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भारतीय संस्कृति

मृत्यु विजयी होने के लिए यज्ञ आवश्यक है

डा. अशोक आर्यविश्व का प्रत्येक प्राणी मृत्यु के नाम से भयभीत है । जब भी उसके कान में यह शब्द पड़ता है तो वह डर जाता है, सहम जाता है, भय से कांपने लगता है । एसा क्यों ? क्योंकि वह मृत्यु के भाव को, मृत्यु के अर्थ को समझ ही नहीं पाया । यदि […]

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ओ३म्: हम प्रात: उठ प्रभु स्मरण से अपने कार्यों में लगें

डा. अशोक आर्यमानव अपने जीवन को सदा सुखों में ही देखना पसंद करता है । वह सदा सुखी रहना चाहता है । सुखी रहने के लिए उसे अनेक प्रकार के यत्न करने होते हैं । अनेक प्रयास करने होते हैं । इन यत्नों के बिना , इन प्रयासों के बिना, इन पुरुषार्थों के बिना वह […]

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हिन्दू राष्ट्र मन्दिर के उद्घोषक – स्वामी श्रद्धानन्द

संसार के महा पुरुषों को दो श्रेणी में बांटा जा सकता है। एक तो वे जिनका जीवन प्रारम्भ से अन्त तक निष्कलंक रहा और दूसरे वे जिनके प्रारम्भिक जीवन में तो पतन कारी प्रवृतियां दिखाई दीं किन्तु बाद में वे अपनी प्रवल ईच्छा शक्ति व आत्म साधना के बल पर जीवन को ऊंचाइयों तक ले […]

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शिव भक्त सम्राट मिहिरकुल हूंण का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव

वैद्यराज कविराज जीतराम शास्त्रीईरान देश में पढ़ाया जाने वाला इतिहास जो ऋषि दयानंद की मान्यता के अनुसार आर्यों का उद्गम स्थान त्रिविष्ठम (तिब्बत प्रदेश है) यहीं सर्वश्रेष्ठ ऊंचे और प्रथम निर्मित पठारीय भूभाग पर मानव सरोवर मानसरोवर पर प्रथम मानव की उत्पत्ति सर्वमान्य प्रमाण है कालांतर में तिब्बत का नाम हूण प्रदेश भी था। यही […]

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ओ3म्:मेरे श्वास प्रश्वास में प्रेम व उन्नति का कारण हो

डा. अशोक आर्यमैं प्रयत्न पूर्वक अपने आप को इस योग्य बना लूं की परमात्मा मुझ को धारण करे । एसे कार्य करू की प्रभु का दायाँ हाथ बन जाऊ । श्वास – प्रश्वास या प्रेम तथा अद्वेष भावना मेरे उन्नति का कारण हो । यह भाव यजुर्वेद के अध्याय दो के मंत्र संख्या तीन में […]

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योगवासिष्ठ : एक विलक्षण दार्शनिक ग्रन्थ

ममता त्रिपाठीयोगवासिष्ठ का भारतीय दर्शन में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है । एक ओर जहाँ इस ग्रन्थ में उच्च दार्शनिक विमर्श के दर्शन होते हैं, वहीं दूसरी ओर यह साहित्यिक मञ्जुलता को समाहित करता हुआ चलता है । आख्यान, कथा, कहानियों जैसे सर्वजनग्राह्य माध्यम का सहारा लेकर बहुत ही ललित शैली में दर्शन के गूढ़तम सिद्धान्तों […]

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पंचगव्य और हमारा स्वास्थ्य

राकेश कुमार आर्यपंचगव्य हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक है। कैंसर जैसे भयंकर रोग को पंचगव्य का नियमित सेवन करने से रोकने में पूर्ण सफलता मिलती है। जबकि कैंसर के रोगी को तुलसी के 30-40 पत्तों को चटनी की भांति पीसकर गोदधि के मट्ठे में मिलाकर प्रात: सायं सेवन कराने से लाभ होता है। रोगी […]

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भारत में बरगद का महत्व

बरगदभारत डिस्कवरी प्रस्तुतिबरगदजगत                     पादपसंघ                       मैग्नोलियोफाइटावर्ग                       मैग्नोलियोप्सिडागण                       रोसेल्सकुल           […]

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माता क्यों कही जाती है-गाय?

राकेश कुमार आर्यगाय को हमारे यहां माता का सम्मान जनक स्थान प्राप्त है। इसका कारण केवल ये है कि गाय का पंचगव्य हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही उपयोगी है। चिकित्सा शास्त्रों में जहां-जहां भी दूध, घी, दही, छाछ बात कही गयी है, वहीं-वहीं उसका अर्थ गोदुग्ध, गोघृत, गोदधि और गऊ छाछ से लिया जाना […]

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बिखरे मोती-भाग 2७

ओउम् नाम की नाव से, तरे अनेकों संत आधी बीती नींद में,कुछ रोग भोग में जाए।पुण्य किया नही हरि भजा,सारी बीती जाए ।। 415।। धर्म कर्म का उपार्जन,खोले सुखों के द्वार।इनमें मत प्रमाद कर,काल खड़यो है त्यार ।। 416।। रसों में रस है ब्रह्मï रस,रोज सवायो होय।जितना हो रसपान कर,सारे दुखड़ा खोय ।। 417।। पग-पग पर […]

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