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भारतीय संस्कृति में यज्ञोपवीत का महत्व

उगता भारत ब्यूरो जनेऊ क्या है : आपने देखा होगा कि बहुत से लोग बाएं कांधे से दाएं बाजू की ओर एक कच्चा धागा लपेटे रहते हैं। इस धागे को जनेऊ कहते हैं। जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है। जनेऊ को संस्कृत भाषा में ‘यज्ञोपवीत’ कहा जाता है। यह सूत से बना पवित्र […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय (18) राजा के मंत्री और दूत कैसे हों?

राजा के मंत्री और दूत कैसे हों? संसार के जिन- जिन देशों में आज तानाशाही है या अबसे पूर्व में तानाशाही रही है, वहां के शासकों की एक प्रवृत्ति देखी गई है कि वे अपने बौद्धिक बल पर ही अधिक विश्वास रखते हैं। जैसे चाहें जो चाहें – उसे पूरा करना उनकी प्रवृत्ति में सम्मिलित […]

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भारतीय संस्कृति और जनजाति समाज

प्रह्लाद सबनानी जनजाति समाज आज भी भारतीय संस्कृति का वाहक माना जाता है क्योंकि यह समाज सनातन हिंदू संस्कृति का पूरे अनुशासन के साथ पालन करता पाया जाता है। जनजाति समाज आज भी आधुनिक चमक दमक से अपने आप को बचाए हुए है। भारत भूमि का एक बड़ा हिस्सा वनों एवं जंगलों से आच्छादित है। […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 17( ख ) कामज दोष

कामज दोष महर्षि मनु ने काम से उत्पन्न हुए दस दोषों के बारे में हमें बताया है कि :- मृगयाक्षो दिवास्वप्नः परीवादः स्त्रियो मदः। तौर्य्यत्रिकं वृथाट्या च कामजो दशको गणः।। ( सत्यार्थ प्रकाश छठा समुल्लास) इसका हिंदी अर्थ करते हुए महर्षि हमें बताते हैं कि काम से उत्पन्न हुए व्यसनों के चलते व्यक्ति के भीतर […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 17 क देश के सभासद कैसे हों?

देश के सभासद कैसे हों? वैश्विक राजनीति में वर्त्तमान में लोकतंत्र भीड़ तंत्र होने के कारण मूर्खों का तंत्र कहा जाता है। यद्यपि आज के लोकतंत्र के बारे में यह भी सच है कि अनेक अशिक्षित, कुपढ़ और अविद्वान लोगों के एक साथ बैठ जाने या जनता के प्रतिनिधि बन जाने का अभिप्राय यह नहीं […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय ( 16 ) धर्म ही व्यवस्था का प्रतीक है

धर्म ही व्यवस्था का प्रतीक है स्वामी दयानंद जी भारत में राजा को चारित्रिक गुणों में बहुत ही उत्तम देखने के पक्षधर थे। उनकी इच्छा थी कि जिस प्रकार आर्य राजाओं के भीतर गुण हुआ करते थे वैसे ही गुण आज के राजनीतिज्ञों के भीतर भी होने चाहिए। राजा के 36 गुण महाभारत में राजा […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 15 (क) दंड, राजा और शासन व्यवस्था

दंड, राजा और शासन व्यवस्था तेजस्वी राष्ट्रवाद के निर्माण के लिए आवश्यक है कि राजा परम तेजस्वी हो। जो राजा या प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति तेजहीन होता है, वह देशविरोधी शक्तियों के समक्ष झुक जाया करता है। उसके भीतर साहस का अभाव होता है। जिसके कारण वह देशद्रोही शक्तियों का उचित समय पर शमन और दमन […]

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ओरछा के प्रसिद्ध ऐतिहासिक भवन और किले से : रानी सारंधा और ओरछा किला

  आज अपने समाचार पत्र “उगता भारत” की टीम के साथ ओरछा के प्रसिद्ध ऐतिहासिक भवन और किले को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यहां पर झांसी में रहने वाले अपने शुभचिंतक श्री मुन्ना लाल जी सेन के द्वारा इस ऐतिहासिक स्थल को दिखाने के लिए विशेष रूप से व्यवस्था की गई और हमारा प्रतिनिधिमंडल […]

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वैदिक धर्म एवं संस्कृति की रक्षा में गुरुकुलों का महत्वपूर्ण योगदान”

ओ३म् ========= ऋषि दयानन्द ने विश्व प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘सत्यार्थप्रकाश’ में प्राचीन भारत में गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति का उल्लेख कर उसके व्यापक प्रचार का मानचित्र प्रस्तुत किया था। यह गुरुकुलीय पद्धति प्राचीन भारत में सृष्टि के आरम्भ से महाभारत काल व उसके बाद भी देश व विश्व की एकमात्र शिक्षा पद्धति रही है। इसी संस्कृति में […]

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सत्यार्थ प्रकाश में इतिहास विर्मश ( एक से सातवें समुल्लास के आधार पर) अध्याय 14 ख जनप्रतिनिधियों का सम्मान

जनप्रतिनिधियों का सम्मान यहां पर वेद ने राजा के प्रशंसनीय गुणों पर चर्चा की है। प्रशंसनीय गुण, कर्म, स्वभाव तभी कहे जा सकते हैं जब कोई व्यक्ति चरित्र बल में ऊंचा होता है। यदि कोई व्यक्ति चरित्र से गिरा हुआ है तो उसे प्रशंसनीय, गुण, कर्म ,स्वभाव युक्त सत्करणीय, माननीय नहीं कहा जा सकता। आजकल […]

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