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वेदों में विश्वकर्मा परमात्मा एवं ऐतिहासिक शिल्पी विश्वकर्मा

(विश्वकर्मा दिवस के शुभ अवसर पर प्रकाशित) परमपिता परमात्मा की कल्याणी वाणी वेद के “विश्वकर्म्मा” शब्द से ईश्वर,सूर्य, वायु, अग्नि का ग्रहण होता है। प्रचलित ऐतिहासिक महापुरुष शिल्पशास्त्र के ज्ञाता विश्वकर्मा एवं वेदों के विश्वकर्मा भिन्न हैं। इस लेख के माध्यम से दोनों में अंतर को स्पष्ट किया जायेगा। निरूक्तकार महर्षि यास्क विश्वकर्मा शब्द का […]

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श्री कृष्ण के गीता उपदेश का महत्वपूर्ण संदेश

कप का दूध ख़त्म होने लगा तो हमने आदत के मुताबिक कप को हिलाकर तली में बचे चीनी के दानों को मिला लेने की कोशिश की थी। इसके वाबजूद जब कप खाली हुआ तो हमने देखा नीचे कुछ दाने अब भी पूरी तरह घुले बिना, बचे रह गए हैं। कोई बड़ी बात नहीं थी। हमने […]

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ऋग्वेद पारायण यज्ञ, भजन एवं सत्संग का आयोजन- ‘मनुष्य को सच्चिदानन्दस्वरूप ईश्वर की उपासना करनी चाहियेः शैलेशमुनि सत्यार्थी

ओ३म्’ वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी प्रत्येक वर्ष सितम्बर महीने में अपने निवास पर वेद पारायण यज्ञ का आयोजन करते हैं। इस वर्ष उन्होंने 8 सितम्बर से 11 सितम्बर 2021 तक ऋग्वेद पारायण यज्ञ का आयोजन किया है। वार्तालाप में उन्होंने हमें बताया कि वह ऋग्वेद के सात […]

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स्वराज्य की प्राप्ति हेतु यतन के बारे में क्या कहते हैं वेद और सत्यार्थ प्रकाश

स्वराज्यार्थ यत्न आ य्द्वामीयचक्षसा मित्र वयं च सूरयः | व्यचिष्ठे बहुपाय्ये यतेमहि स्वराज्ये || ( ऋग्वेद ५-६६-६ ) शब्दार्थ — हे ईयक्षसा = प्राप्तव्य ज्ञानवाले , मित्रा = प्रीतियुक्त स्त्री-पुरुषों ! , वाम् = आप दोनों के , सूरयः = विद्वान् , च = और , वयम् = हम मिलकर , व्यचिष्ठे = अति विशाल […]

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“ईश्वर सृष्टि की रचना व संचालन क्यों व किसके लिए करता है?”

ओ३म मनुष्य, आस्तिक हो या नास्तिक, बचपन से ही उसके मन में सृष्टि व इसके विशाल भव्य स्वरूप को देखकर अनेक प्रश्न व शंकायें होती हैं। एक प्रश्न यह होता है कि इस सृष्टि का रचयिता कौन है और उसने किस उद्देश्य से इसकी रचना की है? इसका उत्तर या तो मिलता नहीं है और […]

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प्रार्थना – क्या सही क्या गलत

प्रार्थना – क्या सही क्या गलत ऐसी प्रार्थना कभी न करनी चाहिये और न परमेश्वर उस को स्वीकार करता है कि जैसे हे परमेश्वर! आप मेरे शत्रुओं का नाश, मुझ को सब से बड़ा, मेरी ही प्रतिष्ठा और मेरे आधीन सब हो जायँ इत्यादि, क्योंकि जब दोनों शत्रु एक दूसरे के नाश के लिए प्रार्थना […]

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तैंतीस कोटि देव और उनका वैदिक वैज्ञानिक स्वरूप

भारतवर्ष में देवों का वर्णन बहुत रोचक है | देवों की संख्या तैंतीस करोड़ बतायी जाती है और इसमें नदी , पेड़ , पर्वत , पशु और पक्षी भी सम्मिलित कर लिये गये है | ऐसी स्तिथि में यह बहुत आवश्यक है कि शास्त्रों के वचन समझे जाएँ और वेदों की वास्तविक शिक्षाएँ ही जीवन […]

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–आर्य धामावाला, देहरादून का रविवारीय सत्सग– “उपासक समाधि से प्राप्त सुख को पाकर फूला नहीं समाताः शैलेशमुनि सत्यार्थी”

ओ३म् ============= आज रविवार दिनांक 5-9-2021 को हम आर्यसमाज धामावाला, देहरादून के रविवारीय सत्संग में सम्मिलित हुए। हमने समाज में सम्पन्न अग्निहोत्र में भाग लिया। आर्यसमाज के प्रधान श्री सुधीर गुलाटी जी यजमान के आसन पर उपस्थित होकर यज्ञाग्नि में साकल्य से आहुतियां दे रहे थे। यज्ञ आर्यसमाज के विद्वान पुरोहित श्री विद्यापति शास्त्री जी […]

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शिक्षा और शिक्षक को लेकर जरूरत है एक बड़ी क्रांति की

ललित गर्ग  शिक्षक दिवस एक अवसर है जब हम धुंधली होती शिक्षक की आदर्श परम्परा एवं शिक्षा को परिष्कृत करने और जिम्मेदार व्यक्तियों का निर्माण करने की दिशा में नयी शिक्षा नीति के अन्तर्गत ठोस कार्य करें। लेकिन इसके लिए ‘सबके प्रयास’ की जरूरत है। गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र […]

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लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पण से ही मिल सकती है मंजिल

डॉ. दिनेश चंद्र सिंह  जो व्यक्ति जिस क्षेत्र में उन्नति की पराकाष्ठा की मंजिल को प्राप्त करने का संकल्प धारण करते हैं, उन्हें उसी प्रक्रिया से कठिन, दुर्गम, अगम्य एवं असाध्य कष्ट की कंकड़ीली व अत्यंत परिश्रमपूर्ण, स्वलक्ष्य केंद्रित उपलब्धि के लिए संकल्प से सिद्धि की साधना करनी पड़ती है। भारतीय संस्कृति कर्म प्रधान रही […]

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