प्रेषक #डॉविवेकआर्य अज्येष्ठासो अकनिष्ठास एते सं भ्रातरो बावृधुः सौभगाय । -ऋ0 5/60/5 अर्थात् मनुष्यों में जन्म सिद्ध कोई भेद नहीं है। उनमें कोई बड़ा, कोई छोटा नहीं है। वे सब आपस में बराबर के भाई हैं। सबको मिलकर अभ्युदय पूर्वक मोक्ष की प्राप्ति के लिये यत्न करना चाहिये। इससे यह भी विदित होता है कि […]
Category: भारतीय संस्कृति
*अगस्त्य और लोपामुद्रा संवाद*
Dr D K Garg पौराणिक कथा के अनुसार अगस्त्य ऋषि में युवा लोपामुद्रा से गांधर्व विवाह किया।इस विषय को कथाकार खूब बढ़ा चढ़ाकर इस तरह से सुनाते हैं जैसे पूरी घटना उनके सामने घटित हुई हो।और श्रोता सुनते रहते हैं ,वास्तविक संदेश ना तो कथाकार को मालूम है और ना हो श्रोता को उसकी जरूरत […]
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्। प्रश्न — गीता के उक्त श्लोक का अर्थ व भाव क्या है ? उत्तर– इस श्लोक को कुछ लोगों ने समझने में थोड़ी सी भूल की है। यहां श्री कृष्ण जी का कहने का तात्पर्य स्वयं को ईश्वर बताना नहीं है। उनका कहने का भाव यह […]
पं. आर्यमुनि (जन्म 1862) का आर्यसमाज के इतिहास में गौरवपूर्ण स्थान है। आर्यसमाज की नई पीढ़ी के अधिकांश लोग इनसे परिचित नहीं है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए आज उनका परिचय इस लेख में दे रहे हैं। आपका जन्म पूर्व पटियाला राज्य के रूमाणा ग्राम में सन् 1862 में हुआ था। जन्म का व […]
============= मानव सन्तान को शिक्षित करने के लिए एक पाठशाला या विद्यालय की आवश्यकता होती है। बच्चा घर पर रह कर मातृ भाषा तो सीख जाता है परन्तु उस भाषा, उसकी लिपि व आगे विस्तृत ज्ञान के लिए उसे किसी पाठशाला, गुरूकुल या विद्यालय मे जाकर अध्ययन करना होता है। केवल भाषा से ही काम […]
लेखक- प्रियांशु सेठ, वाराणसी [आर्यावर्त के स्थापित आदर्शों को कलंकित करने के कुत्सित प्रयासों के क्रम में महर्षि भरद्वाज द्वारा मांस परोसने के कुछ यूट्यूबर्स के अनर्गल प्रवाद का युवा गवेषक द्वारा मुंह तोड़ प्रामाणिक उत्तर दिया जा रहा है। -सम्पादक शांतिधर्मी] महर्षि वाल्मीकि ने अपने काव्यग्रन्थ रामायण में वैदिक संस्कृति का वर्णन करते हुए […]
रजनीश ओशो मत खण्डन
रजनीश (ओशो) को भगवान बताने वाले कुछ लोग सत्य के ज्ञान से जो अनभिज्ञ है सत्य जानने के लिए यह लेख अवश्य पढ़े। लेखक – हिमांशु आर्य ओशो वैदिक धर्म और मत – सम्प्रदाय विषय को जानने में अक्षम रहा ओशो सारी बुराइयों का जड़ धर्म , संस्कृति और ऋषियों को मानता है , और […]
============= ऋषि दयानन्द ने सच्चे शिव वा ईश्वर को जानने के लिए अपने पितृ गृह का त्याग किया था। इसके बाद वह धर्म ज्ञानियों व योगियों की तलाश कर उनसे ईश्वर के सत्यस्वरूप व उसकी प्राप्ति के उपाय जानने में तत्पर हुए थे। देश के अनेक स्थानों पर वह इस उद्देश्य की पूर्ति में गये […]
–मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। ऋषि दयानन्द ने अपने ज्ञान व ऊहा से वेदों को सृष्टि के आरम्भ में चार ऋषियों को सर्वव्यापक परमात्मा से प्राप्त सत्य ज्ञान के ग्रन्थ स्वीकार किया था। इस सिद्धान्त व मान्यता की उन्होंने डिण्डिम घोषणा की है। इसके पक्ष में उन्होंने उदाहरणों सहित अनेक तर्क युक्त बातें विस्तार […]
आसक्ति-अहंकार को, जिसने लिया जीत । उद्वेगों से दूर मन, हो गया त्रिगुणातीत॥2708॥ तत्त्वार्थ :- यह दृश्यमान प्रकृति परम पिता परमात्मा की सुन्दरतम रचना है। ‘प्र’ से अभिप्राय प्रमुख, विशिष्ट अर्थात् सुन्दरतम और कृति से अभिप्राय है रचना यानि कि परम पिता परमात्मा की सुन्दर रचना,यदि आप प्रकृति तात्विक विवेचन करेंगे तो पायेंगे यह […]