हिंदू और हिंदुत्व को नकारने वाले नादानों पहले जान तो लो क्या है हिन्दू और हिंदुत्व 1 अरब 96 करोड वर्ष पुराना धर्म है हिंदुत्व वेदों का ईश्वरीय ज्ञान गीता का सार है हिंदुत्व सत्य सनातन सुंस्कृत संस्कृति है हिंदुत्व धरती पर यदि कोई धर्म है तो वो है हिंदुत्व श्री राम की मर्यादा व […]
Category: भारतीय संस्कृति
वैद्य राहुल पाराशर हेमंत शीतकालीन ऋतु है। इसका समयकाल आमतौर पर नवम्बर से दिसम्बर तक जाता है, लेकिन हाल के बरसों में मौसम में हो रहे लगातार बदलाव से इसके लक्षण कुछ देर से देखे जा रहे हैं। भारतीय महीनों के हिसाब से ये समय से ये मार्गशीर्ष से पौष तक का होता है। इसमें […]
प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज संसार के सभी समाजों के संगठन के जो आधार होते हैं, वे सर्वविदित हैं। सर्वप्रथम तो यह आधार समान पूर्वजों के वंशज होने की स्मृति और अनुभूति के रूप में होता है। जब तक की स्मृति संभव है और विश्व में जो भी मानवीय इतिहास के विषय में स्मृतियाँ हैं, तब […]
प्राचीन भारत में रसायन विज्ञान
ओम प्रभात अग्रवाल भारत में रसायन शास्त्र की अति प्राचीन परंपरा रही है। पुरातन ग्रंथों में धातुओं, अयस्कों, उनकी खदानों, यौगिकों तथा मिश्र धातुओं की अद्भुत जानकारी उपलब्ध है। इन्हीं में रासायनिक क्रियाओं में प्रयुक्त होने वाले सैकड़ों उपकरणों के भी विवरण मिलते हैं। वस्तुत: किसी भी देश में किसी ज्ञान विशेष की परंपरा के […]
सचिन सिंह गौर देश में दलित विमर्श करने वाले बुद्धिजीवियों द्वारा सनातन धर्म पर शुद्रों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया जाता है। इसके लिए अक्सर श्रीराम द्वारा शम्बुक का वध किए जाने जैसी घटनाओं का उल्लेख किया जाता है। यदि हम शम्बुक की पूरी कथा और वेदादि शास्त्रों में शुद्रों के लिए दी गई […]
कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल दीपक हमारे अन्त:चक्षुओं का प्रतिबिम्ब भी है जो सतत हमारे भौतिक एवं आध्यात्मिक विभागों के मध्य समन्वय का सेतु बनने का कार्य करता है। दीप की सतत् ज्वलित लौ, हमारी अन्तरात्मा के साथ सीधे सम्पर्क एवं साम्य स्थापित करने की अनुभूति प्रदान करती है। भारतीय धर्म-दर्शन में दीप का अपना अलग महत्व […]
आदर्श आचार-व्यवहार (दार्शनिक विचार) प्रेषक #डॉविवेकआर्य पूर्वाभिभाषी,सुमुखः,होता,यष्टा,दाता,अतिथीनां पूजकः,काले हितमितमधुररार्थवादी,वश्यात्मा,धर्मात्मा,हेतावीर्ष्यु,फलेनेर्ष्युः,निश्चिन्तः,निर्भीकः,ह्रीमान्,धीनाम्,महोत्साहः,दक्षः,क्षमावान्,धार्मिकः,आस्तिकः,मंगलाचारशीलः ।। ―(चरक० सूत्र० ८/१८) अर्थ―मनुष्य को चाहिये कि यदि अपने पास कोई मिलने के लिए आये तो उससे स्वयं ही पहले बोले। वह सदा प्रसन्नमुख, हँसता और मुस्कराता हुआ रहे। प्रतिदिन हवन और यज्ञ करने वाला हो। मनुष्य को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान देना चाहिये, […]
के.एम. त्रिपाठी हम देखते हैं कि विभिन्न देशों की यात्राओं में जब हमारे राजनेता जाते हैं, तो उनके स्वागत के लिए विश्वभूमि के बन्धु संस्कृति की परम्पराओं, धार्मिक श्लोकों व हिन्दू संस्कृति के विविध प्रतीकों, पध्दतियों,कलाओं के माध्यम से उनका सम्मान करते हैं। भारत में भले ही छुद्र राजनैतिक स्वार्थों के लिए विभिन्न धड़े सनातन […]
प्रो.लल्लन प्रसाद भारतीय जीवन दर्शन में पृथ्वी को मां की संज्ञा दी गयी है। रत्नगर्भा, वसुन्धरा ही जल, वायु, जीवन की पोषक है, पेड़, पौधे जंगल, पहाड़, फल, फूल, पशु-पक्षी, धन-धान्य की जननी है, हम सबकी मां है, कौटिल्य अर्थशास्त्र में मनुष्यों से युक्त भूमि को अर्थ कहा गया है। भूमि को प्राप्त करने और […]
आर.के.त्रिवेदी विश्व के कल्याण का भाव लेकर ही भारत में धातुकर्म विकसित हुआ था। धातुकर्म के कारण ही भारत में बड़ी संख्या में विभिन्न धातुओं के बर्तन बना करते थे जो पूरी दुनिया में निर्यात किए जाते थे। धातुकर्म विशेषकर लोहे पर भारत में काफी काम हुआ था। उस परम्परा के अवशेष आज भी देश […]