भारत एक कृषि प्रधान देश है। प्रकृति की कृपा तथा हमारे किसानों कि आर्थिक मेहनत से हमारी भूमि सदा उपजाऊ रही है। प्राचीन समय में हमारी खेती प्राकृतिक संपदा व संसाधनों पर ही निर्भर थी और देश की खाद्यान्नों सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा कर पाती थी। जैसे-जैसे देश में शहरीकरण व औद्योगिकरण बढते गये , […]
श्रेणी: भारतीय संस्कृति
ममता बनर्जी, एक ऐसा नाम जो काँग्रेस की हर राह में रोड़ा बन कर खड़ा हो जाता है। पिछले 3 सालों में ममता ने ना जाने कितनी बार काँग्रेस के लिए मुसीबतें खड़ी की हैं। जिसके कारण काँग्रेस की स्थिति ममता के हाथों कई बार कठपुतली की तरह नाचने जैसी दिखाई देने लगती है। हालांकि […]
भारतीय संकृति का आर्थ प्राचीनकाल से चले आ रहे संस्कारों के पालन से है। संकृति शब्द का आधुनिक अर्थ प्राचीनकाल के आचार-सदाचार, मान्यताओं एंव रीति-रितीरिवाजों से भी है। एक अर्थ में मनुष्य की आधिभौतिक, आधिदैविक एंव आध्यात्मिक उन्नति के लिये की गई भारतीय परिवेश की सम्यक चेष्टाये ही संकृति हैं। भारतीय संस्कृति किसी एक वर्ण […]
यज्ञ का बहुत व्यापक अर्थ है। परमात्मा परमेश्वर को यज्ञरूप भी कहा गया है क्योंकि ईश्वर का प्रत्येक कार्य-सृष्टि का निर्माण, पालन, संहार तथा प्रत्येक जीव के कर्मानुसार फल देना सभी यज्ञ ही हैं। क्योंकि ईश्वर के कार्यों में उनका स्वयं का कोई लाभ स्वार्थ नहीं है अपितु परमपिता परमेश्वर के सभी कार्य स्पष्टï अथवा […]
शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध, भार, लंबाई, चौड़ाई, गुण, प्रकृति, के है और पदार्थों में भी आते हैं, किन्तु ये गुण ईश्वर में नहीं है। इनका आश्रय हम लोग लेंगे जो यह प्रकृति का आश्रय हो गया। इश्वर का आश्रय कैसे कहलायेगा?ईश्वर का ध्यान करने वाले साधकों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह आती है […]
वेद में परिवार में सब सदस्यों को सामान्य रूप से सहृदयता आदि का उपदेश किया गया है। वेद के माध्यम से भगवान गृहस्थ आश्रम में संतान के (पुत्र वा पुत्री) के अपने माता पिता के प्रति एवं माता पिता के अपने पुत्र (वा पुत्री) के प्रति क्या कर्तव्य हैं इस पर प्रकाश डालता है। माता […]
समूह-जीवन जीव को एक नयी चेतना देता है। इसलिए ही आदिकाल से मानव, पशु, पक्षी, आदि समूह मे रहकर जीवन जीते आये हैं। उनमें भी मानवसमूह विशिष्टï है। भगवान ने मनुष्य को बुद्घि दी है। इसलिए समूह में भी सबका कल्याण हो, सब आनंद प्राप्त कर सकें ऐसी व्यवस्था मनुष्य करने लगा। कालक्रम में इसमें […]
वैदिक ऋषियों, महर्षियों, मनीषियों द्वारा वेदों, पुराणों, धर्मशास्त्रों, काव्यग्रंथों के माध्यम से समृद्घ भारतीय चिंतन को देववाणी के रूप में हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है जो कि भारतीय संस्कृति की आधारशिला है। भारतीय संस्कृति के संदर्भ में संस्कृति: संस्कृतमाश्रिता-यह कथन पूर्णतया सार्थक है। वैदिक ऋषि ने इस संस्कृति को सबके द्वारा श्रेष्ठ प्रथम संस्कृति स्वीकार […]
किसी भी देश की संस्कृति उसकी आध्यात्मिक, वैज्ञानिक तथा कलात्मक उपलब्धियों की प्रतीक होती है। यह संस्कृति उस संपूर्ण देश के मानसिक विकास को सूचित करती है। किसी देश का सम्मान उस देश की संस्कृति पर ही निर्भर करता है। संस्कृति का रूप देश तथा काल की परिस्थितियों के अनुसार ढलता है। भारतीय संस्कृति का […]
एशिया महाद्वीप में भारतवर्ष की भागोलिक स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण है। एशिया के दक्षिण में भारतवर्ष फेेला हुआ है। प्राचीनकाल से एशिया के प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्रों से भारतवर्ष का संबंध रहा है। वस्तुत: एशिया की समृद्घि और उदय का भारतीय इतिहास से बहुत घनिष्टï संबंध रहा है। संपूर्ण एशिया के इतिहास और संस्कृति पर भारत का […]