श्रद्धानन्द जी की हत्या और गांधीजी 23 दिसम्बर 1926 को स्वामी श्रद्धानन्द जी महाराज को एक धर्मांध मुसलमान ने गोली मार दी थी । तब गांधी जी ने स्वामी श्रद्धानंद जी के हत्यारे के प्रति भी भाई जैसे सम्मानजनक शब्दों का प्रयोग किया था। गांधीजी ने अपनी मुस्लिम तुष्टीकरण की मानसिकता का परिचय देते हुए […]
Category: भारतीय क्षत्रिय धर्म और अहिंसा
अन्त में हमारा बलिदानी इतिहास ही जीता गांधी जी और उनकी कांग्रेस जहाँ ब्रिटिश राजभक्ति के लिए जानी जाती है वहीं मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए भी जानी जाती है। गांधीजी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति की आलोचना करते हुए स्वातंत्र्य वीर सावरकर ने 1937 में 30 दिसम्बर को अहमदाबाद में अखिल भारत हिन्दू महासभा के […]
गांधीजी और खिलाफत गांधीजीने ‘खिलाफत आन्दोलन’ का समर्थन कर अपनी मुस्लिम भक्ति को भी प्रकट किया था । जबकि यह सच है कि ‘खिलाफत आन्दोलन’ का भारत की स्वाधीनता से कोई लेना-देना नहीं था , परन्तु गांधी जी ने इन सब बातों को एक ओर रखकर ‘खिलाफत आन्दोलन’ में रुचि दिखाई । कुछ लोगों ने […]
इन क्रान्तिकारियों में चापेकर बन्धु , खुदीराम बोस , रासबिहारी बोस , महर्षि अरविन्द , मदनलाल धींगरा, चन्द्रशेखर आजाद , सुभाष चन्द्र बोस, लाला हरदयाल, वीर सावरकर, राम प्रसाद बिस्मिल, देवता स्वरूप भाई परमानन्द जी, श्यामजी कृष्ण वर्मा , महादेव गोविन्द रानाडे , विजय सिंह पथिक , देशबन्धु चितरंजन दास आदि हजारों नहीं लाखों क्रान्तिकारी […]
इन्द्र विद्यावाचस्पति लिखते हैं :–” जब लम्बी दासता से बंजर हुई भारत की भूमि को सशस्त्र क्रान्ति के विशाल हल ने खोदकर तैयार कर दिया और जब सुधारकों के दल ने उसमें मानसिक स्वाधीनता के बीज बो दिए , तब यह सम्भव हो गया कि उसमें से राजनीतिक स्वाधीनता के बिना सामाजिक स्वाधीनता और सामाजिक […]
1857 में चला था पहला ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ 1857 की क्रांति के इस प्रकार के विस्तृत योजनाबद्ध विवरण से पता चलता है कि उस समय भारत में पहला ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ प्रारम्भ हुआ था ।यह तभी सम्भव हुआ था जब हमारे भीतर आजादी की ललक काम कर रही थी। कुछ लोगों ने 1857 की क्रान्ति […]
1857 का ‘अंग्रेजो ! भारत छोड़ो आन्दोलन’ सर चार्ल्स ट्रेवेलियन ने सन 1853 की संसदीय समिति के सामने ‘भारत की अलग-अलग शिक्षा प्रणालियों के अलग-अलग राजनीतिक परिणाम’ – शीर्षक से एक लेख लिखकर प्रस्तुत किया था । इस लेख में उसने लिखा था कि :- “भारतीय राष्ट्र के विचारों को दूसरी ओर मोड़ने का केवल […]
महाराष्ट्र मण्डल की स्थापना 1757 में हुए पलासी के युद्ध के पश्चात किस प्रकार अंग्रेज भारत में जम गए और उन्होंने अपना साम्राज्य विस्तार करना आरम्भ किया ? – इतिहास का यह निराशाजनक तथ्य तो हमें बताया व पढ़ाया जाता है परंतु इसी समय सिंधिया , होलकर , गायकवाड और भौसले जैसे चार राजघरानों के […]
बिखरा रहा स्वराज्य का गुलाल मुगल काल में अनेकों हिन्दुओं ने अपनी आजादी की रक्षा के लिए अपने बलिदान दिए। ऐसे बलिदानों में धर्मवीर हकीकत राय का नाम भी सम्मिलित है। जिसने चोटी जनेऊ न देकर अपने प्राण दे दिए और धर्म की बलिवेदी पर सहर्ष अपना बलिदान दे दिया। संसार के अधिकतम क्रूर और […]
सजी रही बलिदानी परम्परा प्रभाकर माचवे अपनी पुस्तक ‘छत्रपति शिवाजी’ की भूमिका में लिखते हैं :- “शिवाजी के साथ समकालीन फारसी शाही इतिहासकारों ने और बाद में अंग्रेज इतिहासकारों ने भी बड़ा अन्याय किया है । कुछ लोगों ने उन्हें सिर्फ एक साहसी, लड़ाकू , लुटेरा तो औरों ने ‘पहाड़ी चूहा’ और दूसरे लोगों ने […]