धर्म संस्थापक योगेश्वर श्री कृष्ण सम्पूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने वाला कोई ना था। कंस, जरासन्ध, शिशुपाल, दुर्योधन आदि जैसे दुराचारी व विलासियों का वर्चस्व बढ़ रहा था। राज्य के दैवीय सिद्धान्त से भीष्म जैसे योद्धा तक बंधे हुए थे। ऐसी घोर अन्धकार युग में श्री कृष्ण का अविर्भाव हुआ। अपने अद्भुत चातुर्य […]
Category: भारतीय संस्कृति
स्वच्छता से अस्वच्छता की ओर
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””” भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने स्वच्छता को ईश्वर उपासना में साधन माना है महर्षि पतंजलि ने शौच (जल से शरीर बाहरी अवयवों की शुद्धि) अष्टांग योग में यम नियमों में गणना की है| शरीर की स्वच्छता चित्त की एकाग्रता में वृद्धि करती है| हैंड वॉशिंग सबसे बड़ा प्रिवेंशन माना गया है रोगाणुओं विषाणु से […]
ओ३म् ============ लगभग 23-24 सौ वर्ष पूर्व सनातन धर्म लुप्त प्रायः होकर देश में सर्वत्र नास्तिक मत छा गया था। इस अवधि में देश में स्वामी शंकराचार्य जी का प्रादुर्भाव होता है। वह वेद ज्ञान व विद्या से सम्पन्न थे। उन्होंने जैनमत के आचार्यों से उनकी अविद्यायुक्त मान्यताओं और वैदिक मत की सत्य मान्यताओं पर […]
ओ३म् ========== ऋषि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश के ग्यारहवें समुल्लास में खण्डन-मण्डन की आवश्यकता एवं महत्व पर प्रकाश डाला है। हम यहां उनके विचारों को अपने शब्दों में कुछ अन्तर के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। स्वामी जी कहते हैं कि हमारे देश के संन्यासी लोग ऐसा समझते हैं कि हम को खण्डन-मण्डन से क्या प्रयोजन? […]
मूर्तिपूजा अर्वाचीन है, वेदादि शास्त्रों के विरुद्ध और अवैदिक है | फिर हम अपने ईश्वर को कैसे प्राप्त करें? हमारी उपासना-विधि क्या हो ? उपासना का अर्थ है समीपस्थ होना अथवा आत्मा का परमात्मा से मेल होना। महर्षि पतञ्जलि द्वारा वर्णित अष्टाङ्गयोग के आठ अङ्ग निम्न हैं | — यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, […]
उपकरणों से शिल्पकर्म रत #शूद्रों से कर न लिया जाय। ——— —————— टैक्स लेना राज्य का कर्तव्य और अधिकार दोनों है, लेकिन कैसी सरकार टैक्स ले सकती है और किससे कितना ले सकती है, इसके भी सिद्धांत गढे गए हैं, पहले भी और हाल में भी। ब्रिटिश जब कॉलोनी सम्राट हुवा करता था तब वहां […]
शिव एक समन्वयकारी शक्ति का नाम है
डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र शिवत्व की प्रतिष्ठा में ही विश्व मानव का कल्याण संभव है शिव मानसिक शांति के प्रतीक हैं। वे अपनी तपस्या में रत अवस्था में उस मनुष्य का प्रतीकार्थ प्रकट करते हैं जिसे किसी और से कुछ लेना-देना नहीं रहता। जो अपने में ही मस्त और व्यस्त है; शांत है। ऐसी सच्ची शांति […]
ओ३म् ========== मर्यादा पुरुषोत्तम राम को हमारे पौराणिक बन्धु ईश्वर मानकर उनकी मूर्तियों की पूजा करते वा उनको सिर नवाने के साथ यत्र तत्र समय-समय पर राम चरित मानस का पाठ भी आयोजित किया जाता है। वाल्मीकि रामायण ही राम के जीवन पर आद्य महाकाव्य एवं इतिहास होने के कारण प्रामाणिक ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ […]
ओ३म् ============ मनुष्य मननशील प्राणी है। इसका शरीर उसने स्वयं उत्पन्न किया नहीं है। माता पिता से इसे जन्म मिलता है। माता पिता भी अल्पज्ञ एवं अल्प शक्ति वाले मनुष्य होते हैं। सभी मनुष्य व महापुरुष अल्पज्ञ ही होते हैं। कोई भी मनुष्य व इतर प्राणियों के शरीर को बनाना नहीं जानता। मनुष्य से भिन्न […]
ओ३म् ========= संसार में जितने मनुष्य हैं व अतीत में हुए हैं वह सब किसी देश विशेष में जन्में थे। उनसे पूर्व उनके माता-पिता व पूर्वज वहां रहते थे। जन्म लेने वाली सन्तान का कर्तव्य होता है कि वह अपने जन्म देने वाले माता-पिता का आदर व सत्कार करे। मातृ देवो भव, पितृ देवो भव […]