एक गुरु के दो शिष्य थे। दोनों लम्बे समय से गुरु के निर्देशन में साधना करते आ रहे थे। एक बार दोनों ने अपने गुरु से दीक्षा देकर सन्यासी बनाने का आग्रह किया। गुरु ने कहा उचित ठीक है आप दोनों को कल दीक्षा देंगे। आप दोनों कल नदी पर स्नान कर नवीन वस्त्र धारण […]
Category: आज का चिंतन
ओ३म हम इस ब्रह्माण्ड के असंख्य व अनन्त गृहों में से एक पृथिवी नामी ग्रह पर रहते हैं। इस ब्रह्माण्ड को सच्चिदानन्दस्वरूप, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, अनादि, नित्य तथा सृष्टिकर्ता परमेश्वर ने बनाया है और वही इसका संचालन वा पालन कर रहा है। ईश्वर के समान व उससे बड़ी उस जैसी कोई सत्ता नहीं है। उसका […]
क्या रावण भी आर्य था ?
डॉ. विवेक आर्य पंजाब में स्वयं को वाल्मीकि कहने वाले कुछ लोगों ने रावण की पूजा करना आरम्भ किया है। ये लोग अपने आपको अब द्रविड़ और अनार्य कहना पसंद करते है। इन्होंने अपने नाम के आगे दैत्य, दानव, अछूत और राक्षस जैसे उपनाम भी लगाना आरम्भ किया हैं। ये लोग स्वयं को हिन्दू नहीं […]
डॉ. जितेंद्र बजाज यह प्रश्न करना कि अपनी प्राचीन ज्ञान परंपरा पर हमें क्यों चर्चा करनी चाहिए, स्वयं में एक विलक्षण प्रश्न है। दुनिया में किसी भी देश में इस प्रकार का प्रश्न नहीं पूछा जाता। यूरोप में यदि आप किसी से पूछें कि ग्रीक और लैटिन पढऩा क्यों आवश्यक है, तो वह आप पर […]
दिनेश चमोला ‘शैलेश’ जीवन के विकास तथा व्यक्तित्व के निर्माण में परिवेश एवं सामाजिक स्थितियों की महती भूमिका होती है। जिस परिवेश में मनुष्य बचपन से जीवनयापन करता चलता है, संस्कारों से, उस उर्वरा भूमि से ही वह जहां कुछ न कुछ सीखता है, वहीं सक्षम होने पर कुछ न कुछ नैसर्गिक रूप से उसे […]
“यह संसार है। यहां जो बीज बोया जाता है, उसी का फल मिलता है। ईश्वर की कर्मफल व्यवस्था अटल है। कोई भी व्यक्ति उसे भंग नहीं कर सकता।” कभी कभी आपको ऐसा लगता होगा, कि यहां संसार में तो न्याय दिखता नहीं। “जो लोग झूठे चोर बेईमान दुष्ट स्वभाव के हैं, वे तो मौज मस्ती […]
ओ३म् मनुष्य मननशील प्राणी है। वह सभी विषयों पर विचार करता है और उन पर अपनी स्वतन्त्र सम्मति वा राय रखता है। वह अपने समान विचारों वाले लोगों को पसन्द करता है। परस्पर विरोधी विचारधारा वाले लोग एक-दूसरे को पसन्द नहीं करते व इस प्रकार सहयोग नहीं करते जैसे कि समान विचारधारा के लोग आपस […]
ओ३म् ========= मनुष्य की आत्मा अनादि, नित्य, अजर, अमर, सूक्ष्म, ससीम, जन्म-मरणधर्मा, कर्म के बन्धनो में बंधी हुई, वेद ज्ञान प्राप्त कर उसके अनुसार कर्म करते हुए मोक्ष को प्राप्त होने वाली एक चेतन सत्ता है। चेतन सत्ता में ज्ञान एवं प्रयत्न गुण होता है। जीवात्मा एकदेशी होने से अल्पज्ञ होता है। इसको सुख व […]
क्या है सनातन शब्द की व्याख्या ?
पंडित गंगा प्रसाद उपाध्याय ‘सनातन’ शब्द का अर्थ है ‘सदा एक सा रहने वाला’। इसीलिये ईश्वर को भी ‘सनातन’ कहते हैं। सनातन धर्म का अर्थ है वह धर्म या नियम जो कभी बदलें नहीं, सदा एक से रहे। अथर्ववेद में ‘सनातन’ शब्द का यह अर्थ किया गया है :- “सनातनमेनमाहुरताद्य स्यात् पुनर्गवः। अहो रात्रे प्रजायते […]
वेदों में राष्ट्रवाद*
वेदों में राष्ट्रवाद मा नः स्तेन ईशतः | (यजुर्वेद १/१) भ्रष्ट व चोर लोग हम पर शासन न करें | वयं तुभ्यं बलिहृतः स्याम | (अथर्व० १२.१.६२) हम सब मातृभूमि के लिए बलिदान देने वाले हों । यतेमहि स्वराज्ये । (ऋ० ५.६६.६) हम स्वराज्य के लिए सदा यत्न करें । धन्वना सर्वाः प्रदिशो जयेम | […]