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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 14 क शासन के तीन स्तंभ और सेना

शासन के तीन स्तंभ और सेना पिछले अध्याय में हमने स्पष्ट किया था कि व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसी शासन की तीन सभाओं का सबसे पहले भारत ने ही चिंतन किया था। व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच उचित समन्वय होना तो आवश्यक है ही साथ ही देश की सेना और इन तीनों सभाओं के […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 13 ( ख ) तीन सभाओं की देन भारत की है

तीन सभाओं की देन भारत की है जब सृष्टि के प्रारंभ में अपौरुषेय वेद परमपिता परमेश्वर ने हमारे ऋषि यों को प्रदान किए तो उनमें यह व्यवस्था की गई कि राजा और उसकी सभा का परस्पर संबंध और उद्देश्य क्या होगा? वेद का संदेश है :- त्रीणि राजाना विदथे पुरूणि परि विश्वानि भूषाथः सदांसि ।। – ऋ० मं० 3। […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 13 क तीन सभाओं को देने का भारत का राजनीतिक चिंतन

सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 13 क तीन सभाओं को देने का भारत का राजनीतिक चिंतन स्वामी दयानंद जी महाराज ने सत्यार्थ प्रकाश का षष्ठम समुल्लास राजधर्म पर लिखा है। स्वामी दयानंद जी महाराज भारतवर्ष में जिस प्रकार की राजनीतिक व्यवस्था के समर्थक थे उसे उन्होंने […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 12 ख , धर्म के 10 लक्षण

धर्म के 10 लक्षण ऐसे धर्म प्रेमी महात्मा धर्म के व्यवस्थापक और संचालक होते हैं। उनकी दिव्य दृष्टि यत्र तत्र सर्वत्र धर्म की निगरानी करती रहती है। यदि कहीं धर्म का उल्लंघन हो रहा होता है तो उसे व्यवस्थित करने में वे राजा तक को जागरूक करने का कार्य करते हैं। मनु महाराज ने धर्म […]

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साहित्य का रुख समाचार की ओर होना अनुचित –

डॉ अवधेश कुमार अवध यह निर्विवाद सिद्ध है कि साहित्य समाज का दर्पण है किन्तु इससे भी इंकार नही किया जा सकता कि साहित्य समाज का पथ प्रेरक भी है। दोनों का दोनों पर असर है। इक्कीसवीं सदी की सूचना क्रांति ने इस सम्बंध को और भी प्रगाढ़ एवं त्वरित प्रभावकारी बनाया है। क्षण मात्र […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 12 क , लोक-शांति के उन्नायक संन्यासीगण

लोक-शांति के उन्नायक संन्यासीगण संसार में इतिहास, भूगोल और इसी प्रकार के अन्य शास्त्रों में कुछ विशेष ज्ञान प्राप्त करने वाले लोग भी अपने आपको ज्ञानी और श्रेष्ठ जन मानने का भ्रम पाल लेते हैं। जबकि भारत के ऋषियों की परंपरा में इस प्रकार का ज्ञान तो बहुत ही निम्न कोटि का माना जाता था। […]

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।प्रजापति(ब्रह्मा) का अपनी पुत्री से संभोग और वेद।।

– कार्तिक अय्यर विधर्मी लोग हिंदुओं पर आक्षेप करते है कि तुम्हारे वेद और पुराण में ब्रह्मा यानी प्रजापति द्वारा स्वयं की बेटी यानी सरस्वती के साथ संभोग करने की कथा विद्यमान है।हाल ही में एक ‘समीर मोहम्मद’ नामक मुल्लाजी ने यह आक्षेप किया है। आक्षेपकर्ता का कहना है के ऋग्वेद में इस मंत्र मैं […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय – 11 ख कुछ बनने के लिए बन में बसो

कुछ बनने के लिए बन में बसो हमारे ऋषियों की व्यवस्था रही है कि इस प्रकार स्नातक अर्थात् ब्रह्मचर्य्यपूर्वक गृहाश्रम का कर्त्ता द्विज अर्थात् ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य गृहाश्रम में ठहर कर निश्चितात्मा और यथावत् इन्द्रियों को जीत के वन में वसें। कुछ बनने के लिए प्रकृति के सानिध्य में अर्थात मन में बसना ही […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय – 11 क वानप्रस्थी, संन्यासी और भारतीय समाज

वानप्रस्थी, संन्यासी और भारतीय समाज भारत की प्राचीन सामाजिक व्यवस्था इतनी सुदृढ़, सुंदर और सुव्यवस्थित थी कि उसके आधार पर आज तक संसार की गाड़ी चल रही है, अर्थात समस्त संसार का सामाजिक ढांचा यदि आज भी काम कर रहा है तो समझिए कि वैदिक संस्कृति द्वारा रखी गई आधारशिला पर ही यह ढांचा खड़ा […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय – 10 ख एक महत्वपूर्ण दृष्टांत

एक महत्वपूर्ण दृष्टांत हमने अन्यत्र एक प्रसंग का उल्लेख किया है। जिसे जहां भी प्रसंग वश लिखित कर रहे हैं। सन 1200 के लगभग भारत में कन्नौज में गहरवाड़ या राठौड, दिल्ली-अजमेर में चौहान, चित्तौड़ में शिशोदिया और गुजरात में सोलंकी-ये चार राजपूत वंश शासन कर रहे थे। इन राजपूत वंशों में परस्पर बड़ी ईर्ष्या […]

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