प्रस्तुति Dr DK Garg वेदों /हिंदू धर्म ग्रंथ और गोमांस | शास्त्रों में गोमांस भक्षण प्रश्न: क्या वेदों में गोमांस भक्षण की आज्ञा है? एक दिन मेरी बातचीत दिल्ली के एक सुप्रसिद्ध समाजसेवी से हो रही थी,बात बात में उसने बताया कि वह वेद को धर्मग्रंथ स्वीकार नहीं करता क्योंकि वेद में गौ मांस खाने […]
Category: आज का चिंतन
गायत्री महामंत्र वेदों का एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है,जिसकी महत्ता ओ३म् के लगभग बराबर मानी जाती है।यह यजुर्वेद के मंत्र ओ३म् भूर्भुवः स्वः और ऋग्वेद के छंद ३-६२-१० के मेल से बना है।इस मंत्र में सविता देव की उपासना है इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है। इसे गुरु-मन्त्र भी कहा जाता है,क्योंकि सर्वप्रथम गुरु ही […]
शूद्र ब्रह्मा के पैरो से उत्पन हुए*
भारतीय संस्कृति एवं धर्मग्रंथो के प्रति दुष्प्रचार भाग-१ डॉ डी के गर्ग दुष्प्रचार 1 शूद्र ब्रह्मा के पैरो से उत्पन हुए उत्तर: उपरोक्त कथन का प्रयोग भारत में और विदेशी लोग आपस में फुट डालने के लिए प्रयोग करते है ताकि भारतीय समाज को अलग अलग गुटों में बाँट दे ,इसका लाभ विदेशी ताकतें ,कुछ […]
प्रियांशु सेठ यह कहना तो नितान्त उचित है कि ऋषि दयानन्द की वैचारिक क्रान्ति ने न केवल किसी मत अथवा व्यक्ति विशेष को कल्याण का मार्ग दिखाया अपितु सारे मनुष्य समाज को मानवता के एकसूत्र में भी बांधने का प्रयत्न किया। महर्षि के विचार-शक्ति में इतना सामर्थ्य था कि उसके प्रभाव से अन्य मत वाले […]
ईश्वर एवं जीव( अर्थात आत्मा या जीवात्मा) यह दोनों चेतन हैं। प्रकृति जड़ है। ईश्वर से जीव पृथक है। प्रकृति नाशवान नहीं, जगत नाशवान है। ईश्वर और जीव दोनों से प्रकृति पृथक है। तीनों अनादि, अजर, अमर है। तीनों की सत्ताएं अलग अलग हैं। सृष्टि का निर्माण ईश्वर जीव के लिए प्रकृति के तीन तत्वों […]
ग्रेनो। आज पूर्णिमा और चंद्र ग्रहण के पावन अवसर पर पाक्षिक यज्ञ महर्षि दयानंद वाटिका में संपन्न किया गया। इस अवसर पर सत्य सनातन संस्कृति रक्षा समिति के संरक्षक श्री देवेंद्र सिंह आर्य ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जिस प्रकार ईश्वर जीव और प्रकृति तीनों अनादि हैं उसी प्रकार दिशा, काल और […]
ईश्वर के गुण
🌻(1) अजन्मा:- ईश्वर को वेद में अजन्मा कहा गया है।यथा ऋग्वेद में कहा है कि- अजो न क्षां दाधारं पृथिवीं तस्तम्भ द्यां मन्त्रेभिः सत्यैः । अर्थात् ‘वह अजन्मा परमेश्वर अपने अबाधित विचारों से समस्त पृथिवी आदि को धारण करता है।’ इसी प्रकार यजुर्वेद में कहा है कि ईश्वर कभी भी नस-नाड़ियों के बन्धन में नहीं […]
ऋषि राज नागर (एडवोकेट) परमपिता परमेश्वर का मनन मनोयोग से करना चाहिए। मनोयोग से किए गए सुमिरन का लाभ मिलता है। जो मनुष्य मन से, एकाग्रता से प्रभु का जाप या भजन सुमिरन करता है, तो परमात्मा भजन का फल उसी को मिलता है, जो भजन सुमिरन या जाप करता है। ऐसा सन्त महात्मा फरमाते […]
ज्ञानी दित सिहं और ऋषि दयानंद संवाद बारे सत्य जाने। सर्वप्रथम जान लें कि ज्ञानी दित सिंह सिख नहीं था जबकि दित सिहं वेदांती था।वेदांत मत आदि शंकराचार्य ने चलाया था।दुसरा दित सिहं से चर्चा का विषय सिख धर्म और वेद/ आर्य समाज भी नहीं था। फिर यह किस तरह उसे सिख बोल कर गर्व […]
ओ३म् “मनुष्य का कर्तव्य”
======== मनुष्य मननशील प्राणी को कहते हैं। मनन का अर्थ है किसी विषय पर उसके सत्य एवं असत्य, उपयोगी एवं अनुपयोगी तथा सार्थक एवं निरर्थक आदि सभी पक्षों पर विचार करना। जब हम मनुष्य के कर्तव्य पर विचार करते हैं तो हमें यह ज्ञात होता है कि हमें अपने आप को और संसार को तथा […]