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आज का चिंतन

शिव आख्यान* भाग 10

शिव आख्यान डॉ डी के गर्ग भाग- 10 अंतिम ये लेख दस भाग में है , पूरे विषय को सामने लाने का प्रयास किया है। आप अपनी प्रतिक्रिया दे और और अपने विचार से भी अवगत कराये शिवरात्रि /महाशिवरात्रि महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है? पौराणिक मान्यता: फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाया जाता है कहते […]

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न्याय दर्शन के अनुसार किससे करनी चाहिए वार्ता?

न्यायदर्शन में चार प्रकार के प्रमाण दिए हुए हैं प्रत्यक्ष ,अनुमान उपमान, शब्द प्रमाण। वेद सृष्टि का शब्द प्रमाण है। विश्व का ज्ञान कराने वाला शब्द रूप ब्रह्म वेद ही है। वेद सृष्टि का संविधान एवं नियमावली है ।वेद ईश्वर की वाणी है। वेद ईश्वर की वाणी होने के कारण‌ भ्रांति विहीन, शुद्ध बुद्ध एवं […]

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शिव आख्यान* भाग 9

शिव आख्यान डॉ डी के गर्ग भाग- 9 ये लेख दस भाग में है , पूरे विषय को सामने लाने का प्रयास किया है। आप अपनी प्रतिक्रिया दे और और अपने विचार से भी अवगत कराये क्या शिव की सवारी बैल है ? ये बात केवल हिमालय के राजा शिव के विषय में कहीं जा […]

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वेद ,वृक्ष और पक्षी*

वेद ,वृक्ष और पक्षी आर्य सागर खारी🖋️ वेद ज्ञान विज्ञान के आदि स्रोत है। मंत्र दृष्टि से सबसे विशाल वेद ‘ऋग्वेद’ के अनेक सूक्त मंत्रों में वनस्पति वृक्ष पक्षी पर्यावरण संरक्षण की शिक्षाएं भरी पड़ी है। वैदिक संस्कृति का आधार ही वेद है। वेदों के संपूर्ण मंत्रों की शिक्षा को मनुष्य को करने योग्य कार्य […]

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शिव आख्यान* भाग 8

शिव आख्यान भाग 8 Dr DK Garg कृपया अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे, इससे उत्साह बढ़ता है,और आवश्यक संशोधन करने में मदद मिलती हैं और शेयर भी करे, बर्फानी बाबा उर्फ शिव बाबा पौराणिक मान्यता : भारत के कश्मीर राज्य में अमरनाथ गुफा प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यहाँ की प्रमुख विशेषता गुफा में […]

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शिव आख्यान* भाग 7

डॉ डी के गर्ग भाग- 7 ये लेख दस भाग में है , पूरे विषय को सामने लाने का प्रयास किया है। आप अपनी प्रतिक्रिया दे और और अपने विचार से भी अवगत कराये भस्मासुर कथा वास्तविक कथा समझने से पूर्व काल्पनिक कथा पर विचार करते है। ” एक समय महाराजा भस्मासुर को इच्छा जागृत […]

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धर्म के नाम पर ठगी का धंधा

(हमारे देश में साधुओं के नाम पर मुफ्तखोरों की फौज बढ़ती जाती है। स्वामी दयानन्द इन मुफ्तखोरों के प्रबल विरोधी थे। स्वामी जी चाहते थे की गृहस्थ आदि इन सन्यासी के वस्त्र धारण करने वाले ठगों से बचे। सत्यार्थ प्रकाश के 11 समुल्लास में इनकी ठगी की पोल स्वामी जी एक कहानी के माध्यम से […]

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वैशेषिक और उनके प्रणेता गौतम तथा कणाद

सांख्य की भाँति न्याय और वैशेषिक दर्शनों की भी परम्पराएँ बौद्धकाल से पहले ही विकसित हो चुकी थीं। इस बात के प्रचुर प्रमाण मिलते हैं। पूर्वोल्लिखित ‘वाकोवाक्य’ एवं ‘आन्वीक्षिकी’ इस बात के साक्ष्य हैं। इन दर्शनों का प्रादुर्भाव तत्त्व की खोज में उठनेवाले तर्क-वितर्क के फलस्वरूप हुआ। साथ ही विरोधी पक्षों द्वारा प्रस्तुत युक्तियों तथा […]

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पूर्व और उत्तर मीमांसा तथा उनके प्रणेता जैमिनि और बादरायण व्यास

षड्दर्शनों में, अन्तिम दो को ‘मीमांसा’ के नाम से पुकारा गया है। इसका अभिप्राय केवल यही है कि इनका प्रादुर्भाव मूलतः वेदार्थ- विचार एवं धर्मतत्त्व-विवेचन के हेतु ही हुआ था । ‘पूर्व मीमांसा’ के उद्गाता जैमिनि और ‘उत्तर मीमांसा’ के महर्षि बादरायण व्यास माने गए हैं। ये दोनों महापुरुष कदाचित् समकालीन ही रहे होंगे। कारण, […]

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बिखरे मोती : मन की व्याकुलता के संदर्भ में-

मन की व्याकुलता के संदर्भ में- माया संचय में लगा, मनवा रहे अधीर । संचय कर हरि ओ३म का, आ रहेया वक्त आखीर॥2175॥ अध्यात्म अर्थात आत्मा के स्वभाव में जीना ही मन की शांति का स्रोत है:- जो शान्ति अध्यात्म में , नहीं माया के पास। मत भटकै संसार में, कुंजी तेरे पास॥2170॥ छल कपट […]

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