजी थोप कर हम उन्हें न केवल […]
संस्कृत भाषा का महत्त्व और उसका शिक्षण
लेखक- डॉ० भवानीलाल भारतीय प्रस्तोता- प्रियांशु सेठ, डॉ० विवेक आर्य सहयोगी- डॉ० ब्रजेश गौतमजी स्वामी दयानन्द संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार को स्वदेश की उन्नति के लिए अत्यावश्यक समझते थे। उनका यह सत्य विश्वास था कि भारत की प्राचीन परम्परा और संस्कृति संस्कृत साहित्य में सुरक्षित है। आर्यों के प्राचीन धर्म, दर्शन, अध्यात्म तथा जीवन […]
मातृभाषा स्वरूप और चुनौतियां
कश्मीरी मातृभाषा स्वरूप और चुनौतियां डॉ० शिबन कृष्ण रैणा 1961 की जनगणना के अनुसार कश्मीरी भाषियों की कुल संख्या 19,37818 थी जो 1971 में बढ़कर 19,56115 तक पहुंच गई। 1981 में हुई जनगणना के अनुसार कश्मीरी 30,76398 व्यक्तियों की भाषा थी। (1991 में जनगणना नहीं हुयी) ताज़ा जानकारी के अनुसार इस समय कश्मीरी भाषियों की कुल संख्या (विस्थापित कश्मीरी जन-समुदाय को सम्मिलित कर) अनुमानतः 56,00000 के आसपास है। कश्मीरी […]