किसी वस्तु का बिना मोल लिए किसी को दिया जाना दान कहा जाता है । दान देने में स्नेह , प्रेम , आत्मीयता , लगाव , मानवता आदि ऐसे दिव्य गुण समाविष्ट होते हैं जो कभी इच्छा से तो कभी कभी अनिच्छा से भी किसी को कुछ देने के लिए हमें प्रेरित करते हैं । […]
Category: भारतीय संस्कृति
विनोद कुमार सर्वोदय “इस जगत में यदि हम हिन्दू राष्ट्र के नाते स्वाभिमान का जीवन जीना चाहते हैं तो उसका हमें पूरा अधिकार है और वह राष्ट्र हिन्दुराष्ट्र के ध्वज के नीचे ही स्थापित होना चाहिए। इस पीढ़ी में नही तो अगली पीढ़ी में मेरी यह महत्वाकाँक्षा अवश्य सही सिद्ध होगी। मेरी महत्वाकाँक्षा गलत सिद्ध […]
भौतिक भवन अथवा काया की हवेली के विनष्ट,ध्वस्त अथवा ढहने के साथ ही मनुष्य की सारी उपलब्धियां सारी योजनाएं , सारी इच्छाएं एवं वास्तविक ध्येय समाप्त हो जाते हैं। जिन योजनाओं को दृष्टिगत रखकर मनुष्य अपनी कामना, महत्वाकांक्षाओं व अपेक्षाओं की नींव रखता है ,मोह जाल को बुनता है ,अपने वास्तविक ध्येय से विमुख होकर […]
माँ का हमारे जीवन में अति महत्वपूर्ण स्थान है । माँ के बिना हमारे जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती । माँ है तो यह संसार चल रहा है और यदि संसार में मातृशक्ति नहीं है तो संसार का विनाश निश्चित है । यही कारण रहा है कि संसार में मातृशक्ति का सम्मान करने […]
शुद्धि से ही सिद्धि संभव है। शुद्धिसिद्धि की सीढ़ी है। शुद्धि सिद्धि का साधन है। शुद्धि के बिना सिद्धि प्राप्त नहीं हो सकती। शुद्धि सिद्धि वालों को प्राप्त होती है। शुद्धि से सिद्धि भई सिद्धि जीवन ध्येय । जगत में ऐसे लोग ही पा जाते हैं ज्ञेय ।। इस प्रकार शुद्धि की जीवन में बहुत […]
मेरा मन शिवसंकल्प वाला हो
एक मनुष्य के जीवन में शुभ संकल्पों का होना अति आवश्यक है ।क्योंकि शुभ संकल्प ही मनुष्य के कल्याण का हेतु है। शुभ का तात्पर्य अच्छे और संकल्प का तात्पर्य विचार से होता है , अर्थात अच्छे विचार होना मनुष्य के जीवन में आवश्यक हैं । यजुर्वेद के 34 वें अध्याय में निम्न प्रकार मंत्र […]
संसार में अनेक मत-मतान्तर प्रचलित हैं। जो मनुष्य जिस मत व सम्प्रदाय का अनुयायी होता है वह अपने मत, सम्प्रदाय व उसके आद्य आचार्य के जीवन की प्रेरणा से अपने जीवन को बनाता व उनके अनुसार व्यवहार करता है। महर्षि दयानन्द सभी मत व सम्प्रदायों के आचार्यों से सर्वथा भिन्न थे और उनकी शिक्षायें भी […]
विद्या और मानव समाज
परमेश्वर ने मनुष्य को जीवन को श्रेष्ठ कर्म करते हुए मुक्ति को प्राप्त करने का सुअवसर देने के लिये साधनरूप में देह को प्राप्त कराया है। मनुष्य विवेक प्राप्त कर मैं कौन हूं ? मेरा लक्ष्य क्या है ? आदि प्रश्नों के समाधान प्राप्त करता है। परमात्मा ने मनुष्य को सद्कर्मों से स्वयं आनन्द भोगने […]
श्रेय , प्रेय , धर्म और संस्कृति
भावों के पंच गुण सर्वमान्य हैं ।पहला सरलता ,दूसरा समरसता, तीसरा मधुरता, चौथा कोमलता, पांचवां विशुद्धता। जो साधक होते हैं वह बिना ध्वनि के संगीत सुनना पसंद करते हैं ।जिसका तात्पर्य होता है कि वे ऐसा संगीत सुनना पसंद करते हैं जिसमें कोई स्वर न हो अर्थात वे अनहद का संगीत सुनते हैं। ऐसे भक्तों […]
विरक्ति एवम् त्याग -क्या है ? विरक्ति एवं त्याग दोनों का संबंध मनुष्य से होता है , लेकिन इनमें भी त्याग का संबंध स्थूल जगत और स्थूल शरीर से होता है । जबकि विरक्ति का अर्थ काम, क्रोध ,लोभ, मोह ,राग, द्वेष आदि से दूर हो जाना है। व्यक्ति में मन , वचन और कर्म […]