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आज का चिंतन

भारतवासियों का पराभव और महर्षि दयानंद सरस्वती जी महाराज

भारतीयों का पराभव महर्षि दयानंद सरस्वती जी की दृष्टि में भारतीयों का राजनीतिक पराभव और उसके प्रमुख कारक जब भी किसी देश, जाति या समाज का पराभव होता है, वह एक सुखद अवसर नहीं होता। भारतीय इतिहास में अनेक ऐसे अवसर आये हैं, जब हमने अपने को पराजित, पददलित और शोषित अनुभव किया है। इस […]

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परमात्मा की अपार महिमा व उसकी अदभुत सृष्टि-*

………… येन द्योरुग्रा पृथ्वी च दृढा येन स्व स्तभितं येन नाकः। यो अन्तरिक्षे रजसो विमान: कस्मै देवाय हविषा विधेम।। यजुर्वेद 32.6 के इस मंत्र में परमात्मा ने उपदेश किया है कि वह ही सब लोकलोकान्तरों का रचने वाला है, वह ही सब ग्रह नक्षत्रों का भ्रमण कराता है। वह ही सबसे महान है। वह ही […]

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आनंदमय लोक को पाने के लिए हमें सच्चे गुरु की आवश्यकता होती है

ऋषिराज नागर (वरिष्ठ अधिवक्ता) मनुष्य की आयु जन्म लेने के उपरान्त क्षण-क्षण/पल-पल कम होती जा रही है। मनुष्य के जन्म लेने के बाद4 बचपन का समय बिना सोचे समझे ही गुजर जाता है, उसके बाद हम विद्या अर्जन ( पठन-पाठन) में अपनी आयु के करीब 20-25 वर्ष निकाल देते हैं। तदुपरान्त यौवन में अपनी घर- […]

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ऋषि दयानंद कृत कुछ शब्दों की परिभाषा

आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने आर्योद्देश्यरत्नमाला नामक एक छोटी सी पुस्तक लिखी है। इस लघु ग्रंथ में महत्वपूर्ण व्यावहारिक शब्दों (आर्यों के मंतव्यों) की परिभाषाएं प्रस्तुत की गई है जो वेदादि शास्त्रों पर आधारित हैं। इसमें 100 मंतव्यों (नियमों) का संग्रह है अर्थात सौ नियमों रूपी रत्नों की माला गूंथी गई […]

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सत्य घटना : कर्मफल सिद्धांत के प्रमाण

वैदक धर्म का मुख्य आधार कर्मफल का नियम है इसका तात्पर्य है की मनुष्य जैसा भी अच्छा या बुरा कर्म करता है एक न एक दिन उसका परिणाम अवश्य मिलता है , हरेक कर्म की तीन गतियां होती हैं क्रियमाण यानि जब हम कार्य करते हैं उनमे कुछ का तुरंत परिणाम मिल जाता लेकिन कुछ […]

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खरमास के बारे में कुछ जरूरी तथ्य

डा. राधे श्याम द्विवेदी वैदिक पंचांग के अनुसार एक साल में 12 संक्रांति होती हैं। सूर्य जब भी एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो वह क्षण संक्रांति के नाम से जाना जाता है। वहीं सूर्यदेव जिस भी राशि में प्रवेश करते हैं, उसी राशि का नाम संक्रांति के साथ जुड़ […]

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आर्ष किसे कहते हैं ?

आर्य शब्द ऋ (गतौ) धातु से तथा अर्य शब्द से तद्धित में बनता है। गति से क्रियाशील अर्थ आर्य का सिद्ध होता है। यह क्रियाशीलता और कर्म शीलता का प्रतीक है। इसमें नैरंतर्य है, सतत साधना है, प्रगति और उन्नति की ऊंचाई की ओर बढ़ने का शिव संकल्प है। इसीलिए कहा जाता है कि गतेस्त्रयोऽर्थाः […]

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दिव्यांगता शारीरिक और मानसिक होने से ज्यादा हमारी सोच में है

हरीश कुमार पुंछ, जम्मू हर वर्ष 3 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दिव्यांग व्यक्तियों का दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी। इसकी शुरुआत 1992 मे संयुक्त राष्ट्रीय संघ द्वारा की गई थी। यह दिवस दिव्यांगों के प्रति करुणा, आत्मसम्मान और उनके जीवन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से मनाया जाता है। इसका एक और उद्देश्य […]

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पौराणिक मान्यताएं और महिषासुर का सच

गंगा आख्यान : डॉ डी के गर्ग : पौराणिक मान्यताये: गंगा का उदगम और इसके आध्यात्मिक और भौतिक स्वरूप का वर्णन ऋषियों ने,कवियों ने और कथाकारों ने अलग अलग रूप से किया है,इस विषय में एक नहीं अनेको कहानिया प्रचलित है , गंगा शब्द का प्रयोग वेदों में भी किया गया है। जिनको वास्तविक रूप […]

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*🌷ईश्वर का आश्रय ही सबसे बड़ा आश्रय🌷*

ओ३म् 🌷 ईश्वर कहता है― *अहमिन्द्रो न परा जिग्य इद्धनं न मृत्यवेऽव तस्थे कदा चन । सोममिन्मा सुन्वतो याचता वसु न मे पूरवः सख्ये रिषाथन ।। ―(ऋ० १०/४८/५) भावार्थ―मैं परमैश्वर्यवान् सूर्य के सदृश सब जगत् का प्रकाश हूँ। कभी पराजय को प्राप्त नहीं होता और न कभी मृत्यु को प्राप्त होता हूँ।मैं ही जगद्रूप धन […]

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