राजपुरुषों का आचरण स्वामी सत्यानंद जी महाराज ने “श्रीमद दयानंद प्रकाश” की भूमिका के अंत में लिखा है – “स्वामी जी महाराज पहले महापुरुष थे जो पश्चिमी देशों के मनुष्यों के गुरु कहलाए । … जिस युग में स्वामी जी हुए उससे कई वर्ष पहले से आज तक ऐसा एक ही पुरुष हुआ है जो […]
Category: भारतीय संस्कृति
राजा की नीति ऐसी हो महर्षि मनु प्रतिपादित संविधान अर्थात मनुस्मृति की यह व्यवस्था या इस जैसी अनेक व्यवस्थाऐं आज के संविधानों में कहीं दिखाई नहीं देती हैं। आगे भी लिखा है :- वकवच्चिन्तयेदर्थान् सिहवच्च पराक्रमेत्। वृकवच्चावलुम्पेत शशवच्च विनिष्पतेत्।। इसका अभिप्राय है कि जैसे बगुला ध्यानावस्थित होकर मछली पकड़ने को ताकता रहता है, वैसे राजा […]
राजा प्रजा के लिए योगक्षेमकारी हो जब मुसलमानों ने भारत पर आक्रमण करने आरंभ किए तो उस समय उनके पास कोई वैतनिक सेना नहीं होती थी। अधिकतर आक्रमणकारी अपने साथ ऐसे लुच्चे, लफंगे और बदमाश लोगों को अपनी सेना में भर्ती करके लाते थे जिन्हें लूट का आकर्षण दिया जाता था। उन तथाकथित सैनिकों को […]
युद्ध में भी धर्म निभाने वाला देश है भारत जब महाभारत का युद्ध आरंभ हुआ तो उससे पहले युद्ध के लिए नियम बनाए गए थे कि दोनों पक्षों के द्वारा दिन भर न्यायपूर्वक युद्ध करने के बाद संध्या काल में दोनों पक्षों के लोगों के बीच आपसी प्रेम बना रहेगा। उस समय कोई भी शत्रुता […]
युद्ध में भी धर्म निभाने का भारत का दर्शन राजनीति में पवित्रता बनाए रखने और सार्वजनिक जीवन के प्रति अपने कर्तव्य भाव को उत्कृष्टता के साथ निर्वाह करने के लिए दिव्य गुणों से युक्त जीवनसंगिनी का होना आवश्यक है। जिन जिन सम्राटों या क्रूर तानाशाहों के विरुद्ध इतिहास में क्रांति हुई हैं, उन उनकी जीवनसंगिनी […]
भारत ने अन्य देशों में हिंदू धर्म को स्थापित करने अथवा उनकी जमीन हड़पने के उद्देश्य से कभी भी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया है। परंतु, वर्ष 1947 में, लगभग 1000 वर्ष के लम्बे संघर्ष में बाद, भारत द्वारा परतंत्रता की बेढ़ियों को काटने में सफलता प्राप्त करने के पूर्व भारत की हिंदू सनातन […]
पारिवारिक व्रत एवं आचरण
पारिवारिक व्रत एवं आचरण लेखक- पं० गंगाप्रसाद उपाध्याय ओ३म् अनुव्रत: पितु: पुत्रो माता भवतु संमना:। जाया पत्ये मधुमतीं वाचं वदतु शान्तिवाम्।। -अथर्ववेद ३/३०/२ अन्वय- पुत्र: पितु: अनुव्रत: भवतु। पुत्रः माता सह संमना: भवतु। जाया पत्ये मधुमतीं शान्तिवां वाचं वदतु।। अर्थ- (पुत्र:) पुत्र (पितु:) पिता का (अनुव्रत:) अनुव्रत हो अर्थात् उसके व्रतों को पूर्ण करे। पुत्र […]
स्वामी दयानंद जी का चिंतन अपने देश के आत्म गौरव पर भी शर्म करना कोई कांग्रेसियों से सीख सकता है। जबकि अपने देश की महान विरासत पर गर्व करना स्वामी दयानंद जी से ही सीखा जा सकता है। अपने इस प्रकार के विचारों को प्रकट करते हुए उन्होंने लिखा “यह आर्यावर्त ऐसा देश है, जिसके […]
महर्षि दयानंद का स्वराज्य दर्शन स्वामी दयानंद जी महाराज संसार के समकालीन इतिहास के सबसे बड़े स्वराज्यवादी हैं। उनके स्वराज्यवाद की अवधारणा अन्य राजनीतिक मनीषियों के चिंतन से बहुत ऊंची है। संसार के अन्य स्वराजवादी चिंतक जहां केवल और केवल अपने विचारों को राजनीति तक सीमित रखते हैं, वहीं स्वामी जी महाराज ने स्वराजवाद को […]
छान्दोग्य-उपनिषद् में एक कथा आती है। भारत में महाराजा अश्वपति उस समय राज्य कर रहे थे। एक बहुत बड़ा वैश्वानर यज्ञ उनकी राजधानी में होने वाला था। पाँच महानुभाव ब्रह्मज्ञान की खोज में राजा अश्वपति के पास पहुँचे। राजा ने उन्हें कहा कि आपको भी उतना ही धन मिलेगा, जितना दूसरे ऋषियों को मिलेगा, परन्तु […]