Category: भारतीय संस्कृति
घोर घने जंगल में
!!!–🔮 ओ३म् 🔮–!!! -: घोर घने जंगल में :- ================== एक बार विदुर जी संसार भ्रमण करके धृतराष्ट्र के पास पहुँचे तो धृतराष्ट्र ने कहा, “विदुर जी ! सारा संसार घूमकर आये हो आप, कहिये कहाँ-कहाँ पर क्या देखा आपने?” विदुर जी बोले, “राजन् ! कितने आश्चर्य की बात देखी है मैंने। सारा संसार लोभ […]
सकारात्मक सोच और पूजा का रहस्य
सोच सकारात्मक कीजिए करे सदा कल्याण। भवसागर से यह तारती और करती है परित्राण ।। सकारात्मक सोच सार्थक जीवन जीने की सबसे उत्तम कला है । सकारात्मक सोच का व्यक्ति सदैव भीतर से प्रसन्न चित्त रहता है । उसके मन का मोर कभी थकता नहीं , प्रत्येक परिस्थिति में नाचता रहता है । जो लोग […]
कल्पना शक्ति जब मनुष्य की विचार शक्ति प्रबल हो जाती है और किसी भी समस्या के समाधान पर वह गहनता से मंथन करने में सक्षम हो जाती है तो चिन्तन की उस भूमि से कल्पना शक्ति का निर्माण होता है । यहाँ खड़ा होकर व्यक्ति न केवल समस्याओं के समाधान के विषय में सोचता है […]
बुरा जो देखन मैं चला…..
जीवन प्रबंधन मनुष्य के जीवन के लिए प्रत्येक प्रकार का प्रबंधन, नियमों का अनुपालन करना बहुत आवश्यक होता है। प्रबंधन का तात्पर्य उचित प्रकार से जीवन को व्यवस्थित बनाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से करना होता है। मनुष्य को चाहिए कि वह सर्वप्रथम यह सुनिश्चित करे कि उसे अपनी आत्मा के लिए क्या करना है […]
ओ३म् =========== हम और हमारा यह संसार परमात्मा के बनाये हुए हैं। संसार में जितने भी प्राणी हैं वह सब भी परमेश्वर ने ही बनाये हैं। परमेश्वर ने सब प्राणियों को उनके पूर्वजन्मों के कर्मों का सुख व दुःख रूपी फल भोगने के लिये बनाया है। परमात्मा ने मनुष्यों के शरीर की जो रचना की […]
आंख मूंदकर चल पड़ो एक अनोखी राह
विनम्रता अपने से ज्ञान श्रेष्ठ , बल श्रेष्ठ और आयुश्रेष्ठ किसी भी व्यक्ति , माता – पिता , गुरु -आचार्य से यदि हमको कोई शिक्षा प्राप्त करनी है तो उसके लिए जिज्ञासा भाव के साथ – साथ हमारा विनम्र होना भी अनिवार्य है । क्योंकि विद्या जहां विनम्रता प्रदान करती हैं , वहीं बिना श्रद्धा […]
सुख ऊपर हमने स्पष्ट किया कि सुख और दुख दोनों इंद्रियों के विषय हैं। इंद्रियों को जो अच्छा लगे वह सुख है और जो बुरा लगे वह दुख है । इंद्रिया जिन विषयों में सुख खोजती हैं वह अंततः हमारे शरीर और आत्मा का पतन करते हैं । जिससे शरीर रुग्ण होकर मृत्यु को प्राप्त […]
आजकल जिसे हम कर्तव्य के नाम से जानते हैं प्राचीन काल में वही हमारे देश में विधि थी । उस समय विधि का पालन करना सबके लिए वैसे ही अनिवार्य था जैसे आज कानून का पालन करना अनिवार्य है । विधि विधेयात्मक होती है । जबकि कानून निषेधात्मक होता है । इन दोनों में मौलिक […]
साधना और आत्मज्ञान
(मधुकथा १८०५११) जाने अनजाने विश्व में हम सब साधक हैं व सबके अपने अपने बहुमूल्य अनुभव व अनुभूतियाँ हैं। सभी साधनाओं का समापन आत्मज्ञान में है । आत्मज्ञान के बाद विधि गौण हो जाती है एवं अध्यात्म के विषय में भी बात करने की इच्छा अनिच्छा नहीं रहती। कोई कुछ पूछते हैं तो सहज ही […]