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आज का चिंतन

हमें जन्मना जाति के स्थान पर ज्ञान युक्त वेदोक्त व्यवहार करना चाहिए

वैदिक धर्म के आधार ग्रन्थ वेदों में प्राचीन व सृष्टि के आरम्भ काल से जन्मना जाति का उल्लेख कहीं नहीं मिलता। हमारी आर्य हिन्दूजाति के पास बाल्मीकि रामायण एवं महाभारत नाम के दो विशाल इतिहास ग्रन्थ हैं। रामायण की रचना महर्षि बाल्मीकि जी ने लाखों वर्ष पूर्व रामचन्द्र जी के जीवन काल में की थी। […]

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आज का चिंतन धर्म-अध्यात्म

ऋषि दयानंद के सत्यार्थ प्रकाश से वेदों के सत्य स्वरूप का प्रचार हुआ

ऋषि दयानन्द के आगमन से पूर्व विश्व में लोगों को वेदों तथा ईश्वर सहित आत्मा एवं प्रकृति के सत्यस्वरूप का स्पष्ट ज्ञान विदित नहीं था। वेदों, उपनिषद एवं दर्शन आदि ग्रन्थों से वेदों एवं ईश्वर का कुछ कुछ सत्यस्वरूप विदित होता था परन्तु इन ग्रन्थों के संस्कृत में होने और संस्कृत का अध्ययन-अध्यापन उचित रीति […]

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सरस्वती पूजा का वैदिक पक्ष क्या है ?

(दार्शनिक विचार) #डॉ_विवेक_आर्य देश भर में हिन्दू समाज “सरस्वती पूजन” के अवसर पर सरस्वती देवी की पूजा करता हैं। सरस्वती पूजा का वैदिक पक्ष इस अवसर पर पाठकों के स्वाध्याय हेतु प्रस्तुत है। विद्यालयों में सरस्वती गान किया जाता है। सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में सरस्वती की परिभाषा करते हुए स्वामी दयानंद लिखते है […]

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हमारी यह सृष्टि किसने कब और क्यों बनाई है?

ओ३म् ============ मनुष्य जब संसार में आता हैं और उसकी आंखे खुलती हैं तो वह अपने सामने सूर्य के प्रकाश, सृष्टि तथा अपने माता, पिता आदि संबंधियों को देखता है। बालक अबोध होता है अतः वह इस सृष्टि के रहस्यों को समझ नहीं पाता। धीरे धीरे उसके शरीर, बुद्धि व ज्ञान का विकास होता है […]

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ईश्वर और प्रकृति

#डॉ_विवेक_आर्य एक मित्र ने पूछा कि ईश्वर सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सर्वव्यापक है तो वह अपनी शक्ति से प्रकृति को क्यों नहीं बना सकता? ईश्वर को सृष्टि की रचना के लिए प्रकृति की क्या आवश्यकता है? इस विचार का पोषण मूल रूप से सेमेटिक मत जैसे इस्लाम और ईसाइयत करते है। उनकी मान्यता है कि पूर्व […]

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आदर्श आचार व्यवहार

(दार्शनिक विचार) प्रेषक #डॉ_विवेक_आर्य *पूर्वाभिभाषी,सुमुखः,होता,यष्टा,दाता,अतिथीनां पूजकः,काले हितमितमधुररार्थवादी,वश्यात्मा,धर्मात्मा,हेतावीर्ष्यु,फलेनेर्ष्युः,निश्चिन्तः,निर्भीकः,ह्रीमान्,धीनाम्,महोत्साहः,दक्षः,क्षमावान्,धार्मिकः,आस्तिकः,मंगलाचारशीलः ।।* ―(चरक० सूत्र० ८/१८) *अर्थ*―मनुष्य को चाहिये कि यदि अपने पास कोई मिलने के लिए आये तो उससे स्वयं ही पहले बोले। वह सदा प्रसन्नमुख, हँसता और मुस्कराता हुआ रहे। प्रतिदिन हवन और यज्ञ करने वाला हो। मनुष्य को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान देना चाहिये, अतिथियों का […]

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ईश्वर के सत्य स्वरूप को जानकर उपासना करना ही उचित है

ओ३म् ========= बहुत से मनुष्य ईश्वर को मानते हैं, उसमें श्रद्धा व आस्था भी रखते हैं परन्तु ईश्वर के सत्य स्वरूप को जानते नहीं है। इस कारण से वह ईश्वर की सच्ची उपासना को प्राप्त नहीं हो पाते। हम किसी भी वस्तु से तभी लाभ उठा सकते हैं कि जब हमें उस वस्तु के सत्य […]

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ईश्वर का न्यायकारी स्वरूप जो हम सबका कल्याण करता है

आपके व आपके परिवार के प्रति अति शुभ कामनाओं के साथ सुप्रभातम। ईश्वर न्याय कारी है क्योंकि ईश्वर न्याय करता है । वह हमारे प्रत्येक किए गए कर्म का फल कर्म के अनुसार देता है । इसलिए हम पूरे जीवन कर्म फल से बंधे हैं प्रत्येक चीज जो हम अपने जीवन में प्राप्त करते हैं […]

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रहिमन पीछे क्या रहा गही पकड़ी जब मूल

रहीम दास का कितना सुंदर दोहा है। सब आए इस एक में डाल पात फल फूल। रहिमन पीछे क्या रहा गहि पकड़ी जब मूल।। यदि कोई व्यक्ति किसी वृक्ष के शाखा,डाल , पात, फल और फूल को अलग-अलग पानी देता हो तो उसका ऐसा प्रयास निरर्थक और निष प्रयोज्य है। क्योंकि उसको पेड़ की जड़ […]

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स्वाध्याय करने से अज्ञान का नाश और ज्ञान की वृद्धि होती है

ओ३म् ============ मनुष्य को परमात्मा ने बुद्धि दी है जो ज्ञान प्राप्ति में सहायक है व ज्ञान को प्राप्त होकर आत्मा को सत्यासत्य का विवेक कराने में भी सहायक होती है। ज्ञान प्राप्ति के अनेक साधन है जिसमें प्रमुख माता, पिता सहित आचार्यों के श्रीमुख से ज्ञान प्राप्त करना होता है। ज्ञान प्राप्ति में भाषा […]

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