कार्तिक अय्यर गुजरात सरकार ने वर्षा की कामना हेतु वृष्टि यज्ञ करवाने का निर्णय किया है। हम उनके निर्णय का स्वागत करते है बनिस्पत यज्ञ पूर्ण वैदिक रीति से होना चाहिए। अपनी आदत के मुताबिक कुछ अंबेडकरवादी अग्निहोत्र आदि यज्ञों को पाखंड कह कर उपहास कर रहे हैं। परंतु इन्हें यह तक नहीं मालूम कि […]
Category: आज का चिंतन
वर्षा ऋतु और वेद
डॉ. विवेक आर्य वर्षा ऋतु का आगमन हो गया है। भीष्म गर्मी के पश्चात वर्षा का जल जब तपती धरती पर गिरता है। तो गर्मी से न केवल राहत मिलती है। अपितु चारों ओर जीवन में नवीनता एवं वृद्धि का समागम होता हैं। वेदों में वर्षा ऋतु से सम्बंधित अनेक सूक्त हैं। जैसे पर्जन्य सूक्त […]
ओ३म् ========= अध्यात्म पथ मासिक पत्रिका द्वारा ऑनलाइन जूम पर अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त आर्य विद्वान आचार्य चन्द्रशेखर शास्त्री के संयोजन व संचालन में आयोजित चतुर्दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय वेद सम्मेलन का आयोजन किया गया। ’पतंजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार’ के प्रति-उपकुलपति मुख्यवक्ता प्रो0 डा0 महावीर अग्रवाल जी ने कहा कि वेदों में राष्ट्रोन्नति का चिन्तन वेदों के दीवाने ऋषिवर […]
प्रज्ञा पाण्डेय योग चित्त को शांत कर, संयम, अनुशासन और दृढ़ता के मूल्यों पर जोर देता है। जब समुदायों और समाजों पर लागू किया जाता है, तो योग स्थायी जीवन का मार्ग प्रदान करता है। अपनी इन विशेषताओं के कारण कोरोना महामारी में भी आम लोगों के लिए योग मददगार रहा। आज अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस […]
*वेद, उपनिषद्, ब्राह्मण ग्रंथ, महाभारत गीता, योगदर्शन, मनुस्मृति में एक “ओंकार का ही स्मरण और जप” करने का उपदेश दिया गया है।* वेदाध्ययन में मन्त्रों के आदि तथा अन्त में ओ३म् शब्द का प्रयोग किया जाता है। यजुर्वेद में कहा है- *ओ३म् क्रतो स्मर ।।-(यजु० ४०/१५)* “हे कर्मशील ! ‘ओ३म् का स्मरण कर।” यजुर्वेद के […]
हम बड़ी नम्रतापूर्वक इन धर्माचार्यों से पूछना चाहते हैं कि ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद इन चारों संहिताओं में कहीं एक भी मन्त्र या मन्त्रांश ऐसा दिखा दीजिए जो महिलाओं और शूद्रों के वेदाध्ययन का निषेध करता हो?? महिला या पुरुष नहीं अपितु मानवमात्र को वेदाध्ययन का अधिकार है। मध्यकाल में जब बहुत प्रकार के […]
योग का मूल भी वेद ही है
डॉ. विवेक आर्य (कॉनरेड एल्स्ट (Konared Elst )महोदय योगरूपी वृक्ष के पत्ते ही गिनते रह गए। उसकी जड़ जो वेदों तक जाती हैं, उसे पहचान ही नहीं पाए।) सृष्टि के आदिकाल से मनुष्य वेदोक्त योगविधि से ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करता आया है। स्वामी दयानन्द ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करते हुए […]
लेखक : डॉ० रामप्रकाश [पूर्व प्रोफेसर रसायनविज्ञान, पंजाब विवि; पूर्व प्रो० वाइस चांसलर, कुरुक्षेत्र विवि; यूनेस्को फैलो (१९७१-७२) फुल ब्राइट स्कालर (१९८९); पूर्व विज्ञान व तकनीकी मंत्री, हरयाणा] “उत्तम पदार्थों को खाने की अपेक्षा अग्नि में जलाकर नष्ट कर देना उचित नहीं।” महर्षि दयानन्द ने इस शंका का समाधान करते हुए लिखा है, ‘जो तुम […]
उगता भारत ब्यूरो इस विषय में जितना भी लिखा जाए थोड़ा है तथापि हम संक्षेप मेँ ठोस सामग्री देने का प्रयास करेगेँ। आधुनिक भारत के एक प्रसिद्ध इतिहासकार श्री ईश्वरीप्रसाद ने ‘सरस्वती’ मासिक के सन् 1929 के एक अंक मेँ अपने एक पठनीय लेख मेँ लिखा था- “हिन्दूसमाज मेँ स्वामीजी ने हलचल मचा दी। अदम्य […]
ईश्वर का स्वरूप
ईश्वर के स्वरूप को लेखनीबद्ध करना सागर से जल को खाली करने के तुल्य है। मनुष्य ईश्वर की अनुभूति तो कर सकता है लेकिन उसके समस्त गुणों को लेखनीबद्ध करना मनुष्य के सामर्थ्य से बाहर है। ईश्वर अनन्त गुणोंवाला है। हम लेखनी के माध्यम से उसके स्वरूप के कुछ भाग का ही वर्णन कर सकते […]