============= महाभारत युद्ध के बाद वेदों का अध्ययन-अध्यापन अवरुद्ध होने के कारण देश में अनेकानेक अन्धविश्वास एवं कुरीतियां उत्पन्न र्हुइं। सृष्टि के आरम्भ में सर्वव्यापक एवं सर्वातिसूक्ष्म व सर्वज्ञ ईश्वर से प्राप्त वैदिक सत्य सिद्धान्तों को विस्मृत कर दिया गया तथा अज्ञानतापूर्ण नई-नई परम्पराओं का आरम्भ हुआ। ऐसी ही एक परम्परा मृतक श्राद्ध की है। […]
श्रेणी: आज का चिंतन
जीव विज्ञान की फंडामेंटल रिसर्च के लिए ही नहीं अर्थववेद के प्राण सूक्त की विज्ञान सम्मत व्याख्या भी है || लेखक आर्य सागर खारी 🖋️ सभी जीव जंतु जिसमें हम मनुष्य भी शामिल हैं सभी में जीवन का आधार प्राण वायु ऑक्सीजन है… शरीर की हर कोशिका में ऑक्सीजन ईंधन के रूप में इस्तेमाल होती […]
*”निष्काम कर्म करने से सुख शांति मिलती है, और सकाम कर्म करने से कभी सुख शांति मिलती है, और कभी दुख एवं अशांति भी।” “यदि आप सुख शांति से जीना चाहते हैं, तो निष्काम कर्म करने का प्रयत्न करें।”* निष्काम कर्म करने का तात्पर्य है, कि *”मोक्ष प्राप्त करने की भावना से कर्म करें, सांसारिक […]
============= परमात्मा ने मनुष्य की जीवात्मा को मानव शरीर में किसी विशेष प्रयोजन से दिया है। पहला कारण है कि हमें अपना-अपना मानव शरीर व मानव जीवन अपने पूर्वजन्मों के कर्मों के आधार पर आत्मा की उन्नति व दुःखों की निवृत्ति के लिये मिला है। आत्मा की उन्नति के लिये जीवन में ज्ञान की प्राप्ति […]
*”इस संसार में जिसने भी जन्म लिया है, वह समस्याओं से खाली नहीं है। और जब तक जीवन रहेगा, तब तक समस्याएं भी बनी रहेंगी। किसी के जीवन में समस्याएं कम आती हैं, और किसी के जीवन में कुछ अधिक।”* *”जब कोई समस्या जीवन में आ ही जाती है, तो उससे घबराना नहीं चाहिए। उसका […]
सैनिक दिव्य प्रकृति के कैसे होते हैं? प्राण दिव्य प्रकृति के कैसे होते हैं? चित्रैरजिंभिर्वपुषे व्यंजते वक्षःसु रुक्माँ अधि येतिरे शुभे। अंसेष्वेषां नि मिमृक्षुर्ऋष्टयः साकं जज्ञिरे स्वधया दिवो नरः।। ऋग्वेद मन्त्र 1.64.4 (कुल मन्त्र 736) (चित्रैः) अद्भुत (अजिंभिः) रूप तथा भाव (वपुषे) शरीर की सुन्दरता के लिए (व्यंजते) शोभान्वित करता है (वक्षःसु) अपनी छाती पर, […]
प्रायः प्रतिदिन ऐसे समाचार ऑडियो वीडियो आपने व्हाट्सएप या फेसबुक आदि सोशल मीडिया पर देखे होंगे, सुने होंगे, पढ़े होंगे, जिनमें लिखा रहता है, कि *”इस मैसेज को, इस वीडियो को अधिक से अधिक फॉरवर्ड करें। इसको इतना शेयर करें, कि इन लूटपाट की घटनाओं गौओं की तस्करी स्त्रियों और बच्चों पर अत्याचार आदि का […]
समानी प्रपा सहवोऽन्भागः समाने योषत्रे सहवो युनाज्मि। सम्यंचोऽग्नि सपर्य्यतारा नाभिमिवा भितः। अथर्व 3।30।6 ईश्वर वेद में आदेश देता है- तुम्हारा पीने के पदार्थ (जल दूध आदि) एक समान हो, अन्न भोजन आदि समान हो, मैं तुम्हें एक साथ एक ही (कर्त्तव्य) के बन्धन में जोड़ता हूँ। जिस प्रकार पहिये की अक्ष में आरे (Spokes) जुड़े […]
आज के वातावरण में जब गंभीरता से देखते हैं, तो ऐसा लगता है, लगभग पूरी दुनिया नास्तिक हो चुकी है। *”संभवत: कुछ ही गिने चुने लोग ऐसे बचे होंगे, जो ईश्वर को ठीक प्रकार से समझते हैं। उसको सदा अपने अंदर बाहर चारों ओर उपस्थित स्वीकार करते हैं। उसके न्याय को, उसकी दंड व्यवस्था को […]
एक मरुत किस प्रकार जीवन जीता है और प्रगति करता है? सिंहा इव नानदति प्रचेतसः पिशा इव सुपिशो विश्ववेदसः। क्षपो जिन्वन्तः पृृषतीभिर्ऋष्टिभिः समित्सबाधः शवसाहिमन्यवः।। ऋग्वेद मन्त्र 1.64.8 (कुल मन्त्र 740) (सिंहा इव) शेरों की तरह (नानदति) गर्जना करते हैं और दावा करते हैं (प्रचेतसः) ज्ञान में प्रकाशित, प्रकृति की प्रकृति को जानने वाले (पिशाः इव) […]