त्वमाविथसुश्रवसंतवोतिभिस्तव त्रामभिरिन्द्रतूर्वयाणाम्। त्वमस्मैकुत्समतिथिग्वमायुंमहेराज्ञे यूनेअरन्धनायः।। ऋग्वेदमन्त्र 1.53.10 (त्वम्) आप (आविथ) रक्षा करते हो (सुश्रवसम्) उत्तम स्रोता (दिव्यता का), सुने जाने के लिए उत्तम (अपने ज्ञान और अनुभूति के लिए) (तव ऊतिभिः) आपके द्वारा संरक्षण साधनों के साथ (तव त्रामभिः) आपके द्वारा पालन पोषण के साधनों के साथ (इन्द्र) परमात्मा (तूर्वयाणाम्) सभी बुराईयों और दुर्गुणों पर आक्रमण […]
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*नरसिंह अवतार रहस्य*
डॉ डी के गर्ग पौराणिक मान्यता =नरसिंह अथवा नृसिंह (मानव रूपी सिंह) भगवान विष्णु का अवतार है।जो आधे मानव एवं आधे सिंह के रूप में प्रकट होते हैं, जिनका सिर एवं धड तो मानव का था लेकिन चेहरा एवं पंजे सिंह की तरह थे। ये एक देवता हैं जो विपत्ति के समय अपने भक्तों की […]
कौन सर्वोच्च श्रोता है? जनता पर शासन करने वाले बीस शासक कौन हैं? सर्वोच्च श्रोता किस व्यक्ति को इन बीस शासकों से बचाता है? दिव्यता के अत्यन्त निकट कौन होता है? बीस शासकों ने पूरा कुशासन किस प्रकार रचा हुआ है? ऋग्वेदमन्त्र 1.53.9 त्वमेतांजनराज्ञोद्विर्दशाऽबन्धुनासुश्रवसोपजग्मुषः। षष्टिंसहस्रा नवतिंनवश्रुतोनिचक्रेणरथ्या दुष्पदावृणक्।। (त्वम्) आप (एतान्) इन (जनराज्ञः) जनता पर शासन […]
ऋषि दयानंद सरस्वती जी की चिंता यही थी मानव समाज को केवल और केवल सत्य के साथ जोड़ना | ऋषि दयानन्द जी चाहते थे मानव मात्र को यथार्त से परिचित कराना या सत्य से रूबरू कराना, मुसीबत उन्हों ने अपने ऊपर लिया की आने वाला समय मेरे संतानों को मुसीबतों का सामना करना न पड़े […]
ऋग्वेदमन्त्र 1.53.8 त्वंकरंजमुतपर्णयं वधीस्तेजिष्ठयातिथिग्वस्य वर्तनी। त्वं शता वङ्गृदस्याभिनत्पुरोऽनानुदः परिषूता ऋजिश्वना।। 8।। (त्वम्) आप (परमात्मा, परमात्मा का मित्र) (करंजम्) श्रेष्ठ पुरुषों को दुःख देने वाला (उत) और (पर्णयम्) पराई वस्तुओं को चुराने वाला (वधीः) नाश (तेजिष्ठया) गति और बल के साथ (अतिथिग्वस्य) अतिथियों का (परमात्मा का तथा परमात्मा के मित्र का) (वर्तनी) संरक्षण करता है (त्वम्) […]
किस व्यक्ति को परमात्मा की निकट मित्रता प्राप्त होती है और कैसे? कौन व्यक्ति अपने नाम, रूप और विचारों के अहंकार का नाश कर सकता है? नाम, रूप और विचारों के मूल अहंकार का नाश करने के लिए कौन सा पथ है? युधा युधमुप घेदेषि धृष्णुयापुरापुरंसमिदंहंस्योजसा। नम्या यदिन्द्र सख्या परावतिनिबर्हयोनमुचिं नाम मायिनम्।। ऋग्वेदमन्त्र 1.53.7 (युधा […]
मानव, मानव समाज और वेद वाणी
वेद वाणी सत्सङ्ग का महत्व है कि – हम पृथ्वी को यज्ञ करने का स्थान समझे हम वनस्पति की हिंसा करने वाले न हो! सत्सङ्ग हम पर ज्ञान वर्षा करे, हम सत्सङ्ग में अवश्य जाये इनसे तो हमारा शत्रु भी वञ्चित न हो! (पृथिवी देवयजन्योषध्यास्ते मूलं मा हिंसिषं व्रत गच्छ गोष्ठानं वर्षतु ते द्यौर्बधान देव […]
*सरस्वती पूजा रहस्य*और वेद
डॉ डी के गर्ग भाग 1 पौराणिक मान्यता: सरस्वती ज्ञान, संगीत, बहते पानी, प्रचुरता और धन, कला, भाषण, ज्ञान और सीखने की हिंदू देवी है। देवी लक्ष्मी और पार्वती के साथ त्रिदेवियों में से एक हैं । देवी के रूप में सरस्वती का उल्लेख ऋग्वेद में है ।देवी की चार भुजाएं है ,जिनमें चार प्रतीक […]
क्या होती है पूजा ?
पूजा किसे कहते है? इसको समझने के लिए पहले जन सामान्य की दृष्टि से पूजा किसे कहते हैं, वह क्यों करते हैं, इसे समझ लें तो उत्तम रहेगा। जन सामान्य की दृष्टि में पूजा का तात्पर्य तो केवल इतना मात्र है कि किसी मूर्ति के आगे सिर झुका देना, अगरबत्ती या धूप जला देना, अधिक […]
किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने के लिए किन शक्तियों की आवश्यकता होती है? हमारे जीवन को आध्यात्मिक बनाने के लिए क्या आवश्यक है? ऋग्वेदमन्त्र 1.53.5 समिन्द्ररायासमिषारभेमहि सं वाजेभिः पुरुश्चन्द्रैरभिद्युभि। सं देव्याप्रमत्यावीरशुष्मयागोअग्रयाश्वत्यारभेमहि।। 5।। (सम् – रभेमहि से पूर्व लगाकर) (इन्द्र) सर्वोच्च नियंत्रक, परमात्मा (राया) गौरवशाली सम्पदा के साथ (सम् – रभेमहि से पूर्व लगाकर) (इषा) […]